ढूँढो ना अपना , पराये मिलेंगे ,
परायी सरहद में , सितम ही सितम हैं --------
बसते नहीं , अब ख्यालों में कांटे ,
दहसत जदा कितना फूलों से हम हैं --------
तोड़ना आसमां ,हम नहीं जानते ,
साथ धरती नहीं , डगमगाते कदम हैं-------
दिल से पूछा तेरे , साथ कितना सफ़र ?
मुस्कराया कहा बस कदम दो कदम है --------
जब भरोसे की अर्थी उदय उठती रहे ,
दुश्मनों की जरुरत , वहीँ से ख़तम है -----------
घर बनाने की हसरत , मुजाहिर को है ,
हम मुजाहिर नहीं , हमें मुक़द्दस सितम हैं ------
कमीं हमको है कैसी ,खुदा का फज़ल है ,
हंसती जिंदगी में , तो अपनों के गम हैं-------
उदय वीर सिंह
३/०२/२०११ .
5 टिप्पणियां:
तोड़ना आसमां ,हम नहीं जानते ,
साथ धरती नहीं , डगमगाते कदम हैं-------
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत ही खुबसूरत बात चंद शब्दों मै ही कह डाली आपने दोस्त !
बहुत सुन्दर गज़ल शुक्रिया !
जब भरोसे की अर्थी उदय उठती रहे ,
दुश्मनों की जरुरत , वहीँ से ख़तम है.....
सच कहा आपने। बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई।
बहुत ही गहरे भाव !
सुन्दर और भावपूर्ण ....
बधाई।
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