रविवार, 26 नवंबर 2017

चाँद सूरज को भी जमीन चाहिए -

हवा पर भी पाबन्दियाँ क्यों नहीं 
दरख्तों को भी यकीन चाहिए -
वीर नारों की बुलंदियाँ तो देखो 
चाँद सूरज को भी जमीन चाहिए -
मंच सजा है तमाशबीन चाहिए
आँखें बे-नूर हैं दूरबीन चाहिए -
छिपे हुए हैं यत्र -तत्र नागलोकी
एक सपेरा और एक बीन चाहिए -
भरोषा नहीं रहा अब दिल पर
धड़कने को मशीन चाहिए -
नहीं चाहती जमीन पर चलना
नदी को धारा स्वाधीन चाहिए -
उदय वीर सिंह



शनिवार, 25 नवंबर 2017

अभी पैदा हुआ नहीं कर्जदार पढ़ा गया

ये क्या हो गया है मेरे सोने के वतन को
जीव पैदा होते ही कर्जदार पढ़ा गया
लिखा कलुषित भावना श्रिंगार पढ़ा गया
मैंने वेदना लिखी अपनी अंगार पढ़ा गया
वरक पर उकेरा कोई जख्म बीमार पढ़ा गया
दी झूठी शान की गवाही शानदार पढ़ा गया -
ईमानदारी की राह चला हासिए पर रहा
बेईमानी पर उतर आया ईमादार पढ़ा गया
उजाड़ कर बस्तियाँ देकर आँखों में आँसू
खड़ी कर ली अपनी हवेली दमदार पढ़ा गया -
साहित्य किसी और का मेरे नाम प्रकाशित हुआ
प्रशस्तियों के साथ मूर्धन्य कलमकार पढ़ा गया -
मांगाअमन भाई चारा की जमीन जिसे वतन लिख सकूँ
हमे नवाजा गया पुरस्कार से गद्दार पढ़ा गया -
उदय वीर सिंह


शनिवार, 18 नवंबर 2017

हाथों में जब आई रबाब....

जहां जोति मुक्ति की आई ननकना कहते हैं 
हाथों में जब आई रबाब उसे मरदाना कहते हैं 
अपने खातिर जिया वह जिया तो क्या जिया 
जो जीते जी आजाद नहीं मर जाना कहते हैं -
बूंद बनी मोती जब ढल कर सागर बीच गई
बनकर मनके तीर आई तर जाना कहते हैं -
ज़ोर जबर जुल्मों की ताउम्र नहीं मनाई खैर
इक क्रांति की चिंगारी को सुलगाना कहते हैं -
उदय वीर सिंह

रविवार, 12 नवंबर 2017

सत्ता -मद दौलत ....
सत्ता-मद दौलत को क्या कहिए
माँ तात भ्रात के शीश कटे
बंटा हृदय ,घर ,आँगन, आँचल
प्रीत बंटी आशीष बंटे-
कहीं रुदन क्रंदन अवसाद विषम
छाती कूट रही सम्बन्धों की शाला
कहीं अट्टहास विभत्स विजय का
चढ़ घर द्वारे नवनीत बंटे-
कहीं ब्याहता तनया बहना
सत्ता चौपड़ की श्रीगार हुई
सात जन्मों की शपथ तिरोहित
संस्कार, सत्ता के द्वार लुटे -
दुर्दांत सत्ता के पैरोकारों
सत्ता शक्ति की चेरी है
हाथ आई पृथ्वीराज या जयचदों के
जब संस्कारों के बंध कटे -
खंजर छाती या पीठ घुसी धर्म सम्मत
कर विजयहाथ कहने वालों
व्रत संयम संकल्प अनुशासन छुट गए
खुशियाँ वापस होने में युग बीते -
उदयवीर सिंह


शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

देश न पूछ परिंदों का ....

मत पुछो तुम जाति हमारी बाना मेरा काफी है
मत पूछो तुम भाषा मेरी गाना मेरा काफी है -
मत पूछों बादल बयार की सरहद रोक सकोगे उनको
कहते रुक जाएंगे सांसें तेरी रुक जाना मेरा काफी है -
देश पूछ परिंदों का घर मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे
भाषा बोली राग व्याकरण चहचहाना उनका काफी है -
बेदर्दों की दुनियाँ होगी कोई अपना संग होगा
पूछो आँसू प्यार के रंग संग होना ही काफी है -
उदय वीर सिंह


जब मुंशिफ अंधा गूंगा बहरा हो
फरियाद बनकर क्या कारोगे -
रोशनी में चिराग बनकर क्या करोगे
आग की नदी आग बनकर क्या करोगे -
जमीन बंजर है बीज बांझ
फिर खाद बनकर क्या करोगे -
कान बंद कर लिए हैं सुनने वालों ने
संवाद बनकर क्या करोगे -
बंधे हों हाथ पैर मुंह आंखे कान
आजाद का खिताब लेकर क्या करोगे -
दिवालिया हो चुकी सल्तनत
खजाना खाली हिसाब लेकर क्या करोगे -
उदय वीर सिंह



शनिवार, 4 नवंबर 2017

तुम सदा कहती रहो -

तुम नदी हो प्यार की
निश्छल सदा बहती रहो -
मैं कथा सुनता रहूँ
तुम सदा कहती रहो -
मैं वरक पढ़ता रहूँ
तुम कलम लिखती रहो -
मकरंद मलय की गंध हो
मंथर मंथर चलती रहो -
तुम वीणा हो गीत हो
उर में सदा बजती रहो -
मैं सजाऊँ श्रींगार से
तुम सदा सजती रहो -
उदय वीर र्सिंह





शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

जो आप चाहेंगे ...

बादल वहीं बरसेंगे जहां आप चाहेंगे
तूफान ठहर जाएंगे जहां आप चाहेंगे -
निर्वात में जीवन की कल्पना कैसे
वीर हवा वहीं बहेगी जहां आप चाहेंगे --
अपराध अपराधी में फर्क रहेगा
सजा उसी को होगी जिसे आप चाहेंगे -
मुमताज़ शाहजहाँ रहें कहीं और
ताजमहल वहीं रहेगा जहां आप चाहेंगे -
फूल मुस्कराएंगे तो महक जायेगी हवा
महक वहीं होगी जहां आप चाहेंगे -
किसके सिने में दम है की रो भी ले
हँसेगा भी वही जिसे आप चाहेंगे -
जिसकी आँख उसकी नजर कैसे होगी
वही देख सकेगा जिसे आप चाहेंगे -
मांगने को हाथ बहुत हैं अधिकार
जिएगा वही जिसको आप चाहेंगे -

उदय वीर सिंह