शनिवार, 9 अप्रैल 2022

गंगो जमन कहिए..


 





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बिछाकर बारूद उसे गुले गुलशन कहिए।

तेज़ाब की बूंदों को मासूम शबनम कहिए।

जहां  बंद  हों  सारे  दरवाजे सवालियों के,

उसे  इंसाफ  का कामिल अंजुमन कहिए।

दफ़्न  हो रही हैं जहां मसर्रतों की दुनियां,

उन्हें बंजर नहीं हंसता हुआ चमन कहिए ।

लिखी जाएं आदिमता  की तल्ख इबारतें,

इन्सानियत के वरक पर दौरे सुखन कहिए।

इंसानियत को छोड़ सब जायज हो जाएगा

बहती हों खून की धार गंगो जमन कहिए।

उदय वीर सिंह।

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