शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

इश्तिहार दे गया


 




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सुलझे हुए शहर में कोई  इश्तिहार दे गया।
थी  प्यार की  जरूरत वो हथियार दे गया।
उधड़ी हुई कमीज संग उलझा हुआ रफूगर,
टाँकने थे बटन कमीज के तलवार दे गया।
इस छोर से उस छोर तक बहती रहीं बेफिक्र
हवाओं  को  रोकने को कई दीवार दे गया।
ताजी ख़बसर में क्या है शरगोशियाँ लबों पे
बिखरे पड़े हैं दर-दर बासी अखबार दे गया।
उदय वीर सिंह।
7।7।22

1 टिप्पणी:

How do we know ने कहा…
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