सुना नहीं पाये ..
लिखे थे गीत तुम्हें दिल से
सुना नहीं पाये -
बे-चिराग दिखे न हर्फ़ अंधेरों में
जला नहीं पाये -
बारिस बे-हिसाब रही सिर पे
घर बना नहीं पाये -
सिलसिला -ए- जफ़ा कुछ रहा ऐसा
वफ़ा नहीं पाये -
थे भींगे पैर कुछ जमीं गीली
कदम बढ़ा नहीं पाये -
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
बहुत खूब !
कहींं-कहींं इन्सान बड़ा विवश हो जाता है - लेकिन
इससे क्या ,अपनी ओर से तो कसर नहीं रही !
वाह, बहुत खूब।
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