🙏🏼नमस्कार मित्रों!
बुलबुलों की नाव से उस पार जाना चाहता।
कल्पना के दीप से उजियार पाना चाहता।
कैद है प्राचीर में दासता - ए- नींद की
दफ़्न करके हौसले सिंहद्वार पाना चाहता।
मौत की आवाज से कांपते हैं पांव थर थर
आंसुओं की धार ले अधिकार पाना चाहता।
बेड़ियां हैं स्वर्ण की मुस्करा रहा है डाल कर
बेच करके आत्मा संस्कार पाना चाहता।
उदय वीर सिंह।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें