क्या कहता है जमाना ,इसकी फिकर नहीं ,
फिक्रमंद हूँ ज़माने के लिए -
नाजुक हैं नंगे पांव चला नहीं जाता ,
कोशिश है फूल बिछाने के लिए -
फर्क है ,देकर ग़म मर्शिया भी पढ़ता है ,
हम मरते भी हैं तो ज़माने के लिए -
चर्चा-ए-उल्फत न जाने क्यूँ नागवार लगती है ,
हम तो बैठे हैं दुश्मनी भुलाने के लिए -
कायम है दाग कामिल जख्मों के बाद वैसे
शोले पेश हैं ,फिरसे जलाने के लिए -
उसकी हंसी में छिपा है दर्द बेसुमार इतना
वो हँसता है , शिर्फ़ दिखाने के लिए -
छूती आसमां को आग भी, सिमट जाती है
दो नैन काफी हैं बुझाने के लिए -
उदय वीर सिंह
फिक्रमंद हूँ ज़माने के लिए -
नाजुक हैं नंगे पांव चला नहीं जाता ,
कोशिश है फूल बिछाने के लिए -
फर्क है ,देकर ग़म मर्शिया भी पढ़ता है ,
हम मरते भी हैं तो ज़माने के लिए -
चर्चा-ए-उल्फत न जाने क्यूँ नागवार लगती है ,
हम तो बैठे हैं दुश्मनी भुलाने के लिए -
कायम है दाग कामिल जख्मों के बाद वैसे
शोले पेश हैं ,फिरसे जलाने के लिए -
उसकी हंसी में छिपा है दर्द बेसुमार इतना
वो हँसता है , शिर्फ़ दिखाने के लिए -
छूती आसमां को आग भी, सिमट जाती है
दो नैन काफी हैं बुझाने के लिए -
उदय वीर सिंह
10 टिप्पणियां:
फिकर तो पूरी है,
जिगर की दूरी है।
क्या कहता है जमाना ,इसकी फिकर नहीं ,
फिक्रमंद हूँ ज़माने के लिए
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
MY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
बहुत भावप्रणव अभिव्यक्ति!
बढ़िया प्रस्तुति भाई जी ||
उसकी हंसी में छिपा है दर्द बेसुमार इतना
वो हँसता है , शिर्फ़ दिखाने के लिए -
वाह!
बेहद सुन्दर कृति!
सादर!
वाह!!!!
नाजुक हैं नंगे पांव चला नहीं जाता ,
कोशिश है फूल बिछाने के लिए -
बहुत खूब........
सादर.
बेहतरीन नज़्म के लिए शुक्रिया..
बेहतरीन नज़्म के लिए शुक्रिया..
बेहतरीन नज़्म के लिए शुक्रिया..
बहुत ही बढि़या।
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