फ़ैसला निजाम के हक़ में।
दर्द साराआवाम के हक़ में।
जमीं आई बागवान के हिस्से,
गुलिस्तां तूफ़ान के हक में।
पसीना मेहनतकश के हिस्से,
शोहरत सुल्तान के हक़ में।
भरोषा था जिन्हें सितम पर,
वो गये बे-ईमान के हक में।
लिएअमन का इश्तिहार गले,
मौत लिखा गुलफ़ाम के हक़ में।
बे-जुबान हो गये न जाने क्यों
था बोलना हिंदुस्तान के हक में।
उदय वीर सिंह ।
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