शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

जाल पर्दे में है।


 



..मशाल पर्दे में है..✍️


अंधेरा तब तक है जबतक मशाल पर्दे में है।

ख़ामोशी तबतक है जबतक सवाल पर्दे में है।

सड़कें उदास, सन्नाटों से भरी ,माजरा क्या है,

वीरानगी तबतक है,जबतक जमाल पर्दे में है।

रंगों शबाब महफ़िल का मुकम्मल नहीं हुआ,

जश्न आधा अधूरा है जबतक गुलाल पर्दे में है।

हर जुबां तहरीरो वरक तस्दीक में नज़र आये,

बुलंदियां  ख़्वाब हैं जब तक ख़्याल पर्दे में है।

बहेलिए की मकबूलियत इश्तिहारों से मिली,

दाने तो ऊपर-ऊपर दिख रहे जाल पर्दे में है।

उदय वीर सिंह।

1 टिप्पणी:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार 21 जनवरी 2023 को 'प्रतिकार फिर भी कर रही हूँ झूठ के प्रहार का' (चर्चा अंक 4636) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।