जो मिला स्वीकार्य सौम्य
जीने की प्रत्यासा है -
रीत सृजन ही जीवन है
एक कर्मवीर की भाषा है-
रो - रो जीया क्या जिया,
हंस कर जीया जिन्दादिल
देना खुशियाँ खुले हाथ
एक दानवीर को आता है-
न छीन हंसी मम अधरों की
हंसने दो मुस्काने दो ,
अन्तरिक्ष के नील वलय में
यत्र - तत्र विखराने दो-
धरा ही क्यों ,ब्रहमांड हँसे ,
गृह - नक्षत्र में मोद भरे,
शांति - भाव की शर्तों पर
अस्थि साज बन जाताहै -
जब पवन चली नैराश्य लिए ,
दैन्य भाव का संपेषण
स्थापित साम्राज्य ख़ुशी का
बहु लोक संभव है अन्वेषण -
शंशय की सीमा मिट जाये
मंगल प्रभात जब आता है,
मंगल ध्वनि उचरित होती है
स्नेहिल उर जब गाता है-
सागर के आँगन कोलाहल
वैधव्य सृष्टि का संभव है
सम्भव नहीं सपथ से मुकना
जो भरत वंश दे जाता है-
न्योछावर अभिलाषाएं समस्त ,
जीवन कब मिलता बार बार ।
संवत्सर बदले युग बदला
सौगंध न बदली एक बार -
पायल की मोहक राग- माधुरी ,
अनंग त्याज्य हो जाता है,
खडकी शमशीर तो क्या खडकी,
कंगन कटार बन जाता है ।
सतत सपथ अक्षुण रहे ,
जो ली शरणागत की रक्षा में ,
किश्तों में जीना क्या जीना
एक बार ही मरना आता है ,
है भारत तो हम भारत,
ग्लानी नहीं हम गर्व करें,
हम बलिदानी जत्थों से हैं,
परहित मिटना आता है -
-उदय वीर सिंह
13 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर ॥कर्मवीर की सटीक परिभाषा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
भाई उदयवीर जी सत श्री अकाल |बहुत सुन्दर कविता |
शुभकामनायें भाई जी ।।
सटीक प्रस्तुति ।।
न छीन हंसी मम अधरों की
हंसने दो मुस्काने दो-
भावपूर्ण अभिव्यक्ति .....
कर्मशीलता की अलख जगाने के लिये शत शत आभार..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना है |
आशा
स्वागत योग्य है यह प्रेरणा देती ओजस्वी रचना!
स्वागत योग्य है यह प्रेरणा देती ओजस्वी रचना!
बहुत प्रेरक एवं ओजमयी कविता है -साधुवाद !
बहुत ही सुंदर रचना |
बेहतरीन ....
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