शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

फ़रेब की छत गिरी है,....

 🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों!

बुलंदियों पर रही नफ़रत तो प्यार भी मुमकिन।

फ़रेब की छत गिरी है,  तो दीवार भी मुमकिन।

दर्द का बुत  हो  जाना  दहशत की पेशबंदी है, 

कागज  है कलम है , तो अख़बार भी मुमकिन।

रंग कोसने लगे अपनी मुख़्तलिफ़ पैदाइशों पर

सवाल उनकी हाजिरी पर तकरार भी मुमकिन। 

बे-वक्त है माजी के पन्नों का,सरे-आम हो जाना

कागजी कारवां है कागजी सालार भी मुमकिन।

उदय वीर सिंह।

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