मत सोच अकिंचन ,चलता जा ,
सद्ज्ञान कहीं पर मिल जाता --------
अपमान कहीं जो मिलता है ,
सम्मान कहीं पर , मिल जाता /
डूबा सूरज , अस्ताचल ,
चाँद कहीं पर मिल जाता /-------
छूटा नाविक , पतवार गयी ,
मझधार कहीं पर मिल जाता /
चल लहरोँ की नावों पर ,
किनार कहीं पर ,मिल जाता ----------
स्थापित करता मानदंड ,
इन्शान कहीं पर मिल जाता /
मर्यादा की लिखता गाथा ,
शैतान , कहीं पर मिल जाता -----------
,
मधुबन से वैर पतझड़ मिलते
फूलों को कांटे मिल जाते ,
मरू -भूमि का दग्ध -क्षितिज
नखलिस्तान कहीं पर मिल जाता ---------
मिले वेदना , हृदय अवसादित ,
प्रेम कहीं पर मिल जाता /
सरल नहीं मानव मिलना ,
भगवान कहीं पर मिल जाता ----------------
उदय वीर सिंह .
29/12/2010
5 टिप्पणियां:
सरल नहीं मानव मिलना ,
भगवान कहीं पर मिल जाता ----------------
बिल्कुल सच बात कह दी……………बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
मिले वेदना , हृदय अवसादित ,
प्रेम कहीं पर मिल जाता /
सरल नहीं मानव मिलना ,
भगवान कहीं पर मिल जाता -----
बहुत सही कहा है..इंसान का मिलना वास्तव में बहुत मुश्किल है.सुन्दर प्रस्तुति. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
aasha ki dor.....to honi hi chahiye...bhut hi sundar..
दर्पण से परिचय
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
सुन्दर अभिव्यक्ति!
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