ये जुल्फ बिखर जाती है सँवारो जितना - किश्ती जाती भंवर की ओर उबारो जितना - न जागा है फरेबी सोया दुलारो जितना - न जुड़ता है टूटा सीसा उसारो जितना - बुत न बोलते हैं कभी पुकारो जितना - रही साथ तो प्यार की चादर उधारों जितना - उदय वीर सिंह
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-12-2014) को "ना रही बुलबुल, ना उसका तराना" (चर्चा-1814) पर भी होगी। -- चर्चा मंच के सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-12-2014) को "ना रही बुलबुल, ना उसका तराना" (चर्चा-1814) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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