शुक्रवार, 31 मई 2019

ज़माना चाहता है -


जमाना चाहता है फ़क़ीर हुआ करे
हर गली चौबारे में कबीर हुआ करे-
इल्म्दा हो जाये हर आँख की पुतली
ईमान पर मिटने को जमीर हुआ करे -
गुलशन और गुलों की सरकार मांगिये
गुलों की गर्दिशी में दस्त शमशीर हुआ करे -
उदय वीर सिंह

सोमवार, 27 मई 2019

देशी हो गयी बेगानी परदेशी के लिए ....



 हमने ढोए दर्द लाखों परदेशी के लिए

देशी हो गयी बेगानी अंग्रेजी के लिए -
अपनी धरती अपना आँगन अपने चाँद सितारे
अपनी संस्कृति अपना वैभव हैं कैसे दूर बिसारे -
हम करते बेईमानी अंग्रेजी के लिए -
राग हैं अनुपम अद्दभुत रस हैं अलंकार की आभा
तन मन में हिंदी की रसना मधु-भाव पूर्ण मर्यादा -
क्यों कलम बनी प्रतिहारी अंगरेजी के लिए -
उंच नीच से ज्यादा अंतर परदेशी ने कर डाला
भाषा अपनी रही कलपती ले राष्ट्र-प्रेम की माला-
होई अपने घर अनजानी अंगरेजी केलिए -
उदय वीर सिंह






रविवार, 26 मई 2019

मर्यादा हित पगड़ी .....


सिक्खों ने मजलूमों और मर्यादा हित पगड़ी निसारी है ,
नमन उस शिक्षिका को रक्षार्थ शिष्य अपनी सारी उतारी है -
जंग लग गयी शमशीर में जिसने सिर्फ झूठी शान में ढोई ,
मर्यादा मानव धर्म की सेवा हमारी तेग अहर्निश उघारी है -
निरीह निर्बल बेकसों की लाश पर हो जब सल्तनत कायम
तब सिक्खी ढाल बनती है ,भले मिटती हस्ती हमारी है -
उदय वीर सिंह


अपना पैर होना चाहिए .....


हर हाल में चलने को अपना पैर होना चाहिए -
अगर गंतव्य पाना है, आलोचक गैर होना चाहिए -
अपमान के गांवों में सम्मान ढूढो,
संस्कार कहते हैं लबों पर खैर होना चाहिए -
अहसान करना जी कभी सन्दर्भ लेना,
नफा नुकसान से दूरी,मनस निरवैर होना चाहिए -
-उदय वीर सिंह

शनिवार, 25 मई 2019

मद की कंध गिरानी होती है ....


किसी धर्म -पंथ से दूर बहुत,राष्ट्र-राग गानी होती है,
अमरत्व मोक्ष से दूर बहुत,राष्ट्र की अलख जगानी होती है-
जब जब धर्म की स्याही से राष्ट्र-प्रलेख लिखे जाते,
दीन- दासता की सदियों तक पीर चुकानी होती है -
छल षडयंत्र पक्षपात मोह से वैर सदा रखना होता,
समतल पथ सम की रचना मद की कंध गिरानी होती है -
उदय वीर सिंह



शनिवार, 18 मई 2019

जब समय अंत का .....


जब समय अंत का आता है,
याद बहुत कुछ आता है ,
चाहत समेटने की कुछ बहुत बहुत ,
पर पवन वेग उड़ा ले जाता है -
क्या खोया क्या पाया ,
निर्जन पीछे सूनापन आगे 
स्वप्न धुल धूसरित हो जाता है -
स्वप्निल गट्ठर लाद पीठ 
हो आत्ममुग्ध कर कागज के फूल 
मकरंद कहीं खो जाता है -
स्वजन पूछते कहाँ रहे 
वांछित कौन अधूरी अभिलाषा ?
नेह सनेह सम्बन्ध विखंडित 
मृग मरीचिका में दह जाता है -
कन्धों का बोझ ढोना होता है
देना प्रतिकार अनादर है ,
दोनों तट दो आँचल विस्मृत 
बाँहों का सेतु ढह जाता है -
औषधि बनकर रहना था 
मन अवसाद पूरित रह जाता है -
उदय वीर सिंह




मैं अकिंचन ....



मैं अकिंचन.....
मैं अकिंचन अक्षरहीन
नयनन की भाषा लिखना
चाह विमर्श की होती है
प्रियतम की गाथा लिखना 
सरल हृदय का भाषी हूँ ,
भाव सरल भाषा लिखना ... ।
भाव समन्वय की गतिशील रहे
अविरल प्रवाह गति मंथर मंथर
संवाद मौन की गगन दुंदुभि
नाविक प्रयाण पथ सदा निरंतर -
स्वर प्रकोष्ठ के नाद करें
जाग्रत अनंत जिज्ञाषा लिखना -
स्पर्श मलय का अभिनंदन
होने का प्रतिपादन कर दे
यत्र तत्र बिखरे शुभ परिमल
एक बांध सूत्र सम्पादन कर दे -
बाँच सके निर्मल मन मेरा
भाष्य नवल परिभाषा लिखना ......... ।
पुण्य प्रसून आरत यश भव की
स्नेहमयी आशा लिखना .....
सरल हृदय का भाषी हूँ ,
भाव सरल भाषा लिखना ... ।
उदयवीर सिंह

बुधवार, 15 मई 2019

उद्दात भाव नभ चढ़े मंजरी ....


काव्य -प्रभा में बांची गयी मेरी एक रचना --
हाथों में हथियार नहीं
हाथों को औजार मिले
हाथों की मुट्ठी भिंची हो
हाथों को कारोबार मिले -
आँखों को आंसू क्षार नहीं
खुशियों की रसधार मिले
सौगात मिले जब आँखों को
ह्रदय हुलसता प्यार मिले -
पांवों के निचे बारूद नहीं
पुष्ट समतल आधार मिले
पांवों की दशा दिशा निश्चित
हँसता गंतव्य का द्वार मिले -
जिह्वा पर दर्प के शब्द नहीं
अमृत भावों का सार मिले
हृहय जोड़ते अनुवंध मिलें
सच्चे सौदों का व्यापार मिले -
मानस में विध्वंश का भाव नहीं
सृजन मिले सहकार मिले
उद्दात भाव से खिले मंजरी
मधु पुष्पों का संसार मिले -
उदय वीर सिंह





मृत्यु प्रलेख पर हस्ताक्षर कर ...


अलविदा दिल्ली ! फिर मिलेंगे -
जिस पथ का गंतव्य हो अग्नि शिखा
उस पथ से जाते कुछ लोग ही हैं -
लांछित हो  सत्य कभी 
पीते गरल कुछ लोग ही हैं-
देकर जीवन जनमानस को 
शर शय्या पर सो लेते ,
मृत्यु प्रलेख पर हस्ताक्षर 
कर जाते कुछ लोग ही हैं 
उदय वीर सिंह





रविवार, 5 मई 2019

दूर से जरा मुस्कराईये .प्लीज


आखिर हम किसके घर जाएँ
अनियंत्रित आग पानी
कहीं तूफ़ान
दर किसका खटखटाएं !
कायनातों में
उनके छेद ....
बंद महल उनके
अभेद्य !
हवा विषैली दलदली जमीन
कागजी फूल
गमलों में गुंथे बरगद
हाथों में बन्दुक
झोले में बारूद
सिंहद्वार पर हिंसक जीव 
पिंजरों में कैद
बेड़ियों में जकडे
मृत मानव कंकाल
उलटी टंगी गौरैया,बुलबुल
हांफती कोयल
खुले रेंगते अजगर
भेडिये मांजते दन्त
विभत्सता की पराकाष्ठा
किसे सुनाएँ
किधर जाएँ ...
संवेदना अट्टहास करती कहती
मत आईये करीब
दूर से जरा मुस्कराईये .!
फोटोग्राफ प्लीज ......
उदय वीर सिंह





बच्चे अधोगति की ओर ....


जब दस लाख से अधिक छात्र भाषा में असफल [फेल] हो जाएँ,जिम्मेदारी तो अपनी बनती है जी ! 
भाषा अभिव्यक्ति की डोर,
कड़ियाँ हो रहीं कमजोर,
बच्चे अधोगति की ओर..
आया कैसा शापित दौर,
हमें समझाना होगा जी !
पढ़ा दस लाखों की है ढेरी
असफलता की बढती बेरी
प्रज्ञा किसकी होगी चेरी
वीथी पुष्पों की अँधेरी
स्वयं सुलझाना होगा जी !
उदय वीर सिंह



बुने हुए स्वप्नों को ......


बुने हुए स्वप्नों को रंगों का धरातल दे पायें-
महक उठे जीवन समस्त स्वांसों को परिमल दे पायें -
माना की शाख- प्रसूनों के कांटे भी उग आते हैं 
गंतव्य सुरक्षित पाने को पथ समतल तो दे पायें
प्रहसन पर भाड़ों के धन और दाद मिला करते हैं 
माण-शिखर के तारों को ध्वनि-करतल तो दे पायें 
उदय वीर सिंह