जब माली ही झंखाड़ों को जमने की इजाज़त देता है।
सिर्फ मधुवन ही नहीं रोता, पतझड़ भी छुपकर रोता है।
बाली धान और गेहूं की,गुल गुलाब गुम जाते हैं,
फसल अफ़ीम की लहराती जब बीज ज़हर का बोता है।
मौसम तो दस्तक देते हैंअपने आने की और जाने की,
बर्बादी ही मिलती है जब माली राजमहल में सोता है।
उदय वीर सिंह।
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