मंगलवार, 31 अगस्त 2021

आ जाओ अब हे केशव..


 





आ जाओ अब हे केशव!

हे मोहन तेरी अकथ प्रतीक्षा

पांडव भी राह भुला बैठे।

कौरव राह लगी सुंदरतम

मारग शांति जला बैठे।

कौरव तो कौरव क्या कहने

युद्ध अशांति ही भाते हैं,

हे केशव सत्ता तीरथ सी

पांडव भी कीच नहा बैठे।

छद्म वेश में आवृत कौन?

ये तुम जानो तुम ज्ञानी हो,

पहचान हुई अब मुश्किल में

जन दोनों लोक गंवा बैठे।

आ जाओ अति देर हुई

ना जाने कित ओर कहाँ बैठे।

उदय वीर सिंह।

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