बात आई मानवता की तो धर्म - जाति पर
उतर जाता है -
देश की अस्मिता की बात से जज्जबात पर
उतर जाता है-
पेशे की आड़ गद्दार की पैरवी में इजलास पर
उतर जाता है-
सींचता है विषमताओं की ग्रन्थियां,समभाव से
साफ मुकर जाता है -
किसान व जवान की जवानी का मोल उसकी
गिलास में उतर जाता है-
अभिशप्त है मजदूर आज भी उसका देखा स्वप्न
बिखर जाता है -
- उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (04-07-2014) को "स्वप्न सिमट जाते हैं" {चर्चामंच - 1664} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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