शनिवार, 27 अगस्त 2022

तपता सूरज ढल जाता है...






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तिनके तिनके जल उठते हैं

सारा जंगल जल जाता है।

नंगे पदचांपों की आहट से 

प्रस्तर श्रृंग भी हिल जाता है।

न मिटा सका है ताप अखंड

जन जीवनअविरल जाग्रत है,

एक बिरवे की छांव ही काफी

तपता सूरज भी ढल जाता है।

यदि धन-धार हृदय में संचित है

सम्मान सहित मर जाने की,

क्रूर नियति के गल,गाल बसे

अवरोध द्वार भी खुल जाता है।

उदय वीर सिंह।

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