मैं अकिंचन..... मैं अकिंचन अक्षरहीन नयनन की भाषा लिखना चाह विमर्श की होती है प्रियतम की गाथा लिखना सरल हृदय का भाषी हूँ , भाव सरल भाषा लिखना ... । भाव समन्वय की गतिशील रहे अविरल प्रवाह गति मंथर मंथर संवाद मौन की गगन दुंदुभि नाविक प्रयाण पथ सदा निरंतर - स्वर प्रकोष्ठ के नाद करें जाग्रत अनंत जिज्ञाषा लिखना - स्पर्श मलय का अभिनंदन होने का प्रतिपादन कर दे यत्र तत्र बिखरे शुभ परिमल एक बांध सूत्र सम्पादन कर दे - बाँच सके निर्मल मन मेरा भाष्य नवल परिभाषा लिखना ......... । पुण्य प्रसून आरत यश भव की स्नेहमयी आशा लिखना ..... सरल हृदय का भाषी हूँ , भाव सरल भाषा लिखना ... । उदयवीर सिंह