उन्माद की राहों में पनाहों में बसर नहीं होता
मिलते हमराह,उजालों में दो कदम के लिए
अँधेरों में अपना साया भी हमसफर नहीं होता -
टूट जाते हैं ,बिखर जाते हैं ,बसाये सपने
उसे शमशान कहते हैं ,वो घर नहीं होता -
छोड़ा साथ अपनों ने ही नहीं ,पैरों ने कभी
बैसाखियाँ साथ होती हैं तन्हा सफर नहीं होता -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
उसे शमशान कहते हैं ,वो घर नहीं होता
बहुत खूब !
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