जिंदगी के रंग कुछ ....
जिंदगी के रंग कुछ काले
उदय कुछ सफ़ेद निकले -
रास्ते के मुसाफिर लुटेरे
कुछ पाक दरवेस निकले -
मिली हमें फूलों की सौगात
जब काँटों के देश निकले -
चला था नगर अपने गाँव
मैं परदेशी वो परदेश निकले -
दिल में जगह थी थोड़ी दे दी
सच के लिबास फरेब निकले -
डूबने लगा सफ़ीना गैरों की कौन
अपने भी छोड़ निकले -
जानवर तो जानवर आखिर
कुछ जानवर संतों के वेश निकले -
उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 6-8-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2059 में दिया जाएगा
धन्यवाद
यथार्थपरक सुन्दर भावाभिव्यक्ति ....
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