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राहें मुश्किल थीं,या हमने मुश्किल बना दिया।
काम आ जाती किश्ती अपने हाथों जला दिया।
जिसने वज़ह दी हंसने की बाद बर्बादियों के,
ख़ामोशियों की दे हवेली उसे हमने रुला दिया।
कहा था भूल जाना,ये दुनियावी मेले हैं वीर!
उसने तो याद रखा, मगर हमने भुला दिया।
नफ़ा नुकसान की तिजोरियों को सहेजते रहे,
नफ़ाअपना उसे नुकसान का सिलसिला दिया।
उदय वीर सिंह।
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