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सभागार वहशी हो ..
क्या होगा सत्य का जब
समाचार वहशी हो जाये।
क्या होगा कलम का जब
अख़बार वहशी हो जाये।
क्या होगा निति व नियोगों
का जब वो कर्क बनने लगें,
क्या होगा द्रौपदी का जब,
सभागार वहशी हो जाये।
क्या होगा मुसाफ़िरों का जो
सिम्त वसूलने लगे खिराज,
क्या होगा साँसों का जब
बयार वहशी जो जाये।
मुखबिर हो जाये दहलीज
दे जब आंगन ही रुसवाई
क्या होगा मंगल कंगन का
जब कटार वहशी हो जाये।
उदय वीर सिंह
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