अंतहीन ख्यालों में ,
जलते-बुझते आशा-दीप ,
जगाते हैं मुझे ,
चलो ,
दिनकर की ओर
, प्रतीक्षित , प्रकाश ,
प्रतीक्षा में है /
क्या करें !
अंशुमान , जलता है ,
जलाता है ,
शरीर को ,
आत्मा को ,जितना करीब जाओ -------
* दुखद है दूरियां उससे ,
परन्तु ,
शीतलता मिलती है ,
जितना दूर जाओ /
कितना अंतरद्वंद है ,-----
कहाँ जांयें ?
दूर या पास ?
वरण करें ,
किसका ? --------------
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हस्ताक्षरित ,
हाँथ उठते हैं ,
हस्ताक्षर को ,
मिटाने को , किसी की हस्ती ,
विधाता बनने का दर्प ,
बाज़ार में शिखर बनने का जूनून -------
** कदाचित उठते --
देने को आशीष ,
करने को प्रणाम ,
देने को सम्मान ,
बनते आशा की ज्योति ,सुने दृगों के ,
जो प्रतीक्षा में हैं /
**मिटती हस्ती ,सदाचार में ,
अमर होते हस्ताक्षर ,
सहेजो संस्कारों को ,
ज्ञान के सजे हांथों ,
* जो बाज़ार में नहीं मिलते --------
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
khoobsurat aur prabhaavshali shabdoN se
saji-sanwari
shaandaar rachnaa
w a a h !!
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