अपनी , परछाईयों से डरने लगे हैं हम ,
अपनी लगायी आग में, जलने लगे हैं हम -
टूटा ये आईना है , सच बोलता रहा ,
हस्र , क्या हुआ , सोचने लगे हैं हम -
टांगी है , खूंटियों पर , खायी हुयी कसम,
गिरगिटों सा रंग , बदलने लगे हैं हम -
झूठो - फरेब से है , तामीर मेरा जमीर,
मक्कार दूसरों को , कहने लगे हैं हम-
पाई है सल्तनत जो , सरकार ने दिया,
सरकार ,अपने आप को कहने लगे हैं हम-
हसरतों को क़त्ल करके ,दफनाया गया यहाँ,
कभी ये शहर था ,शमशान, कहने लगे हैं हम -
निजाम
सिमटती जिंदगी का
बिखर जाने को बेताब ,
दिलों- दिमाग ,ख्वाबों में
ख्वाहिशों
नुरानी जुल्फों ,
हिजाबों में
सवालों ,जबाबों में
हर उन किताबों में
जहाँ लिखे हैं
फलसफे
प्यार के ......
उदय वीर सिंह
05 -08 -2012
12 टिप्पणियां:
सही में जब जमीर बिक जाए तो फिर कुछ बाकी नहीं रह जाता
दूसरों पर इल्जाम लगाना आसान है, अपने अंदर झांकना मुश्किल !
बेहतरीन !
सादर !
बढ़िया गजल...
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~~♥ मित्रतादिवस की शुभकामनाएँ ! ♥~~
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बहुत ख़ूब!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 06-08-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-963 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत बढ़िया गज़ल......
सादर
अनु
कहाँ आईने में अपनी गलतियाँ नजर आती हैं।
झूठो - फरेब से है , तामीर मेरा जमीर,
मक्कार दूसरों को , कहने लगे हैं हम-
पाई है सल्तनत जो , सरकार ने दिया,
सरकार ,अपने आप को कहने लगे हैं हम-
बहुत खूब ...
आइना सदा सच बोलता, जो दिखे दिखलाय
मन के आइने में छिपी,गलती न दिख पाय,,,,
बहुत बढ़िया गजल,,,,उदयवीर जी,बधाई
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,
हसरतों को क़त्ल करके ,दफनाया गया यहाँ,
कभी ये शहर था ,शमशान, कहने लगे हैं हम -
वाह क्या शेर कहा है । बहुत खूब ।
हसरतों को क़त्ल करके ,दफनाया गया यहाँ,
कभी ये शहर था ,शमशान, कहने लगे हैं हम -
बहुत उम्दा ग़ज़ल दोनों रचनाएं शानदार हैं
झूठो - फरेब से है , तामीर मेरा जमीर,
मक्कार दूसरों को , कहने लगे हैं हम-
उम्दा गज़ल है भाई साहब हर अश आर ज़िन्दगी की तल्खियां छिपाए है कृपया एक अशआर में "टूटा "के स्थान पर टुटा लिखा गया है दुरुस्त करलें .शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
सोमवार, 6 अगस्त 2012
भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ से
झूठो - फरेब से है , तामीर मेरा जमीर,
मक्कार दूसरों को , कहने लगे हैं हम-
उम्दा गज़ल है भाई साहब हर अश आर ज़िन्दगी की तल्खियां छिपाए है कृपया एक अशआर में "टूटा "के स्थान पर टुटा लिखा गया है दुरुस्त करलें .शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
सोमवार, 6 अगस्त 2012
भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ से
झूठो - फरेब से है , तामीर मेरा जमीर,
मक्कार दूसरों को , कहने लगे हैं हम-
अपने वक्त की तल्खियों से संवाद करती है यह गज़ल कृपया दुसरे शैर में "टूटा "कर लें "टुटा:"को .
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