संस्कृतियों के हजारों साल लगे,उन्हें महान होने में।
दिन के दो-चार लगे बेबसी काअफग़ानिस्तान होने में।
जिस जमीं पर इंसानियत के गुलजार थे सोणे चमन,
बारूदों को अच्छा नहीं लगा बुद्ध का बामियान होने में।
जिन आंखों ने मांगी जिंदगी व सलामती सबकी,
दर-बदर ठोकरों में देख शर्म आती है इंसान होने में।
उदय वीर सिंह।
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वाह
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