सच्ची , सांझी , प्रीत ना बोया ,------------
दया, क्षमा, का संग न बोया /
शांति न बोई ,सब्र न बोया ,
हृदय-हृदय में अमन न बोया ------------,
सुनी आँखों में स्वप्न न बोया
गुल- गुलसन का चमन न बोया /-------
जीवन बिता निंदा करते ,
मन मंदिर में नमन न बोया/
अमृत , कलश में विष , डाला ,
मीठे मधु रस बचन न बोया/----------
रूठी प्रीत परायी हो गयी,
निश्छल , निर्मल मन न बोया/
दंभ , द्वेष, पाखंड सराहा ,
प्यार, ललित सन्देश न बोया/--------------
हो अनाब्रित न लाज कही,
ढ्क देने को बसन न बोया,
टुटा पंख , पक्षी बिन तरुअर ,
बिखरी ठौर सदन न बोया /-------
उदय वीर सिंह .
बुधवार, 29 सितंबर 2010
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
सापेक्ष -निरपेक्ष
इस जमीं की ख़ुशी , इस जहाँ की ख़ुशी ,
साथ आया वही हम -सफ़र बन गया /
लेके गम , देना खुशियों को ,चाहत मेरी ,
लौट आये हंसी ,जो सबब बन गया ---
निकले तनहा , सफ़र ,तुम आ गए ,
हौसला इस कदर ,कारवां बन गया .-----
आत्म -बल का भरोषा, ले मजबूतियाँ ,
सूनी आँखों के सपने संवरने लगें /
शिक्षित ,संगठित , शक्तिशाली, उदय ,
लड़खड़ाते कदम ,जब थिरकने लगें /
स्वावलंबन की धुन, साथ सम्मान भी ,
कदम मिल चलें , तो डगर बन गया /
हर भारतवासी, निवासी, इकाई बने ,
जलाये दिए , जहाँ दिनकर ना हो /
क्यों बंचित रहे मेरा शालीन भारत ,
प्रवक्ता बने ये , निरुत्तर ना हो /
सबको संज्ञान देने का संकल्प है ,
दर्द अपना लिया ,बे-खबर हो गया /
उदय चाहता दो कदम साथ चल ,
रंग भर लो , सपनों का सहर बन गया /
---- उदय वीर सिंह
२८/०९/२०१०
सोमवार, 27 सितंबर 2010
सम्बेदना
काशी काबा के दर पे झगरते रहे /
घृणा से हम दमन को भरते रहे /
क्या टुटा, क्या छूटा, न सोचा कभी ,
ताल,सुर के बिना हम थिरकते रहे /
आस ले,फासले कुछ काम तो हुए ,
एक दिशा में पगों का गमन तो हुआ /
साथ चलते रहे बात बन जाएगी ,
दो रूठे दिलों का मिलन तो हुआ/
आंधियों का सहर दीप जलते रहे -
लहरों का उठाना मुनासिब तो है ,
बह के लहरों संग जाना सहादत नहीं /
चुन लो मोती अमन के,पा गहराइयाँ ,
डूब जांए कही तो शिकायत नहीं /
घृणा से हम दमन को भरते रहे /
क्या टुटा, क्या छूटा, न सोचा कभी ,
ताल,सुर के बिना हम थिरकते रहे /
आस ले,फासले कुछ काम तो हुए ,
एक दिशा में पगों का गमन तो हुआ /
साथ चलते रहे बात बन जाएगी ,
दो रूठे दिलों का मिलन तो हुआ/
आंधियों का सहर दीप जलते रहे -
लहरों का उठाना मुनासिब तो है ,
बह के लहरों संग जाना सहादत नहीं /
चुन लो मोती अमन के,पा गहराइयाँ ,
डूब जांए कही तो शिकायत नहीं /
बिन -पलक
प्रीत का रिश्ता दिल से टुटा ,
व्यापार हो गयी -----------------
कली का रिश्ता , चमन से टूटा ,
खार हो गयी ---------------------
आंशु का रिश्ता ,नयन से टूटा ,
जलधार हो गयी ---------------
बिन-ध्वनि दर्पण टूट गया ,
बिम्ब , खंड , में बिखर गया--- ,
झरते नयन , सरिता बन बहते ,
स्नेह का आचल छूट गया --------
छलके नयन, रोई भर -आचल ;
कश्ती बिन पतवार हो गयी ------
तकते नयन ,नेह बिन सुने ,
उदय सून्य लाचार हो गयी -------
उदय वीर सिंह .
०३/०३/२००९
व्यापार हो गयी -----------------
कली का रिश्ता , चमन से टूटा ,
खार हो गयी ---------------------
आंशु का रिश्ता ,नयन से टूटा ,
जलधार हो गयी ---------------
बिन-ध्वनि दर्पण टूट गया ,
बिम्ब , खंड , में बिखर गया--- ,
झरते नयन , सरिता बन बहते ,
स्नेह का आचल छूट गया --------
छलके नयन, रोई भर -आचल ;
कश्ती बिन पतवार हो गयी ------
तकते नयन ,नेह बिन सुने ,
उदय सून्य लाचार हो गयी -------
उदय वीर सिंह .
०३/०३/२००९
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