आँगन में जब खिला तो ,सौगात की तरह था ,
खेतों में खिल रहा है ,खर -पतवार की तरह है -
आँचल वो अंक में था, निशान -ए - आशिकी ,
बिकने लगा बाजार में,अब सामान की तरह है-
खुशबू के काफिलों का ,सरदार की तरह था ,
खुशबू ने छोड़ा दामन, अब व्यापार की तरह है-
आँचल में छुपाये हांड़ीयां ,दिल का निजाम था ,
रस्मों -अदायगी में अब ,निशान की तरह है -
एक फूल था मुकम्मल , बसाने को जिंदगी ,
जमाल की तरह था , वह ख़ार की तरह है -
मीरो - फकीर , सब ने उसकी मिशाल दी ,
हर जवाब की सिफ़त ,अब सवाल की तरह है-
उदय वीर सिंह
15-04-2012
खेतों में खिल रहा है ,खर -पतवार की तरह है -
आँचल वो अंक में था, निशान -ए - आशिकी ,
बिकने लगा बाजार में,अब सामान की तरह है-
खुशबू के काफिलों का ,सरदार की तरह था ,
खुशबू ने छोड़ा दामन, अब व्यापार की तरह है-
आँचल में छुपाये हांड़ीयां ,दिल का निजाम था ,
रस्मों -अदायगी में अब ,निशान की तरह है -
एक फूल था मुकम्मल , बसाने को जिंदगी ,
जमाल की तरह था , वह ख़ार की तरह है -
मीरो - फकीर , सब ने उसकी मिशाल दी ,
हर जवाब की सिफ़त ,अब सवाल की तरह है-
उदय वीर सिंह
15-04-2012
9 टिप्पणियां:
बहुत खूब!!!!!!!!!!!!
बहुत खूब!!!!!!!!!!!!
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल.....
एक फूल था मुकम्मल,बसाने को जिंदगी ,
जमाल की तरह था,वह ख़ार की तरह है
बहुत खूब!!!! सुंदर गजल लगी,..उदयवीर जी
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MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
बहुत उम्दा ग़ज़ल बहुत पसंद आई
सच कहा आपने, उत्तर की अपेक्षा ही प्रश्न बनती जा रही है।
हर जवाब की सिफत अब सवाल की तरह है...
बहुत खूब.... सुन्दर अशार...
सादर बधाई.
बहुत सुन्दर वाह!
बहुत सुन्दर वाह!
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