हमारे मुँह से अपना पैग़ाम चाहता है।
हमारी जमीं पर अपना मकान चाहता है।
लिखूं खून या स्याही से अधिकार लिखूंगा,
लश्कर रहजनों का गुलाम चाहता है।
मौसम के तेवर कुछ अच्छे नहीं लगते,
जरूरत शीतल पवन की तूफ़ान चाहता है।
बड़ी मुशकिलों से सहेजे थे परों को अपने
अब परिंदों से छीनना आसमान चाहता है
उदय वीर सिंह।
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