वे दिए जला रहे हैं ,हम दिल जला रहे हैं /
मंदिर में सिर झुकाकर, मधुशाला में जा रहे हैं -----------
कुछ आँचल जला हुआ है ,कुछ आँचल सवाली है ,
क्यों पतझड़ में पल रही ? फूलों की डाली है
कांटे मुस्करा रहे हैं ,हम आंसू बहा रहे हैं ------------------
नीले गगन के छांव में , करता है कोई बसेरा ,
मंजिल को याद करके करता है कोई सवेरा /
वो मंजिल को जा रहे हैं , हम मंजिल बुला रहे हैं ---------------------
वो अपना है ,ए पराया ,यह बाँट क्यों रहे हैं ? ,
इन्सान बनना हमको , शैतान बन रहे हैं /
वो खुशिंयां लूटा रहे हैं ,हम खुशिंयां जला रहे हैं -------------------------
संभव है दो किनारों ,पुलों से तेरा मिलना ,
चमन हरा रहेगा ,दरिया के साथ चलना /
वो उपवन सजा रहे हैं , हम पतझड़ बुला रहे हैं ------------------------
चाँद पर जानेवाले विकासवाद बो रहे हैं ,
आपस में लड़ने वाले ,अलगाववाद , बो रहे हैं /
सब कांटे, जला रहे हैं हम ,माली जला रहे हैं -----------------------
गंगा को अपने हांथों गन्दा हम कर रहे हैं ,
संस्कृति को अपने हांथों ,नंगा हम कर रहे हैं /
उदय , दिवाली मना रहे हैं ,हम घरवाली जला रहे हैं ---------------------
उदय वीर सिंह .
१३/११/२०१०.
2 टिप्पणियां:
गंगा को अपने हांथों गन्दा हम कर रहे हैं ,
संस्कृति को अपने हांथों ,नंगा हम कर रहे हैं /
उदय , दिवाली मना रहे हैं ,हम घरवाली जला रहे हैं --
सुन्दर अभिव्यक्ति
आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
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