स्मृतियाँ मुझे,
व्यग्र करती हैं ,
मेरा अतीत,वर्त्तमान ,
विश्लेषित करती हैं -
मैं क्या हूँ ....?
प्रतिस्पर्धा , ईर्ष्या,या
मानदंड ?
किसी की प्रतिष्ठा है -
मेरा अपमान !
दांत गिनने ,
सवारी गांठने ,
मेरी कैद.....
सिर पर पांव रख ,
अतिउत्साह , आत्म मुग्ध हो
विजय भाव का प्रदर्शन .
.में यशता क्यों है ..?
ख़ाल में भुस भर,
अतिथि कक्ष सजाने की ,
इतनी विद्रूपता ,
प्रमाद- भाव क्यों है ?
मेरे पराक्रम सी, इच्छा है ,
मेरा पराभव ही उनकी प्रतिष्ठा है ....?
मेरे जूठन पर जीने वाला ,
सियार भी ,
करता है सवाल .....
कायर ,शक्तिहीन ,
विपन्न कहता है ...../
मेरी भूख से विक्षोभ ,
मेरे अंत में शांति !
कदापि नियम नहीं है
प्रकृति का ../
सिंह प्रवृति है ,
उन्माद की नहीं ,
संवाद की ,
संकल्प की ,कल के ,
निर्माण की ........
उन्माद में
कौन है .....?
उदय वीर सिंह
11 टिप्पणियां:
सिंह प्रवृति है ,
उन्माद की नहीं ,
संवाद की ,
संकल्प की ,कल के ,
निर्माण की ........
...मानव स्वभाव की विसंगतियों का बहुत सुंदर चित्रण... शुभकामनायें!
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (18-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (18-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
संकल्प की ,कल के ,
निर्माण की ........
उन्माद में
कौन है .....?
वही जिसे मन की शांति नहीं सिंहता अच्छी लगती है।
उदय वीर सिंह दा जवाब नहीं !
लाजवाब कविता के लिए उदयवीर जी को धन्यवाद.
बहुत सुंदर !
पर मेल आपका नहीं कर रहा काम
Delivery to the following recipient failed permanently:
udaya.veeji@gmail.com
Technical details of permanent failure:
The email account that you tried to reach does not exist. Please try double-checking the recipient's email address for typos or unnecessary spaces. Learn more at http://support.google.com/mail/bin/answer.py?answer=6596
आज 20/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
बहुत सुंदर क्या बात हैं
सुन्दर कविता
शान्ति हेतु सिंह का उद्घोष..
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