परिभाषाएं , अपनी अपनी
आशाएं , अपनी अपनी-
मधुशाला का महिमा मंडन
आशीष वचन से लगते हैं,
ख्यातिलब्धता हो , आँचल,
शिष्ट , अशिष्ट कह लेते हैं -
हृदय से खोया , स्पन्दन ,
इच्छाएं अपनी अपनी-
पथ काँटों के , फूल कहें ,
गुल - गुलशन को , शूल कहें ,
किसलय कली प्रसून की क्यारी ,
रचनाकार की भूल कहें -
गमित हुए पग, पथ में अपने
दिशाएं , अपनी अपनी -
माँ सी ममता, दूध सृजन का,
गौ - माता कह लेते हैं-
पीकर पय , न क्षुधा गयी
क्षण में वध , कर देते हैं-
स्नेह समर्पण बाजारी है
निविदाएँ , अपनी अपनी-
ये राष्ट्र , भोग की वस्तु है
या , जीवन है आराधन है-
आतंकी , हंताओं का घर ,
या वीरों का आंगन है -
राष्ट्र -गीत ,यश, वंचक की धुन
भाषाए अपनी अपनी-
उदय वीर सिंह
18- 06 - 2012
आशाएं , अपनी अपनी-
मधुशाला का महिमा मंडन
आशीष वचन से लगते हैं,
ख्यातिलब्धता हो , आँचल,
शिष्ट , अशिष्ट कह लेते हैं -
हृदय से खोया , स्पन्दन ,
इच्छाएं अपनी अपनी-
पथ काँटों के , फूल कहें ,
गुल - गुलशन को , शूल कहें ,
किसलय कली प्रसून की क्यारी ,
रचनाकार की भूल कहें -
गमित हुए पग, पथ में अपने
दिशाएं , अपनी अपनी -
माँ सी ममता, दूध सृजन का,
गौ - माता कह लेते हैं-
पीकर पय , न क्षुधा गयी
क्षण में वध , कर देते हैं-
स्नेह समर्पण बाजारी है
निविदाएँ , अपनी अपनी-
ये राष्ट्र , भोग की वस्तु है
या , जीवन है आराधन है-
आतंकी , हंताओं का घर ,
या वीरों का आंगन है -
राष्ट्र -गीत ,यश, वंचक की धुन
भाषाए अपनी अपनी-
उदय वीर सिंह
18- 06 - 2012
9 टिप्पणियां:
राष्ट्र -गीत ,यश, वंचक की धुन
भाषाए अपनी अपनी-
सुंदर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण रचना,,,
उदय जी बधाई,,,,
RECENT POST....: न जाने क्यों,
परिस्थितियां तो सबके सामने हैं, सब अपनी-अपनी परिभाषाएं गढ़ लेते हैं।
स्नेह समर्पण बाजारी है
निविदाएँ , अपनी अपनी
वाह , स्पष्ट सच्ची पंक्तियाँ
जिसको सब उठ श्रेष्ठ कह उठें, वही श्रेष्ठ होने लगता।
माँ सी ममता, दूध सृजन का,
गौ - माता कह लेते हैं-
पीकर पय , न क्षुधा गयी
क्षण में वध , कर देते हैं-
स्नेह समर्पण बाजारी है
निविदाएँ , अपनी अपनी-
ये राष्ट्र , भोग की वस्तु है
या , जीवन है आराधन है-
आतंकी , हंताओं का घर ,
या वीरों का आंगन है -
राष्ट्र -गीत ,यश, वंचक की धुन
भाषाए अपनी अपनी-
अंत की और बढ़ते बढ़ते रचना राष्ट्री स्वर ले लेती है एक पीड़ा और कसक व्यंजना के संग .
सब कुछ उल्टा पुल्टा है ...सबकी अपनी परिभाषाएँ हैं ...
सुन्दर....
गहन भावाव्यक्ति.
सादर
अनु
स्नेह समर्पण बाजारी है
निविदाएँ , अपनी अपनी-
ये राष्ट्र , भोग की वस्तु है
या , जीवन है आराधन है-
आतंकी , हंताओं का घर ,
या वीरों का आंगन है -
राष्ट्र -गीत ,यश, वंचक की धुन
भाषाए अपनी अपनी-
बहुत सार्थक और सशक्त भावाभिव्यक्ति....
स्नेह समर्पण बाजारी है
निविदाएँ, अपनी अपनी-
ये राष्ट्र, भोग की वस्तु है
या, जीवन है आराधन है-
आज की परस्थितियों का सही आकलन करता एक सुंदर गीत, सुंदर भाषा और खूबसूरत शब्दावली से सुसज्जित.
बधाई.
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