पीर निकले चीर कर जड़ पर्वतों की चोटियाँ
हाथ में औज़ार हो तो मुश्किल नहीं हैं रोटियाँ -
मुमकिन नहीं हर गाँव मजरा राजपथ के नेड़ हो
हर राजपथ को जोड़ देती हैं पगडंडियाँ -
जब जलेगा दीप तो हर दर उजाला खास है
जो जलेगा दिल उदय बे-रोशन रहेंगी कोठियाँ -
उदय वीर सिंह
मुमकिन नहीं हर गाँव मजरा राजपथ के नेड़ हो
हर राजपथ को जोड़ देती हैं पगडंडियाँ -
जब जलेगा दीप तो हर दर उजाला खास है
जो जलेगा दिल उदय बे-रोशन रहेंगी कोठियाँ -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-03-2017) को
"राम-रहमान के लिए तो छोड़ दो मंदिर-मस्जिद" (चर्चा अंक-2611)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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