गद्दार हो गए हैं -
जख्म जिंदा हैं सितम के तन पर दाग बनकर,
दागदार बन गए हैं
जिनको जाति - धर्म फिरके ,ही प्यारे थे
खुद्दार बन गए हैं-
जो वफादार थे फिरंगियों के, देश गौड़ था
वफादार हो गए हैं -
जिनकी उठी कलम दुश्मनों की शान में,
कलमदार हो गए हैं-
जिसने देश को मंदिर नहीं, पायदान समझा
लंबरदार हो गए हैं -
वतन तो वतन, द्रोह है इंसानियत से जिन्हें ,
वतन के ठेकेदार हो गए हैं -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
प्रस्तुति भाई कुलदीप जी की और सूचना मेरे द्वारा आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 01 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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