प्रहरी देखे , दिवा - श्वप्न ,
रण - रक्षण , कैसा होगा -
विष अंतस , अमृत जिह्वा पर ,
ईश - स्मरण कैसा होगा-
शपथ वरण , प्रतिवद्ध नीत ,
विपरीत आचरण , कलुष ह्रदय,
लिप्सा , स्वार्थ , प्रभव ,प्रयोजन
विनिमय वस्तु ,विनीत विनय-
सन्नद्ध अश्त्र , वसन के अंतस,
अंक मिलन कैसा होगा-
प्रज्ञा, प्रकाश ,प्रतिपर्ण सत्य का,
प्रलेख , असत्य के वरण हुए ,
उपालंभ , उत्कोच्च , उपजीवी,
शिखर अग्रसर ,सत , क्षरण हुए-
आमंत्रण शत्रु का प्रायोजित,
परिणाम युद्ध , कैसा होगा-
पल्लव -पल्लव जयचंद प्रतिष्ठित,
हर शाख विभीषण भारी है,
हर पीठ, धृतराष्ट्र ,पथ में दुर्योधन,
महलों में अंध गांधारी है -
दीपक राग सतत संचरित,
शीश - महल कैसा होगा -
प्रणव , नियति की वीणा के श्वर,
प्रतिकूल प्रभाव में बजते हैं -
कापुरुष स्वीकार कर लेते हैं ,
वीर इतिहास को रचते हैं-
हों स्मृतियाँ , विस्मृत कालजयी,
संस्कृति , इतिहास कैसा होगा-
कम्पित हस्त , प्रणय निवेदन,
नवल प्रभात कैसा होगा-
उदय वीर सिंह
26 -04 -2012
16 टिप्पणियां:
प्रणव, नियति की वीणा के स्वर,
प्रतिकूल प्रभाव में बजते हैं -
कापुरुष स्वीकार कर लेते हैं ,
वीर इतिहास को रचते हैं-
बहुत खूब!
प्रहरी देखे दिवा स्वप्न, फिर रण रक्षण कैसा होगा
वाह, वाह !!!!!!अति सुंदर
भाव प्रवण लख शब्द चयन
झंकृत मन-वीणा तार हुये
टंकार भी है मनुहार भी है
हम दिवा स्वप्न पर वार हुये.
प्रश्न सहज हैं, उत्तर गहरे।
बढ़िया प्रस्तुति ।
बधाई स्वीकारें ।।
बहुत सुन्दर शब्दों में की गई ...दिवा-स्वप्न की अभिव्यक्ति!..आभार!
प्रणव , नियति की वीणा के श्वर,
प्रतिकूल प्रभाव में बजते हैं -
कापुरुष स्वीकार कर लेते हैं ,
वीर इतिहास को रचते हैं-
हों स्मृतियाँ , विस्मृत कालजयी,
संस्कृति , इतिहास कैसा होगा-
कम्पित हस्त , प्रणय निवेदन,
नवल प्रभात कैसा होगा-
Pl compare whats a similarity in voice of sense.
चुनौती दे रही है रात
डरती रात यह क़ाली.
न तारे हैं, न चंदा है
अभी तो सुदूर अंशुमाली.
न देखो उसकी ओर अब तुम
देखो! जो सामने थाली,
जलाकर ज्ञान का दीपक
सजा दो मन की यह थाली.
किरण मन से जो फूटेगी
तो पहले भय यह भागेगा.
तिमिर की बात क्या करते?
दौड़ा नवल प्रभात आयेगा.
जो धवल प्रभात आएगा
इस कलि इ चाल मोड़ेगा,
मिलेंगे राह बहुत साथी
रे मन! कदम बढाओ तुम.
खिल जाएगी यह संस्कृति
प्रकृति का रूप निखरेगा,
होगा सत्यम तब अधिपति
होगी शिवं की सुन्दरम धारा.
बची रही यदि संस्कृति अपनी
नहीं आयेगी मानव में विकृति,
वह नहीं बची तो निश्चित जानो
जीवन की दिव्यता छिन जाएगी.
जीवन में पशुता सी आ जाएगी.
नमस्कार, सत श्री अकाल!
स्नेह और लगातार संपर्क में रहने के लिए आभार. क्या आपका email ad. बदल गया है? एक आर्टिकिल भेजी थी उन दिलिवेरेड दिखा रहा है. कुछ सुझाव आपसे लेने थे Sikhism पर, मेरी रचना में कुछ शब्द और प्रसंग आयए है. प्रेषण से पूर्व उन्ही पर चर्चा करना / अवलोकित करनाचाहता था... नया emai ad. यदि मो. नो. ९४५०८०२२४० पर भेजें तो कृपा होगी.
सादर,
जयप्रकाश
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति |
शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ||
सादर
charchamanch.blogspot.com
बेहद उच्च कोटि की कविता।
पल्लव -पल्लव जयचंद प्रतिष्ठित,
हर शाख विभीषण भारी है,
हर पीठ, धृतराष्ट्र ,पथ में दुर्योधन,
महलों में अंध गांधारी है -
दीपक राग सतत संचरित,
शीश - महल कैसा होगा -
प्रिय उदयवीर जी बहुत सुन्दर रचना ..गहन शब्द..सुन्दर शब्द श्रृंखला .....कास कापुरुष न बन सब समाज को गढ़ने में लगें ..
भ्रमर ५
हों स्मृतियाँ,विस्मृत कालजयी,
संस्कृति, इतिहास कैसा होगा-
कम्पित हस्त, प्रणय निवेदन,
नवल प्रभात कैसा होगा-
वाह!!!!सुंदर प्रभावी अभिव्यक्ति ...
बहुत अच्छी रचना ...उदय जी
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
अति सुन्दर ..हार्दिक बधाई..
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...!
पल्लव -पल्लव जयचंद प्रतिष्ठित,
हर शाख विभीषण भारी है,
हर पीठ, धृतराष्ट्र ,पथ में दुर्योधन,
महलों में अंध गांधारी है -
सर जी विलक्षण प्रयोग। अभिभूत हूं। कविता में अनुप्रास की छटा देखते बनती है।
पल्लव -पल्लव जयचंद प्रतिष्ठित,
हर शाख विभीषण भारी है,
हर पीठ, धृतराष्ट्र ,पथ में दुर्योधन,
महलों में अंध गांधारी है -
....कटु सत्य...बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति...
बची रही यदि संस्कृति अपनी
नहीं आयेगी मानव में विकृति,
वह नहीं बची तो निश्चित जानो
जीवन की दिव्यता छिन जाएगी.
जीवन में पशुता सी आ जाएगी.
मन को छू लेने वाली भावपूर्ण रचना...
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