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पढ़ो न पढ़ो गीत रचते रहेंगे।
पग गंतव्य की ओर चलते रहेंगे।
आएगा मधुमास पतझड़ के पीछे
रंग लेकर कई पुष्प खिलते रहेंगे।
बुझा दे पवन वेग आले के दीये
हृदय में जले दीप ,जलते रहेंगे।
तपेगी अगन में जहां भी ये धरती
नेह ले नीर बादल बरसते रहेंगे।
दीवारों के निर्माण होते रहे हैं,
मगर द्वार उनमें भी खुलते रहेंगे।
कटीली हवावों ने फाड़े वसन को
पैरहन अपने पैबंद सिलते रहेंगे।
उदय वीर सिंह।
3 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 नवंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 03 नवंबर 2022 को 'समयचक्र के साथ बदलता रहा मौसम' (चर्चा अंक 4601) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
सुन्दर प्रस्तुति।
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