हवा पर भी पाबन्दियाँ क्यों नहीं
दरख्तों को भी यकीन चाहिए -
वीर नारों की बुलंदियाँ तो देखो
चाँद सूरज को
भी जमीन चाहिए -
मंच सजा है तमाशबीन चाहिए
आँखें बे-नूर हैं दूरबीन चाहिए -
छिपे हुए हैं यत्र -तत्र नागलोकी
एक सपेरा और एक बीन चाहिए -
भरोषा नहीं रहा अब दिल पर
धड़कने को मशीन चाहिए -
नहीं चाहती जमीन पर चलना
नदी को धारा स्वाधीन चाहिए -
उदय वीर सिंह