ब्लोगर मित्रों ! अन्तराष्ट्रीय ब्लोगर सम्मेलन,यद्यपि की भारत को छोड़ किसी अन्य देश की सहभागिता नहीं रही , घर को लौट चुके हैं ,एक अजनवी की तरह ,कुछ छला हुआ सा महसूस करते हए / सोचता हूँ अगर ,फेस बुक ,गूगल ,ट्विटर आदि न होते तो,आम ब्लागर का क्या वजूद होता ? शुक्र है उन सुविधा व दाताओं का ,जिनसे हम बेख़ौफ़ अपनी संवेदनाओं को स्पंदित कर लेते हैं ,शायद वे पहचान समझते हैं .......पर यहाँ कितने अजनवी हैं ....../
मुझे ख़ुशी है , कि इस लायक
समझा गया , कि मैं लायक नहीं-
वरना लोग कहते ,तेरा आकलन ही
नहीं हुआ, तू आकलन के लायक नहीं-
अफशोस है लिखना छुटता नहीं
लेखनी ही साथ और कोई सहायक नहीं-
मुझे सरोकार है , साहित्य से समाज से,
किसी राज दरबार का गायक नहीं ,
वातानुकूलित संस्कृति का वाहक नहीं ,
राजनेता, अफसर , अधिनायक नहीं-
रतौंधी- ग्रसित आँखों से कहना ही क्या,
रंगों से कोई शिकायत नहीं-
उदय वीर सिंह ,
28/08/2012
मुझे ख़ुशी है , कि इस लायक
समझा गया , कि मैं लायक नहीं-
वरना लोग कहते ,तेरा आकलन ही
नहीं हुआ, तू आकलन के लायक नहीं-
अफशोस है लिखना छुटता नहीं
लेखनी ही साथ और कोई सहायक नहीं-
मुझे सरोकार है , साहित्य से समाज से,
किसी राज दरबार का गायक नहीं ,
वातानुकूलित संस्कृति का वाहक नहीं ,
राजनेता, अफसर , अधिनायक नहीं-
रतौंधी- ग्रसित आँखों से कहना ही क्या,
रंगों से कोई शिकायत नहीं-
उदय वीर सिंह ,
28/08/2012
10 टिप्पणियां:
क्या बात है ? उदय वीर जी मायूश होकत लौटे लखनऊ से, सम्मलेन से , क्या पाना था आपको ? बहुत अच्छा लिखते है आप .. ये कोई अतिस्योक्ति नहीं और टिप्पणी के बदले टिप्पणी नहीं . खुश रहे और भी अच्छा लिखे
मुझे सरोकार है , साहित्य से समाज से,
किसी राज दरबार का गायक नहीं ,
यह आपने क्या कह दिया है उदय भाई.
आपकी लायकी पर हमें गर्व है.
आपका लेखन सकारात्मकता उर्जा
से ओतप्रोत दिल की पुकार है.
कोई गल्ल नी जी, फ़ेर कदी मिलागें रज्ज के।
मुक्त कण्ठ है,
मुक्त स्वरों से,
मुक्त पिपासा बाँचेंगे।
मन आयेगा,
अश्रु ढलेगा,
मन आयेगा, नाचेंगे।
अफशोस है लिखना छुटता नहीं
लेखनी ही साथ और कोई सहायक नहीं-
मुझे सरोकार है , साहित्य से समाज से,
किसी राज दरबार का गायक नहीं ,
नमस्कार सर जी,
सहमत आपके विचारों से. एक चिन्तक की असली पूँजी तो है उसकी संवेदनाएं, समाज का दर्द, निर्धन-निर्बल मन को पीड़ा. समाज के इसी दर्द को, प्रकृति-संस्कृति की चीत्कार - पुकार सुनकर उसे ग्रहण करता है और लिखता है, लड़ता है जन कल्याण के लिए. वह संतुष्ट है संवेदनों को पाकर, आहत होकर भी. आपकी ही तरह. उसे तो गरल पीना ही है और गरल पीने में ही उसकी जीत है. वह नीलकंठ बनने के पथ पर अग्रसारित है, यही उसकी सार्थकता और संतुष्टि है. सबसे बड़ा एइश्वर्यशाली और वैभवशाली वही है क्यों कि वह औचित्य का प्रश्न उठता है आपकी तरह. ढूढता से संधान बिना हरे, बिना थके.. मैं कैसे कह दूं यह यात्रा निष्फल रही? आकिर आप जैसे चिंतकों से मिलना संभव हो सका, क्या यह कम है? मेरे लिए आपके साथ बिठाये गए क्षण अमूल्य निधि की तरह है. आपकी लेखनी में गजब की शक्ति है और शक्ति को सभी अभी महसूस कर ही लें यह जरूरी नहीं. आप ब्लॉग जगत के सशक्त हस्ताक्षर है ऐसा मेरा मानना है. आपकी रचनाओं से प्ररणा और ऊर्जा मिलती है. आप ऐसे ही आते रहे लिखते रहें निश्चिन्त और बेख़ौफ़ होकर.....
मायूस भला क्यों ? अपने ही रंग में रंगे रहिए ।
ये मायूसी अच्छी नहीं ... सम्मलेन हुवा ये अच्छी बात है ... होते रहेंगे तो कुछ अच्छा जरूर होगा ...
आपकी पोस्ट 30/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा - 987 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
बहुत ही अच्छी पोस्ट। मेरे नए पोस्ट पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। धन्यवाद।
उदय वीर सिंह जी मैं तो आपकी लेखनी से बहुत ही ज्यादा प्रभावित हूँ हमेशा आपके ब्लॉग पर आने की कोशिश करती हूँ आप जैसी शख्सियत लखनऊ में मौजूद थी और मुझे पता ही नहीं चला शायद पहचान नहीं पाई यदि आपने पहचाना और आप भी नहीं मिलने आये तो आपसे शिकायत है चलिए रब ने चाहा तो फिर मिलेंगे आपकी लेखनी में मायूसी अच्छी नहीं लगती शुभकामनाएं
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