हम हुए पराए अपने आँगन
दस मेरा वतन कहाँ है -
हम विकल हुए अपनी धरती पर
दस मेरा चमन कहाँ है -
सुख दुख लेकर उडी पतंगें
दस मेरा गगन कहाँ है -
गंध बारूदी हर दिशा घुली है
दस शीतल पवन कहाँ है -
वारे पूत पिता तरुणी काया
दस वो सोणा वतन कहाँ है
उदय वीर सिंह
दस मेरा वतन कहाँ है -
हम विकल हुए अपनी धरती पर
दस मेरा चमन कहाँ है -
सुख दुख लेकर उडी पतंगें
दस मेरा गगन कहाँ है -
गंध बारूदी हर दिशा घुली है
दस शीतल पवन कहाँ है -
वारे पूत पिता तरुणी काया
दस वो सोणा वतन कहाँ है
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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