शनिवार, 27 जुलाई 2019

कंगन भी कटार हो जाता है जी ..

नीर भी अंगार हो जाता है जी 
रिश्तों का व्यापार हो जाता है जी- 
जब चूड़ियों का मोल लगने लगे
कंगन भी कटार हो जाता है जी - 
बिकी हुई जुबान की महफ़िल में 

गूंगा भी असरदार हो जाता है जी -
दृष्टि पहचान की जब खो जाये, 
चन्दन खर-पतावार हो जाता है जी -
जव मुंह चुराने लगे वफ़ादारी, 
मंगल भी इतवार हो जाता है जी -
जब प्यास खून से बुझने लगे ,
सूना-सूना संसार हो जाता है जी -
उदय वीर सिंह
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2 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…


जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
27/07/2019 को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......

अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर सृजन।