सफाई को निकले गली हर गली
शब्द सुन्दर लिए हाथ खाली लिए
मन मानस ह्रदय वज्र सी गन्दगी
रह गयी ज्यों की त्यों रूप काली लिए-
संसद,महल,अट्टालिकाओं के आँगन
कितना कूड़ा भरा देश अवगत हुआ
कंचनी थाल पा चित्र विम्बित मोद के
स्वच्छ श्रमिक मर गए पेट खाली लिए-
दाग कपड़ों का कितना भी धुल जायेगा
यहाँ न सही फ़ांस लन्दन जायेगा
नीर दूषित अभिशप्त जीने की पद्धति
दम तोड़ती विष की प्याली लिए -
उदय वीर सिंह
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