आधारशिला विस्वास ,क्षितिज का
दे पायें तो पावन है -
भीग उठे जब सरस हृदय मन .
बरस उठे तो सावन है -
नैराश्य ,वैराग्य का विस्थापन ,
स्थापित हो आशा की किरण-
सुरभि सजे हर डाल - डाल
गीत लालित्य गाये उपवन -
शांति सुधा ले रूप माधुरी ,
बस जाये तो आँगन है -
द्वेष ,दुरभि दुर्योग दमित हो ,
दीप द्विप्त कर दे अंतस -
सौम्य, सरल ,सुख का स्पंदन ,
मूल- मंत्र मानवता मंचन-
स्नेह सलिल सरिता की धारा ,
बह जाये गंगा - जल है-
आखों में आस अंक,अमिय भर,
कण -कण माटी का सुघर उठे -
भारत - भारती भाव भरे ,
अधरों से जय -भारत उचरे -
निहितार्थ -
दूध ,शौर्य संस्कार समन्वित
माँ है माँ का आँचल है-
उदय वीर सिंह
04 -03 -2012
दे पायें तो पावन है -
भीग उठे जब सरस हृदय मन .
बरस उठे तो सावन है -
नैराश्य ,वैराग्य का विस्थापन ,
स्थापित हो आशा की किरण-
सुरभि सजे हर डाल - डाल
गीत लालित्य गाये उपवन -
शांति सुधा ले रूप माधुरी ,
बस जाये तो आँगन है -
द्वेष ,दुरभि दुर्योग दमित हो ,
दीप द्विप्त कर दे अंतस -
सौम्य, सरल ,सुख का स्पंदन ,
मूल- मंत्र मानवता मंचन-
स्नेह सलिल सरिता की धारा ,
बह जाये गंगा - जल है-
आखों में आस अंक,अमिय भर,
कण -कण माटी का सुघर उठे -
भारत - भारती भाव भरे ,
अधरों से जय -भारत उचरे -
निहितार्थ -
दूध ,शौर्य संस्कार समन्वित
माँ है माँ का आँचल है-
उदय वीर सिंह
04 -03 -2012
16 टिप्पणियां:
आधारशिला विस्वास ,क्षितिज का
दे पायें तो पावन है -
भीग उठे जब सरस हृदय मन .
बरस उठे तो सावन है -
सब-कुछ है ||
आभार --
विश्वास का आधार हो तो नैराश्य टिकता ही नहीं है..
वाह!
आपके इस प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 05-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
शांति सुधा ले रूप माधुरी ,
बस जाये तो आँगन है -
बहुत सुंदर रचना ...!!
बहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
NEW POST...फिर से आई होली...
NEW POST फुहार...डिस्को रंग...
बहुत सुंदर भाव लिए हुये रचना ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
होली की शुभकामनाएँ!
शांति सुधा ले रूप माधुरी ,
बस जाये तो आँगन है -
दूध ,शौर्य संस्कार समन्वित
माँ है माँ का आँचल है-
इन शब्दों में छिपा जिंदगी का सार हैं ....बहुत खूब
होली की शुभकामनएं
जीवन का उच्च आदर्श शायद यही है लेकिन हमीं मूढ़ हैं जानते हुए औए समझाने पर भी पालन नहीं कर पाते. मानव कितना परधीन और बंधन में? चाहते और मानते हुए भी कर नहीं बढ़ा पाता. आभार संवेदनाओं को जागृत करनेवाली कृति के लिए.
बहुत ही अनुपम भाव संयोजन लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !
आभार !
आधारशिला विस्वास ,क्षितिज का
दे पायें तो पावन है -
भीग उठे जब सरस हृदय मन .
बरस उठे तो सावन है -
आनंद आ गया भाई जी ! आप गज़ब का लिखते हैं !
रंगोत्सव की शुभकामनायें स्वीकार करें !
शांति सुधा ले रूप माधुरी ,
बस जाये तो आँगन है -
....बहुत प्यारे भाव...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..होली की हार्दिक शुभकामनायें!
द्वेष ,दुरभि दुर्योग दमित हो ,
दीप द्विप्त कर दे अंतस -
इस रचना में अलंकार की छटा निराली है। इसका आशावादी स्वर हममें एक नई ऊर्जा का संचार करता है।
द्वेष ,दुरभि दुर्योग दमित हो ,
दीप द्विप्त कर दे अंतस -
इस रचना में अलंकार की छटा निराली है। इसका आशावादी स्वर हममें एक नई ऊर्जा का संचार करता है।
द्वेष ,दुरभि दुर्योग दमित हो,
दीप द्विप्त कर दे अंतस -
सौम्य, सरल ,सुख का स्पंदन ,
मूल- मंत्र मानवता मंचन-
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है आपकी.
पढकर निशब्द हूँ.आनन्द में मग्न हूँ.
बहुत बहुत हार्दिक आभार.
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