मंगलवार, 30 अगस्त 2022

कंचन, कंचन रहता है






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अर्श रहे या फर्श रहे
कंचन, कंचन रहता है।
अवसरवाद के आंगन में
परिवर्तन रहता है।
जितना टूटा जितना बिखरा
उतने अक्स दिखाता,
न बदला अपनी सीरत
दर्पन, दर्पन रहता है।
बंद मिला करती है चौखट
देखा परवाजों के ख्वाब,
स्वार्थ सिद्धि के द्वारों तक
अभिनंदन रहता है।
मर्यादा यश अभिमान वरण
कर कटार ले लेता।
आभूषण की छांव बैठ
कंगन,कंगन रहता है।
उदय वीर सिंह।
29।08।22

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