शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

- कभी उदासोगे नहीं -

मिला है प्रेम का सागर तुमको  
कभी प्यासोगे नहीं -

मधुराधर में समाये गीत मृदुल  
कभी उदासोगे नहीं -

तेरे पांव के निचे पुष्प बिछे हैं 
लडख़ड़ाओगे नहीं-

ये बात अलग है प्रीत मेरे, जाकर 
फिर आओगे नहीं -

पूछेगा हृदय जब अंतस की बातें   
क्या बताओगे नहीं-

भावों के बादल शब्दों से घिरेंगे 
जब अर्थों को पाओगे नहीं - 

                                  -  उदय वीर सिंह 





मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

क्या जमाना दे रहा है -



चाहता है  आदमी  क्या  जमाना दे रहा है -
इंसान   को  दगा  तो , इंसान  दे  रहा   है -

कोशिश तमाम  उम्र  की  परवान  न  हुई  
इंसानियत के सेज पर शैतान  सो  रहा है -

महफिलें  दर  महफिलें  रौनक  तमाम है 
बेईमान  हंस   रहा  है , ईमान  रो   रहा है -

हर शख्श परेशां है यक़ीनन  फूल के लिए 
शिद्दत से  अपने  बाग़  में  बबूल बो रहा है-

बुजदिली  की  आग  कुछ  तेज  हो  गयी है 
जलाकर अपना घर कितना खुश हो रहा है 

                                      -  उदय वीर सिंह 




शनिवार, 21 दिसंबर 2013

अपनी बेटी मिटाते हो कैसे-

खंजर  उठा  अपने  हाथों  में  अम्मा 
बेटी    पर   अपनी   चलाते  हो  कैसे -

निमंत्रण   पर  तेरे  चले  आये  अम्मा
बे -आबरू करके दर से उठाते हो कैसे -

तू  भी  बेटी  किसी  की  बेदर्द  अम्मा 
कोख में अपनी  बेटी मिटाते  हो कैसे-

दर्द नेजे से  कम तेरी नज़रों से ज्यादा 
मैला आँचल समझ फेंक आते हो कैसे-

रुखसती  में बहुत  याद आयेगे अम्मा 
अर्थी ,डोली  के  बदले  सजाते हो कैसे -

जख्म  देता जमाना कदम दर कदम 
सृष्टि की  सहचरी  को भुलाते हो कैसे -

                                   -   उदय वीर सिंह

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

- इबादत नहीं आती -

टुटा हादसों में कम आदमी से ज्यादा  
आदमी बात समझ में क्यों नहींआती -

टुटा पत्थरों से कम  नफ़रत से ज्यादा 
दिल , बात  समझ  में क्यों नहीं आती-

खामोशियों से सूखता, प्रवाह भाषा का 
रेगिस्तान   से  गंगा , कभी नहीं आती-

दर्द  का  डर, गम हो  बिछड़  जाने का, 
उस दिल में शहादत की रौ नहीं आती -

तन आया मंदिर में मन माया की छाँव 
झुका  लेने  से सिर इबादत नहीं आती-  

                               -  उदय वीर सिंह 

रविवार, 15 दिसंबर 2013

इबादत की बात करता है-

नीचे  पैरों  के  जमीं  नहीं  वो 
असमां   की   बात   करता है 
न  वास्ता रस्मों -रिवाज  का 
रहनुमा   की   बात  करता है -

अपनी    जेब   में    रखता  है   

चाँद   सूरज   सितारे तोड़कर 
जो  देखा   नहीं  अपना चेहरा 
हिन्दुस्तां  की  बात  करता है - 

न   जाना  मिजाज शोलों  का 

जलाने    की   बात  करता  है 
रखता  है   फासले    हाथों   में 
वो  मुकद्दर की  बात करता है -

मजहब   क्या   है   इंसान  का 

नहीं  मालूम , बांटता  है  दिल  
पहचान  नहीं  एक  हर्फ़ से भी 
वो किताबों  की बात करता है -

उजली  कमीज छोड़ा नहीं घर 

पीता रहासिगार सियासत का  
जो गवाह है शहीदों के खिलाफ
शहादत   की   बात   करता  है -

घोंटता है गला, इंसानियत का 

वो  शराफत की बात करता है-    
न झुका सिर,माँ-बाप के अदब 
वो  इबादत  की बात करता है-

                         -  उदय वीर सिंह 


गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

जो देना तो प्यार मुझे .....

क्या   मांगू   दाते   तुमसे 
जो  देना  तो   प्यार  मुझे ,
जर्रे   को    पहचान  दिया 
जिसका   है  आभार  तुझे -

मेरी  रातें  दिन  मेरे   सब 
बख्सी    दात   तुम्हारी  हैं 
कर    पाँउ     तेरा    वंदन  
देना इतना अधिकार मुझे- 

खाक    तेरे   दर   की  होउं  
मेरा   भाग्य   उदय   होगा 
जब  नाव भंवर में मेरी हो
देना    तूं     पतवार   मुझे -  

छोड़   चले   कर   मेरा  मेरे  
तेरी   मुझे   पनाह    मिली 
तूं   दयाल  बख्संद  पियारा
देना    तूं    अंकवार   मुझे -

क्या    मांगू    दाते   तुमसे ,
जो   देना   तो   प्यार  मुझे -

                 -   उदय वीर सिंह 



रविवार, 8 दिसंबर 2013

बड़ा यह देश है -

कहीं कुछ जल  गया ,कुछ जल  रहा
कुछ  जलना  कहीं  अभी  भी  शेष है -

कहीं   घर, संस्थान     उद्यान   गौरव
कही  जला चिर मान  भग्नावशेष  है-

जला  हृदय  कहीं  ,सम- भाव  वैभव
जली  कहीं  पुण्य  संस्कृति अशेष  है -

हिल रही बुनियाद भूमि  दलदली हुयी
प्रबुद्ध उद्दघोष नवनिर्माण का सन्देश है -

जल  रहा  मानस , आग  जलती  रहे
चिता द्रोहियों की जलनी अभी  शेष है -

अवांछित रीत का संज्ञान ले ले शौर्यता
किसी व्यक्ति पंथ से कहीं बड़ा ये देश है -

                                   -  उदय वीर सिंह



                      

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

उत्सर्ग- यथेष्ट



प्रतिकूल  प्रवाह  का  गामी  ही 
गिरि , हिमशिखर  को पाता है- 
जीवन   का    उत्सर्ग      यथेष्ट 
पुनः     जीवन    पनपाता     है -

जो   टूट   गया   वह   भंगुर   है 
नीर - क्षीर   न  भंगुर  होता  है-
सागर में,  कलश में, काया   में
वांछित    स्वरुप   धर   लेता है-   

मूल्यों का उत्सर्ग अतिरंजन है 
अतिवेदन तो विष -पथ देता है- 
जीवन की शाम कोई शाम नहीं
मिट नवल - प्रभात,यश देता है -

कर  यत्न  विषमता  सरल  बने
पद - चिन्ह प्रताप बन  जाता है-
वो  अपराध  हमेशा  किया करो
जो मानव  को  प्यार दे जाता है -



                                        - उदय वीर सिंह

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

जन्म लेती प्रीत अंतस



जन्म    लेती    प्रीत   अंतस 

तब   सृजन   आकार   लेता -
अद्दभुत प्रगल्भ कोपलों  को 
नव     प्रखर    आधार   देता -

बिहँस    उठता  मान  पियूष 
पल    मंजरी    की   गोंद  में ,
चिर प्रतीक्षित सौंदर्य श्यामा
सौम्य   नवल   संसार   देता - 

उत्सव   सहेजे    अंक  बसुधा 
संज्ञान    सलिला    बह   चले 
हो निंमज्जित स्नेह - रस में 
शुभ भाव - प्रवर आभार देता -

संवेदनाएं       बांचती       कथ    
वेदन- पृष्ठ   की    हर   पंक्तियाँ 
लालित्य  का  प्रतिमान   बांधे 
शौर्य का अप्रतिम संसार  देता 

                                   उदय वीर सिंह 

शनिवार, 23 नवंबर 2013

सोना,,,

लगातार,
गूंजती सायरन की
आवाज !
एक बख्तरबंद गाड़ी में
लाया गया मरीज
सदमें से कोमा में है ...
बता रहा उसका मुनीम-
मालिक ने पढ़ी खबर-
विकास दर ऊँची
सोना गिरा निचे ...
मालिक भी गिर पड़े  औंधे मुंह  ... |
सवाल जीवन का है
भाव सोने का बढ़ा दो ,
मालिक को बचा लो ...
वरना !
पछताओगे सोना
घर- घर में
पाओगे ..... |

                 - उदय वीर सिंह

रविवार, 17 नवंबर 2013

भारत - रत्न.

सितारों  से  आगे   की  बातें  बहुत हैं ,
अभी   तो  घरौंदा  जमीं  पर बना दो-
 
बह  रहा है लहू आज  तक जिस्म से 
सपूतों के जख्मों पर मरहम लगा दो -

लुटाता वतन  अपने सीने की उल्फत  
राष्ट्र भक्तों के जीवन का जज्बा बता दो -

सूख जायेगी जो राष्ट्र भक्तों कि सरिता ,
छोड़   जायेंगे   सौदाई  पंछी  बता दो -

भारत - रत्न  , सिर्फ  सेवादारों   का है 
तनख्वाहियों को उनका माजी पढ़ा दो -

                                       उदय वीर सिंह 

[ref..यह सब Sachin R. Tendulkar vs. Assistant Commissioner of Income-tax, Range 193/ IT APPEAL NOS. 428 TO 430 AND 6862 (MUM.) OF 2008 के आधिकारिक दस्तावेज़ में दर्ज़ है। तो इन भाई सा’ब को खेल के लिए कोई सम्मान कैसे दे सकती है सरकार? जब वह खुद कह रहे हों कि he is a popular model who acts in various commercials for endorsing products of various companies… A major part of the income derived by him during the year is from the exercise of his profession as an ‘actor’ in these commercials... the income derived by him from ‘acting’ has been reflected as income from “business & profession”!!
और तो और, न्यायालय मे दिए शपथपत्र (जो अब इनकी नाक की नकेल बन जाएगा) मे ये लोग चीख चीख कर कहते कि हम तो भारत काप्रतिनिधित्व ही नही करते, ना ही हम सरकार से जुड़े है, हम तो सिर्फ़ एक क्लब है जहाँ कुछ खिलाड़ी हमारे कर्मचारी है, और अपने कर्मचारियों को खेलने के लिए हम विदेशों मे भेजते है। ना तो हम भारत मे क्रिकेट के सरोकार से जुड़े है और ना ही हम खेल मंत्रालय के अधीन है। पूरा शपथ पत्र अगर आप पढे तो आप इनकी महानता के गुण गाने लग पड़ो।
]






जग चानड़ होया ...


आदि गुरु नानक देव जी के प्रकाशोत्सव की पूर्व संध्या पर समस्त मानव - जाति को लख - लख बधाईयां व प्यार | 
**********************
  " सतगुरु नानक परगटिया मिटी धुंध जग चानड़ होया "
    मिती कार्तिक पूर्णिमा,सुदी 1526  [A .D .1469 ] ननकाना साहिब [ तलवंडी -राय भोई ] लाहौर से दक्षिण -पश्चिम लगभग चालीस किलोमीटर दूर [अब पाकिस्तान में ] परमात्मा की समर्थ ज्योति का  उत्सर्ग |  पिता ,कालू राम मेहता और माँ, त्रिपता की पवित्र कोख  से जग तारणहार बाबे नानक का देहधारी स्वरुप आकार पाता है |  पूरी मानव जाति इस समय  वैचारिक तमस के आगोश में ,भ्रम की  अकल्पनीय स्थिति  बिलबिलाती मानव प्रजाति ,कही कोई सहकार नहीं ,किसी का किसी से कोई सरोकार नहीं, धार्मिक आर्थिक सामाजिक सोच  नितांत  कुंठा में डूबी, अलोप होने के कगार पर, विस्वसनीयता का बिराट संकट ,दम तोड़ती मान्यताओं की सांसें ,जीवन से जीवन की उपेक्षा ,दैन्यता की पराकाष्ठा, दुर्दिन का चरम  , यही समय था जब परमात्मा ने देव - दूत को भारत- भूमि पर उद्धारकर्ता के रूप में आदि गुरु नानक  देव जी को पठाया  | इस पावन- पर्व पर परमात्मा  के प्रति कृतज्ञता व आभार, साथ ही  समस्त मानव जाति को  सच्चे हृदय से बधाईयां व शुभकामनाये देता हूँ |
    बाबे बाबे नानक का मूल - दर्शन -
-आडम्बरों से दूर होना
-मनुष्यता की एक जाति
-विनयशीलता व आग्रही होना
-पूर्वाग्रहहीनता |
-एकेश्वरबाद का स्वरुप ही स्वीकार्य
-जीवन के प्रर्ति उदारता, दया, क्षमा
-कर्म की प्रधानता एक अनिवार्य सूत्र
-ज्ञान और शक्ति का बराबर का संतुलन
- निष्ठां संकल्प और कार्यान्वयन
-जीवन की आशावादिता
आत्मा की मुक्ति  का स्रोत परमात्मा की अनन्य भक्ति
-आचरण और आत्म शुचिता  का सर्वोच्च प्राप्त करना
-ईश्वर में अगाध  आस्था  |
   आदि- २  | गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को पाने ,पहचानने का माध्यम गुरु को बताया ,
  " भुलण अंदरों सभको,अभुल गुरु करतार " 
और
 " हरि गुरु दाता राम गुपाला "
     बाबा नानक का कथन , समर्पण और विस्वसनीयता के प्रति सुस्पष्ट  है -
                    "गुरु पसादि परम पद पाया ,नानक कहै विचारा "
बाबा नानक परमात्मा को इस रूप -
           "एक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभउ  निरवैर अकाल मूरति अजुनी सैभंगुर परसादि " 
  में  ढाल कर  समस्त वाद -विवाद को ही जड़ से समाप्त करते हैं ,और यही शलोक सिखी का मूल मंत्र बन  जाता है  |
   बिना किसी की आलोचना , संदर्भ या विकारों को उद्धृत किये  बाबा नानक  समूची मानवता को प्रेम  का सन्देश देते हैं कहते हैं -
    माधो , हम  ऐसे तुम ऐसो तुम वैसा  |
     हम  पापी तुम पाप खंडन निको ठाकुर देसां
    हम  मूरख तुम चतुर सियाने ,सरब कला का दाता            ....माधो . |

     जीवन की मधुरता ,सात्विकता और रचनाशीलता में है , बाबा कैद में भी ,अपनी उदासियों में भी ,निर्विकार भाव से अहर्निश जीता है ....उसे परमात्मा की  ओट पर पूरा विस्वास है ,-
          "साजनडा  मेरा साजनड़ा  निकट खलोया  मेरा  साजनड़ा "  |
  बसुधैव कुटुम्बकम कि वकालत करते हुए बाबा  जी ने अन्वेषण ,अनुसन्धान को कभी रोका न नहीं ,मिथकों को तोड़ स्वयं भी देश से बाहर गए और उनके सिख विश्व के प्रत्येक भाग में उनकी  प्रेरणा से यश व वैभव सम्पदा से सुसज्जित हैं . |  ज्ञानार्जन  को सिमित या कुंठित नहीं किया . |
  समाजवाद का बीज बाबा नानक ही बोता  है ,कर्म कि रोटी को दूध कि रोटी साबित  करता  है -
" किरत करो बंड  के छको ". |
    आदि गुरु मानव -मात्र  कि सेवा मे स्वयं को  निंमज्जित करते हैं ,  सर्व प्रथम मानव मात्र के लिए भला चाहते हैं ,बाद में अपना स्थान रखते है -
         " नानक नाम चढ़दी कलां ,तेरे  भाणे  सर्बत दा  भला "
अंत में लख -लख  बधाईयों के साथ -
          मुंतजिर हैं तेरी निगाह के दाते ,
          इस जन्म ही नहीं हजार  जन्मों तक  । 
   
  
                                                                                    उदय वीर सिंह 

       

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

लिखता हूँ इन्कलाब ,...

उसके नोचे गए बदन की पड़ताल में 
दूरबीन लगाता है, 
बहसी घूमता है सरेआम,
ये क़ानून तलाशता है -
**
लिखता हूँ इन्कलाब ,
बेअदब हो जाती है कलम ,
मुर्दों का शहर किसको जगा रहे हो -
**
तेरी मेंहरबानियों का मुझे गिला है ,
गर न होतीं तो मुझे रास्ता मिल गया होता -
**
जज्बातों  के घरौंदे टूट जाते हैं अक्सर 
पत्थरों को  जज्बात देके क्या करोगे- 
 **   
                          - उदय वीर सिंह .

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

सारी पीर दे दे -




                    
मेंरे हाथों  में  अब मेरी तकदीर दे दे 
जगह  प्यादे  की   मुझे  वजीर दे दे-

फतह  मेरी  हो जब  जंग लड़ी जाये 
कभी हारा न हो उसकी शमशीर दे दे-

मुमताजी यादों में अपना ताज होगा 
ख्वाबों का ही सही मुझे  जागीर दे दे-

लोग  कैसे  होते हैं क़त्ल बे-शमसीर   
मेरी  जुबान  को   वो  तासीर  दे  दे  -

मांगना  अच्छा  नहीं बार- बार ख़ुशी  
उदय  मेरे  हिस्से की  सारी पीर दे दे  -

                                - उदय वीर सिंह 

  


रविवार, 3 नवंबर 2013

डालर की तरफ-


दिल  में  नफ़रत  हाथ  में  सपोला है 
मोहब्बत  भी  है तिजारत  की तरफ -  

वक्त     कुछ    बदला  बदला  सा  है 
आ  रही   है  गेंद  बालर  की  तरफ -

पाउंड  की  अब  लालसा है ह्रदय में
रूपया  छोड़   हाथ  डालर की तरफ-

सन्देश में है फूल  की  जगह  खंजर 
वन्दगी छोड़ ,हाथ कालर की तरफ-

गीत  नहीं  शोकगीतों की  आमद है,   
कान खड़े  हैं , हर  आहट  की तरफ - 

अंदर  बार सजे हैं  नाजनी की तरह
पेट  का  सवाल है ,बाहर   की तरफ -

हर्फ़  किताबों के कुछ मायने कुछ और 
शायद हो गए हम राहे-कायर की तरफ - 

                                  - उदय वीर सिंह .
  


  

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

जो दीपों के स्वर होते....

जो    दीपों     के    स्वर   होते
तो अपनी  पीड़ा वे  कह   लेते  -

जितनी    लौ    उतनी   शोभा
जितनी ज्वाला  उतना प्रकाश-
दग्ध   ह्रदय    सहता   जलता
मानव    मन    पाता    उजास-

जग  की  रीत जला कर देखो
जलता    देख    हर्षित    होते -

मंदिर  वो  मस्जिद   में  जला
घर  आँगन , उपवन  में  जला
मद-  बसंत  पतझड़  में  जला
ग्रीष्म, शरद  सावन  में  जला-

कुछ  दर्द  पवन  ने लेना चाहा
एक  भीत  कवच  सी  रच देते  -

शिक्षालय  मदिरालय  में जला
देवालय   वेश्यालय   में   जला-
सवर्ण  कुटीर  महलों  में  जला
झुग्गी  में  अनाथालय में जला-

चुप  चाप जले  हर शाम जले
संवेदनहीन   जन    क्या  देते  -

मन    मयूर    जब   नृत्य   करे
जलती   ढिंग   दीपों   की  माला
जलता  हृदय  अभिनन्दन  थाल
जब   जले   दीप  सजती   शाला-

कौन  अंतस   की   आह  सुने
जो दो  बोल   प्रेम  के  गढ़   देते -


                       -  उदय वीर सिंह 

















बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

नैन उनके भी नम थे ......

नैन उनके भी नम थे ......

कभी  कह  सकेंगे  ज़माने को जाना 
उल्फत  भी  जिन्दा, थी  तेरे दम से -

निजामत  तेरी  थी, गुलशन भरा था 
खुशियां ज्यादा ,गम कितने  कम थे -

कोई जल गया कोई रुसवा हुआ भी
जब  तुम चले नैन,उनके भी नम थे -

किसकी ख़ुशी थी, किसके सितम थे 
सरमाया   दिल  के , बहारे  चमन थे- 

                                          - उदय वीर सिंह . 

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

हमें कहना नहीं आता-


उन्हें   सुनना   नहीं  आता
हमें    कहना  नहीं  आता-
उन्हें   मरना   नहीं  आता
हमें   जीना   नहीं   आता-
दे  जख्म  पर जख्म गहरे
कहते  सीना  नहीं  आता-
नंगे न हुए उनकी महफ़िल
कहते संवरना नहीं आता -
खोदे  खाईयां मेरी जानिब 
कहते  चलना   नहीं  आता -
प्यास पानी की, देते शराब
कहते हैं पीना नहीं आता -
कदम  चले  पूरब की ओर
कहते  मदीना  नहीं आता -
हैं  वो  बहारों में रहने वाले
कहते हैं पसीना नहीं आता-

                                  उदय वीर सिंह

सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

राष्ट्र है तो हम हैं...


तुम्हें चिंता है -
धर्म की ,जाति की
समुदाय, अपने फिरके ,कुटुंब की . |
तुम्हें चिंता है -
शुचिता की आडम्बरों की
झूठी शान व परम्पराओं की 
दम तोड़ती बहसी इच्छाओं की ... |
तुम्हें चिंता है- 
क्षेत्रवाद, बंशवाद की,
श्रेष्ठता, आदिम रीत -रीवाज  परलोकवास की ,
सरोकारहीन इतिहास की .. |
क्या राष्ट्र से पहले आते हैं 
ये तेरे फितूर......?
जब भी छुटा राष्ट्र-भाव 
तिरोहित हुआ मान 
सिमटती गयीं सीमाएं 
मिली दासता अपमान 
शायद भूल गया तो याद कर ....|
राष्ट्र है तो हम हैं ,
राष्ट्र के इतर कुछ भी नहीं 
कुछ भी नहीं ...
न हिन्दू 
न मुसलमान ....|

                    -  उदय वीर सिंह 



  

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

तेरा नाम ले लिया -

गलियों  में  तेरी  मैंने  मकान ले लिया
अपने नाम तेरा सारा इल्जाम ले लिया -

पूछा  किसी  ने  हमसे तेरा रकीब कौन
आया  जुबाँ  पहले  तेरा  नाम ले लिया -

तेरी  हसीन  गलियां  खोया मेरा वजूद
माना  सजा  को  मैंने  ईनाम,ले  लिया --

रांझे तेरी गलियां सोणी,सूनी कैसे होणी
हीर ने  छेड़े  गीत  पायल तान ले लिया -

मेरा  नसीब  तूं  तेरा  साथ  मेरा  साया
बदले बहार  के  हमने  तूफान ले लिया-




                                    -  उदय वीर सिंह

बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

उनको नजर आने दे -

उनको नजर आने दे -
--
सहरा  में  सावन , बरस  जाने  दे-
पीर पर्वत सी होई पिघल जाने दे -

गुलजार  गुलशन  तो  होगा उदय

दर से तूफान को, तू गुजर जाने दे -

कैसे  टूटी  कसम ,पूछ  लेंगे वजह

अपने कूचे में उनको नजर आने दे -

दीप बुझता है घर का तो बुझ जाने दे

रास्ते में मुसाफिर के जल जाने दे -

पत्थरों की तरह कोई जीना भी क्या

बनके जर्रा  हवा संग बिखर जाने दे -

                                       -  उदय वीर सिंह


रविवार, 13 अक्तूबर 2013

किसे जिंदगी की.....

किसे  जिंदगी  की.....
-
किसे   जिंदगी  की  जरुरत  नहीं  है 
किसने    कहा    खुबसूरत   नहीं  है -
-
हमने माना उदय हादसा जिंदगी है 
ये रुखसत कब होगी मुहूरत नहीं है -
-
ज़माने  ने  कब इसकी तारीफ की है
ख़ुशी कम इसे ज्यादा तकलीफ दी है -
-
देखो जहाँ जिंदगी जिंदगी जिंदगी है
प्यार में सिर्फ है, आतिशी  में नहीं है -
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फूल काँटों का दामन सांझी जिंदगी है 
जिंदगी एक सफीना हुकूमत नहीं है -
-
धूप  में  छाँव  में हर शहर-गाँव में  है 
 लगाओगे  क्या  इसकी  कीमत नहीं है -
-
                                        उदय वीर सिंह                  


   

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

गुलाब कहते रहे -

रेशम में लिपटे काँटों को
हम गुलाब कहते रहे -
नीव खोदी ही नहीं गयी मितरां
मकान बनते रहे-
जो बन न सका जुगुनू भी,रात का
उसे माहताब कहते रहे -
जो कर गया टुकड़ों में वतन
सिरताज कहते रहे -
शुमार कर दिया आतंकवादियों में जिनको
वो इनकलाब कहते रहे -
झूल गए फांसी पर मर्द हंसते -हंसते
ना-मर्द वाह- वाह कहते रहे -
सारा जीवन हिंसा में ही गुजर गया
वो अहिंसा का पाठ करते रहे-
सोचा नहीं अवाम की दर्दो आवाज क्या है
 सौदाई  कारोबार करते रहे-

                         -  उदय वीर सिंह  

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

खंजर छोड़ देना -



जब अभिव्यक्ति को पसीना आये 
कलम तोड़ देना -

जब अभिव्यक्ति ढूंढ़ने लगे  निजामत
शहर छोड़ देना -

जब  करने लगे हिमायत जुल्म की 
अदब  छोड़  देना -

बिके बाजार में सामान की तरह 
यक़ीनन दर  छोड़ देना -

अभिव्यक्ति किश्ती है, डूब जाने का, 
डर छोड़ देना -

अभिव्यक्ति बन जाये हथियार उदय 
खंजर छोड़ देना -

                                               उदय वीर सिंह .

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

आंचल खरीद लेते- -

  1. आंचल खरीद लेते-
    -
    बिकते अगर जो बादल
    बारिश खरीद लेते -
    बिकती अगर जो आँखें
    काजल खरीद लेते-
    शहर से लेकर गाँव
    करता रहा तलाश
    मिल जाते प्रेम के पांव
    पायल खरीद लेते -
    पीना शराब छोड़ उदय
    कुछ पैसे बचाया कर
    ढकने को किसी की आबरू
    आंचल खरीद लेते-
    रहा प्यास का रकीबपन
    होठों से कभी नहीं
    जो बिकतीं अगर घटायें
    सावन खरीद लेते -

    - उदय वीर सिंह


    Photo: आंचल खरीद लेते- 
-
बिकते अगर जो बादल 
बारिश खरीद लेते -
बिकती अगर जो आँखें 
काजल खरीद लेते-
शहर से लेकर गाँव 
करता रहा तलाश 
मिल जाते प्रेम के पांव 
पायल खरीद लेते -
पीना शराब छोड़ उदय 
कुछ पैसे बचाया कर  
ढकने को किसी की आबरू 
आंचल खरीद लेते- 
रहा प्यास का रकीबपन
होठों से कभी नहीं 
जो बिकतीं अगर घटायें 
सावन खरीद लेते -

               उड़ी वीर सिंह .

शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

जी ! आप बहुत अच्छे हैं

जी ! आप बहुत अच्छे हैं
इशारों में सबक देते हैं -

कभी देखी न जंग, रहे सिपहसालार
वक्त पर न  काम  आये  वो हथियार
वीरता की बैजयंती अनेकों सम्मान
म्यान  में  जंग  खाती  रही तलवार -

माहिर हैं पाने में पुरस्कार -
जी ! आप बहुत अच्छे हैं -

अभी तो जिश्म ,आबरू आचार बिका है
बेबसी विपन्नता लिए  लाचार  बिका है
आंसू व आवाज अब  कितने खामोश हैं
शरगोशियाँ हैं आज  समाचार  बिका है-

प्यार और जंग में सब जायज है
आप कहते हैं,जी ! आप बहुत अच्छे हैं
 
कितनी संजीदगी से बांटा है दिलों को
अब देश को बांटने पर  आप आमादा हैं
कितनी तरक्की  का हासिल है मुकाम
अब आप ही वजीर आप ही पियादा हैं -

झूठ कहते हैं लोग ,सिर्फ आप सच्चे हैं -
 जी ! आप बहुत अच्छे हैं

भूख भय भिन्नता पर कितना भरोषा है
छोरी-आवाम मजबूर उतनी करीब होगी
नजर जो नजर मिलाने की  कोशिश करे
जीतनी ऊपर उठी उतनी बदनसीब होगी -

वैसे नहीं हैं आप ,जैसा दिखते  हैं -
जी ! आप बहुत अच्छे हैं

         - उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

संग तराशोगे-

***
मूरत  निकल के आएगी 
जो संग तराशोगे-

आएगी दर मुकद्दर
अगर पता दोगे-

मुस्कराएगी ख़ुशी  तुमसे 
जब मुस्करा दोगे -

दिखेगा वो जो दिखा नहीं अब तक 
पर्दा जब उठा दोगे -

गुजर जाएगी गमें शाम पल में 
कोई गीत गुनगुना दोगे-

प्यार दिल में संजोये रखना 
मांगेगा कोई तो क्या दोगे -

                    उदय वीर सिंह . 

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

तेरा क्या जाता है -

तेरा क्या जाता है -
खेत हमारा अपना है
हम बोयें आलू  या  अफीम -
तेरा क्या जाता है -
अपने कुत्तों को रोटी 
ताज से मंगवा लेंगे-
गाय तो माता है उसको
 ब्रत    रखवा    लेंगे-
नागफनी हम बोयेंगे, न बोयेंगे बरसीम -
तेरा क्या जाता है-
देश  हमारा   अपना है
पैर   पसारे   सोना   है - 
ये  सोने    की   मुर्गी है 
इससे तो सिर्फ लेना है- 

शिकारी बने पाक या चीन 
तेरा क्या जाता है -
ताज   हमारा    तख़्त 
हमारा     क्यों   भूला-
राजा   तो    राजा  है,
चाहे  हो लंगड़ा- लूला-
राजतंत्र या लोकतंत्र  होंगे मेरे अधीन -
तेरा क्या जाता है -
आंसू   की  दरिया  होगी 
आंसू   का  सागर   होगा -
किश्ती पतवार नहीं होंगे
ना    कोई  माझी    होगा -
पीकर आंसू डूब मरेंगे जलीय जंतु व मीन-
तेरा क्या जाता है -

                                      - उदय वीर सिंह



रविवार, 29 सितंबर 2013

विषाक्त .

 -विषाक्त -
***
हैरानगी है, 
उसका हर लब्ज  था 
इंसानियत के खिलाफ। 
उसके कदम 
जमीं पर नहीं,
लाशों पर थे। 
हाथों में  कलम नहीं 
पिस्तौल थी ,
आँखों में प्यार नहीं 
नफ़रत थी 
बेसुमार। 
वो कल भी जिन्दा था 
आज भी है। 
आखिर !
क्यों है  ?
उसके संसकारों से 
इस ज़माने का
सरोकार।
  

                    उदय वीर सिंह 

बुधवार, 25 सितंबर 2013

जिसको अपना कहा -


जीवन   को  किसी ने मधुर 

किसी    ने     निष्ठुर    कहा -
सलिल   किसी   ने   ज्वाल  
फूल  किसी  ने पत्थर कहा-
-
सागर   किसी   ने  सरिता 
किश्ती किसी ने लहर कहा -
उपवन   किसी  ने  कानन 
गाँव  किसी  ने  शहर कहा-
-
मृत्यु  जीवन   का  गंतव्य    
भंगुर किसी ने  नश्वर कहा -
किसी ने मद किसी ने मधु 
अमृत किसी ने जहर कहा -
-
आत्मा  की    नीड़   किसी ने 
कर्मों   का     दर्पण       कहा  -
प्रतीक्षा   किसी    ने    त्याग  
किसी ने आहुति,अर्पण  कहा  -


देखने का दृष्टिकोण अपना है 
जीवन  तो  अंततः जीवन है 
फ़ानी है छोड़ जाता है आखिर  
जिसको सबने  अपना कहा -


                           उदय वीर सिंह . 

रविवार, 22 सितंबर 2013

सिया तो करो -

गुजर  जायेगी  जींद , जिया  तो  करो
थोड़ी - थोड़ी  प्रीत- मद पिया तो  करो-
**
पीर की व्यथाओं में प्रीत मूक जाये ना
धागे  हैं   नेह    के  कहीं  टूट जाये ना -
**
फटा  तेरा आँचल देख ,सिया तो करो -
**
पढोगे ह्रदय  से मीत प्रीत की रुबाईयाँ
आँचल  भरेगा  इतनी पाओगे खुशियाँ-
**
पाओगे   इतनी   प्रीत  दिया  तो  करो -
**
बिखर  जाएगी  टूट  सदमों में जिंदगी
जब  भी काम आएगी आएगी वन्दगी -
**
प्रेम की दवा को नियमित लिया तो करो -

**
                                    - उदय वीर सिंह .








बुधवार, 18 सितंबर 2013

..तो चाँद मांगता था


मैं  जब  भी   रूठता था
तो   चाँद    मांगता  था
थाली   में  भर के पानी
अम्मा   मुझे   दिखाती -

अमावस  की रात आती
मुश्किल  की बात होती
वो मामा  के घर गया है
आम्मा   मुझे    बताती -

पूनम    की    रात   का
शिखर युवराज चन्द्रमा
जीता  है  रण ,अंधेर से
किस्से   मुझे    सुनाती-

बादल कभी फुसला कर
उसे    परदेश    ले   गए
लग  गए  कई दाग वहां  
अम्मा   मुझे    दिखाती -

गांवों  में  उसके अक्सर
बाढ़     बहुत        आती
डूबने  से    उबरने     की
गाथा    मुझे      सुनाती-

घनी  शर्दियों में अक्सर 
बादलों   में   छिप  गया 
तारों की व्यग्रता उसकी
अठखेलियाँ        बढाती-

दूध  और  भात  का  उसे 
मधु   व्यंजन  पसंद  था     
इसी    बहाने       अम्मा 
अन्नप्रासन मुझे कराती-
  
              - उदय वीर सिंह 


शनिवार, 14 सितंबर 2013

और भी बहुत कुछ....

आज    का  समाचार
संपादकीय  सुविचार
और  भी  बहुत  कुछ
पढ़ा  लिया  तो   ठीक ,
न पढ़ा  तो अच्छा  है -

गुरु   ने    शिष्या  से
बाप  ने   बिटिया से
सहोदर    ने  अनुजा
संत   ने   श्रद्धालु  से-

तोड़ दी मर्यादा आचार -

बाबा   की     ठगहारी
शिक्षक शुद्ध व्यापारी
कामी   बना    मुरारी
दानी    बना  भिखारी-

खून से रंगा अखबार -

अभिनेत्री     को    गर्भ
अभनेता     को     शर्द
नेता   को    हुआ   दर्द
नामर्द   बना    हमदर्द-

मुखवाक  छपा चमत्कार -

कुत्ते    की    गुमशुदगी
स्वर्ग     की    सीढियाँ
रावन    का    रनिवास
भूतों     की    ड्योढ़ीयां -

का वर्णन , दर्शन साभार -

चपरासी  धन    लखपती
बाबू   मिला   करोडपति
अधिकारी का अकूत वैभव
लोक -सेवक   अरबपति -

न्यायमूर्ति का काला बाजार-

हरिया और  पूत  मरे भूखे 
गोदामों   में   सडा    अन्न 
आत्महत्या   करे   कृषक
मजदूर रोये व्याधि विपन्न-

सुरा सुंदरी से सज्जित डांस बार -


                          [मेरी एक कविता  का अंश.…. ]

                                         -उदय वीर सिंह  











बुधवार, 11 सितंबर 2013

अल्हड़पन -

आ खेलें !
बचपन-बचपन
ना हो  पटोले  स्वर्ण  जडित
न   हो रेशम  की  सेज भले-
आ छू लें नभ पहन  के  बोरे,
कितना अक्षत है अल्हड़पन -

धूल  - धूसरित  तन   मैला
मन उज्वल हिमगिरी जैसा
राग  -  द्वेष    से   दूर   बहुत
ह्रदय संकलित  है  सुंदरवन -

पुष्प सुगंध कली किसलय
लता- लिपटी झूलों से कहाँ
पग नेह लगे कंटक पथ सों
पुलक  उठता   है   अंतर्मन-

निश्छल मन के विह्वल पल 
आनंद   भरे ,    विद्वेष     दूर 
वात्शल्य  परोसे  हँसे अधर   
ऊँची   छलांग  मधुर जीवन  -

क्या  जाने  छल  छद्म, प्रपंच 
असत्य  प्रमाद  षड्यंत्र -हीन 
अपमान मान से  क्या  लेना 
पीया मद-प्रीतशैशव अनन्य- 

मदमाती   मिटटी   की  गोंद 
वसन-हीन तन  कांति   भरा
स्वर्ण  आभूषण  फीके लगते 
नैशर्गिक  रूप  सजा अनुपम -

                          -उदय वीर सिंह 

रविवार, 8 सितंबर 2013

कितने मुक्तसर होते हैं-

पथरायी आँखों में नूर नहीं रहा भले 
दिल में खूबसूरत नजर रखते हैं -

बरसाओ धूप के अंगारे चाहे कितने 

अपनी बस्तियों में शजर रखते हैं -

वीरान बेरौनक बदसूरत दिखता तन 

सीने में बेमिसाल शहर रखते हैं -

आफताबो ,माहताब पर अब यकीं न रहा 

माचिस की तीलियों में सहर रखते हैं -

फूलों में छुपा के नश्तर रखने वालों 

हम कागजी सही फूल मोहब्बत के रखते हैं -

कहा था टूटने से पहले हसीं  ख्वाब 

सुकून के दो पल  ने कितने मुक्तसर होते हैं-

 आसरा टूटता है छोड़ते हैं जब हाथ अपने

 गैरों के शहर में भी हमसफ़र मिलते हैं -  


                                     -उदय वीर सिंह 

शनिवार, 7 सितंबर 2013

साया

उनको मालूम है हुश्न तेरी मासूमियत 
रहो नकाब में चाहे ,
परछाईयाँ साथ चलती हैं -

जमाल से परछाईयों का वास्ता न कोई 
उनकी फितरत है निभाने की 
चाहो दूर होना वो साथ होती हैं -

न पूछती हैं तेरा मजहब फिरका,
वास्ता न कोई जमातो इल्म से ,
यक़ीनन पैरोकार तेरे वजूद की तेरा ऐतबार करती हैं -
                                                     
                                         -उदय वीर सिंह 

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

तेरा वंदन ...

सदैव की भांति आज भी गुरु शिक्षकों का हृदय से वंदन -

स्पंदन    गुरु      जीवन   के 
शत-  शत   बार  तेरा वंदन ...
आलोक  तिमिर में संजीवन 
अभिनन्दन   है अभिनन्दन

टूटे  कारा , अज्ञान  दर्प  की 
प्रज्ञा   बसती  है  मानस  में 
युग्म   स्नेह   के   बनते  हैं,
खिलते प्रसून वन-कानन में-

अभ्नव शिल्प के   अग्रदूत
मंगलमय   तुमसे   जीवन -

संवेदन    आचार      निहित 
विहित  होती  गरिमा तुमसे 
संस्कार संस्कृति पथ शुचिता 
मधु   सरिता  बहती  तुमसे -

आकार नियंत्रण सृजन सौम्य  
बस   जाता   बंजर    निर्जन -

नील  गगन, बसुधा  तल  में
चक्षु   तेरे    प्रहरी    सम   हैं 
देश , दिशा, कालों   के  ब्रती 
निर्देश अशेष नित निर्मल हैं -

जग   सोये   तू   ,जाग्रत  है
युग  पावन   सद्द   अंतर्मन -

                           उदय वीर सिंह