-लिव- इन -रिलेसनशिप-
माँ ने पूछा था ,
शरद कैसी है बहु ,
साथ नहीं आई ?
नहीं माँ ,
फिर कभी ...
सुना है ,सुन्दर है नौकरीपेशा है....
बताओगे नहीं उसके बारे में ...
हाँ जी ! फिर कभी ....
माँ ! अपर्णा की सगाई, शादी ...
बताया नहीं,किसी ने
कुछ भी मुझे ..
क्या करती, बच्चा गोंद में था,
वह लिव- इन -रिलेसनशिप में थी |
तुम्हारा जबाब था,
फिर कभी .... |
हाँ करनी पड़ी ,
मुए कलूटे बद्दजात के साथ ..|
थोड़ी देर पहले तेरी बीबी समीर
का फोन ,
सूचित कर दिया मुझे
तुम भी लिव- इन -रिलेसनशिप में हो |
बेटी की तो, गोंद भी भरी
अपनी पुरुष- बहू की
गोंद भराई भी नहीं कर सकती ,
ये कैसी विधा है ,
विधान है .....
संसकारों का परिमार्जन
या अवसान है ... |
- उदय वीर सिंह
5 टिप्पणियां:
मन को मारे, मन न मारे।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 18/12/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका इन्तजार है
वाह ... बहुत ही बढिया।
बहुत खूब ... समाज की इस विडंबना को बाखूबी लिख दिया ...
रिश्तों का फैलाव या बिखराव,प्रभु ही जाने.
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