बयाँ कर रहा है , जिस्म का
हर सुराख़ , गोली सीने में खायी है,
ये अलग है,लगाया सीने से एतबार था
नजदीक से गोली, अपनों ने मारी है-
पाबंद है लहू ,रगों में बहने के लिए
सडकों पर बहाना इल्म से धोखा है ,
नफ़रत कुफ्र से हो ,होनी भी चाहिए
इन्सान से हो , कहाँ लिखा है-
जब भी सिंकी रोटी, आग में सिंकी
जली भी आग में जब सलीका न आया
लड़े गए जंग , वजूद भी उसी से
दौरे उलफत या नफ़रत, रोटी ही खाया -
हमारे वजूद से ये दुनियां नहीं कायम,
बा - वजूद हैं दुनियां में हम भी,
किसके वजूद से किसका वजूद कायम है
जबाब आये , तो सवाल अच्छा है -
-उदय वीर सिंह
6 टिप्पणियां:
बहुत गहरी और प्रभावी रचना..
बहुत ख़ूब!
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 03-12-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1082 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत ही लाजवाब पोस्ट .. गहन भाव
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
बहुत ही लाजवाब पोस्ट .. गहन भाव
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
बहुत अच्छी रचना !
~सादर !!!
पाबंद है लहू ,रगों में बहने के लिए
सडकों पर बहाना इल्म से धोखा है ,
नफ़रत कुफ्र से हो ,होनी भी चाहिए
इन्सान से हो , कहाँ लिखा है
बहुत बढ़िया ..
बांके बिहारी कहाँ मिलेंगे ?
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