मंगलवार, 29 मार्च 2016

पाक दामन

     चेत   सिंह और  सचेत  सिंह दोनों सगे भाई अपने पिंड लावलपुर  बैसाखी की खुशियों पर घर आए हैं , भरा पूरा  दोनों का परिवार है दोनों के दो दो बच्चे जो स्कूली शिक्षा में हैं चेत सिंह  कश्मीर में सरहद पर तैनात हैं।  और सचेत सिंह नागरिक  पुलिस में जो वर्तमान में जिला फगवाड़ा में एक चेक पोस्ट पर तैनात हैं । पिता बलदेव सिंह  {अब स्वर्गीय } जो प्राइमरी विद्यालय में अध्यापक रहे उनकी हार्दिक इच्छा थी कि मेरा एक बेटा भारतीय सेना में व एक पुलिस में सेवा योगदान दे और दैवयोग से दोनों पिता कि इच्छानुसार अब सेना व पुलिस में अच्छे पदों पर सेवरत हैं । बड़े आनंद में जीवन बीत रहा है । 
     शाम का समय गुलाबी वातावरण , लंबे चौड़ा सहन  जो  प्रकृति की सहजता में सजा जिसमे सुंदर विशाल घर अवस्थित है । शिक्षक पिता ने सुरम्य ग्राम्य वातावरण में हरियाली व प्रकृति प्रदत्त अनुकूल सहज उदात्त भाव का संयोजन किया है ,जिसमे जीवन सहजता से मुस्करा सकता है , किसी प्रदूषण व अप्रकृतिकता से बहुत दूर ,बहुत सुंदर । सामने मेज पर चाय पकोड़े आँय पेय पदार्थ खाद्य पदार्थ  रखे हैं दोनों भाई और कुछ अन्य सगे संबंधी जमे हैं  वार्ता के साथ खाना पीना जारी है । 
 आज हमारा देश बाहर से कम अंदर की कमजोरियों से ज्यादा झुझ रहा है ,अगर भारत देश बीमार हुआ है तो कारण आंतरिक आघात बहुत हैं । चेत  सिंह ने कहा । 
   जी भाई साहब बात  तो दुरुस्त है फेर भी बाहरी हस्तक्षेप भी कम नहीं हैं । सचेत  सिंह ने कहा । 
सचेत  सिंह ! बाहरी हस्तक्षेप का मौका आंतरिक कमजोरियों के कारण ही मिलता है । मसलन समाज में भेदभाव अन्याय कदाचार असहिष्णुता भावनाओं  की अनदेखी सुरक्षा, शिक्षा ,विकास, अवसर की अनदेखी, मानवीय मूल्यों का क्षरण, राष्ट्र की अखंडता को तोड़ता है , जिसके संरक्षा में हमारे आंतरिक महकमे मसलन  आंतरिक सुरक्षा न्यास  पुलिस ,  विकास , न्याय, शिक्षा  प्रशासन आदि सीधे जिम्मेदार हैं जिनकी संज्ञासून्यता से विक्षोभ वैनस्यता  पूर्वागृह दुरागृह आकार पाते  हैं ।भ्रष्टाचार कदाचार को जड़ जमाने का भरपूर अवसर मिलता है । 
   भाई साहब  सिर्फ आप आंतरिक व्यवस्था की  तरफ अंगुली  नहीं उठा सकते , वाह्य  व्यवस्था भी कम जिम्मेदार नहीं है । सचेत सिंह ने कहा 
तो क्या  वाह्य  व्यवस्था ने कहा है की पुलिस अपने कर्तव्यों से गिर जाए न्याय बिकने लगे , विकास पक्षपात पूर्ण हो जाए  शिक्षा पतित हो जाए अवसर की अनदेखी हो ,हर तरफ अविस्वास का वातावरण उत्पन्न हो जाए । एक स्वांस  में कुछ असहज होते हुये चेत सिंह बोले 
  भाई साहब वाह्य व्यवस्था की कृतघ्नता लापरवाही स्वार्थ सिद्धि ने वाह्य  शक्तियों को अवसर प्रदान किया है हमारे आंतरिक व्यवस्था में खलल डालने का  हस्तक्षेप करने का , वरना आज हम कमजोर न होते । सचेत सिंह ने प्रतिवाद किया । 
  अरे क्यों व्यर्थ बहस  विवाद  में असहज हो रहे हो मित्रों ! शांत हो जाओ  किरात सिंह जी ने हाथ मे चाय का प्याला लिए हस्तक्षेप किया । अरे बिट्टू कल का समाचार पत्र ले आना तो । किरत सिंह ने चेत सिंह के  बड़े बच्चे को आवाज दिया ।
   बिट्टू ने कल का समाचार पत्र लाकर किरात सिंह के हाथ मे थमा कर चला गया । 
  लो भाई दोनों सरकारी मुलाजिमों ये पहला पन्ना ही पढ़ो रंगा हुआ है । पढ़ोगे या मैं ही सुनाऊँ 
 लो मैं सुनाता हूँ -
 सेना का  अधिकारी आय से अधिक संपत्ति के आरोप मे गिरफ्तार , सेना का हवलदार जासूसी में लिप्त गिरफ़्तार । अधिकारी भर्ती घोटाले में गिरफ्तार आदि आदि 
     पुलिस अधिकारी के घर से तीस करोड़ बरामद , विदेशी मुद्रा व सोने के विसकुट बरामद , फर्जी एनकाउंटर में अधिकारी गिरफ्तार .... 
हवलदार ने बैंक लूटा , पूस्तेंनी जमीन तीन एकड़ नौकरी में आने के बाद बीस एकड़  आदि ! क्या क्या पढे । अब आप  दोनों के ऊपर छोड़ता हूँ कौन है पाक दामन है ।  बता दो .... दोनों एक दूसरे को देख रहे थे 
आगे सन्नाटा  था । 

उदय वीर सिंह 




सोमवार, 28 मार्च 2016

सूरज तो सबकी छत पर है

चाहो तुम  घर अंधेरा रखो
सूरज तो सबकी छत पर है-
तुम चाहो तो नीर विहीन रहो
कब सून्य धरा जल निर्झर है -
तुम चाहो तो स्वांस न लो
जल -थल में वायु निरंतर है -
गंतव्य तुम्हें ही लिखना होगा
जीवन का पृष्ठ तो  सुंदर है -
तुम चाहो तो गीत लिखो
भाषा ,काव्य बृहदत्तर  है -



शुक्रवार, 25 मार्च 2016

सवाल नापसंद है

रहते हैं पर्दों में हिजाब नापसंद है
जवाब तो जवाब हैं, सवाल नापसंद हैं -

उठाई जो नजर तो अपराध होता है
हिसाब तो हिसाब है आवाज नापसंद है -

बेबसी के सहरा में बचपन भटकता है
रोटी तो रोटी है, ख्वाब नापसंद है -

चूल्हे को छोड़ आग जलती है पेट में
रौशनी तो रौशनी ,चिराग नापसंद है -


उदय वीर सिंह

बुधवार, 23 मार्च 2016

शहादत को सलाम ...

Udaya Veer Singh's photo.[23/03/1931 लाहौर ]
शाहिदे आजम भगत सिंह ,अमर सपूत राजगुरु, सुकदेव को शहादत दिवस पर हृदय से विनम्र श्रद्धांजली ...... वन्देमातरम !जय हिन्द !
***
जुमलेबाजों को अपना धर्म ,जाति, धन प्यारा था
भगत सिंह ,अमर सपूतों को अपना वतन प्यारा था -
मोहब्बत थी वतन की मिट्टी आबो हवा इंसानियत से
जन्नत थी ठोकरों में उनको तो अपना चमन प्यारा था -

उदय वीर सिंह

सोमवार, 21 मार्च 2016

छाज पुरानी बदलो जी ...

टपक रहा टूटा छप्पर छाज पुरानी बदलो जी 
 फटे लगे पैबंद पुराने, टाट पुरानी बदलो जी -
घुन लगे चारों पायों में चारों पाटी चटक  गई  
 बंद बंद से रस्सी टूटी खाट पुरानी बदलो जी -
कीचड़ -कीचड़ दुर्गंध सड़ांध पानी ठहर गया है 
निर्मित कर नव स्रोत नदीया का पानी बदलो जी -
परिदृश्य नवल तथ्य नए नव सृजन नव कथ्य 
हो नवयुग का निर्माण अभिशप्त कहानी बदलो जी -


उदय वीर सिंह 

रविवार, 20 मार्च 2016

जंगल है वाद है फिरके हैं ---

विदेशियों ने लूटा इस देश को तो 
आप क्यों नहीं आप में क्या कमी है-
विषमताओं का जंगल है वाद फिरके हैं
विवादों के लिए उत्तम उर्वरा जमीं है-
देश भक्ति के चोले में पलता है द्रोह
बिकता ईमान और सस्ता आदमीं है -
आचार संहिताओं की फेहरिस्त लंबी है
इन्हें मानों मानो ये मर्जी अपनी है
यहाँ खड़े चर्च गुरुद्वारे मंदिर मस्जिद
फिर भी प्यार की कितनी कम रौशनी है -
कर्ज के बोझ से मर रहा किसान मजदूर 
कर्ज अमीर की कितनी अच्छी आमदनी है-


उदय वीर सिह

स्वागत करता गंतव्य....

लड़खड़ाती
आवाज !
संशयी उलझते कदम !
समतल सपाट
सरल सीधे पथपर भी
गंतव्य
नहीं पाते .......।
स्पष्ट दर्शन
प्रखर मानवीय संवेदनात्मक
ध्वनि !
संकल्पित पग !
पथरीले ,दुर्गम , अंध
प्रखंडों में भी
निर्मित कर लेते हैं राह ,
स्वागत करता
गंतव्य ,
भरकर अपने अंक ..... ।

उदय वीर सिंह .










शनिवार, 19 मार्च 2016

उत्तम उर्वरा जमीं है

विदेशियों ने लूटा इस देश को तो
हम क्यों नहीं हममें क्या कमी है-
यहाँ  विषमताओं का जंगल वाद फिरके हैं
विवादों के लिए उत्तम उर्वरा जमीं है-
देश भक्ति के चोले में पलता है द्रोह
बिकता ईमान सस्ता आदमीं है -
आचार संहिताओं की फेहरिस्त लंबी है
इन्हें मानों  मानो ये मर्जी अपनी है-
यहाँ खड़े चर्च गुरुद्वारे मंदिर मस्जिद
फिर भी प्यार की कितनी कम रौशनी है -
कर्ज मेँ गरीब की लूटीआश घरबार जीवन
कर्ज अमीर की कितनी अच्छी आमदनी है-

उदय वीर सिंह 

गुरुवार, 17 मार्च 2016

किसान कहीं का ....

किसान कहीं का !
ले खेती का कर्ज 
चुकाता क्यों नहीं ?
तेरे दर्द परेशानियों से क्या लेना देना !
क्या अपने को मंत्री,
व माल्या समझता है
छोड़ देंगे और तू भाग जाएगा
ऊपर वाले के दरबार मेँ भी
अग्रिम अर्जी
लगा रखी है .....

उदय वीर सिंह

सोमवार, 14 मार्च 2016

फलसफे बदलते हैं -

मंज़िलें बदलतीं कभी रास्ते बदलते हैं
एक दूसरे खातिर कभी वास्ते बदलते हैं -
आबे - मसर्र्त खूब, बरसे और छलके
जिंदगी तो फानी है फलसफे बदलते हैं -
टेढ़े - मेढ़े रास्ते भी इसरार मंजिल के
रागें बदलती हैं ,कभी नगमें बदलते हैं -
दिल के करीब रहना हर कोई चाहता
तोड़ कर दीवारें हम फासले बदलते हैं -
उदय वीर सिंह

रविवार, 13 मार्च 2016

राग अनेकों संचित हैं

मतभेद सदा स्वीकार्य प्रखर 
मनुष्य भेद की बात कर 
सरस सलिल सा जीवन है 
षडयंत्रो से आघात   कर -

जब जीवन की छांव मिली
मुस्कान भरो अधरों पर
स्नेह समर्पण अनुराग बने
राग द्वेष की बात कर

जीवन के स्वर बेसुर कैसे
जब राग अनेकों संचित हैं
समय शिला की भित्ति पर
जीवन का उपहास कर -

समय मिला किसको इतना
युग युग का दर्शन कर पाये
प्राणित हो शुभ सृजन शृंखला
शुभ कर्मो से सन्यास न कर -


उदय वीर सिंह 

अंगारों से हाथ जले कम



अंगारों से हाथ जले कम
अधिक जले जलधारों से -
तलवारों से शीश कटे कम
अधिक कटे कुविचारों से -
शत्रु से नुकसान हुए कम
अधिक हुए गद्दारों से
सृष्टि सृजन औजारों से है
विनष्ट हुए हथियारों से -
शंसय विपदा ने कम लूटा
अधिक लूटे हम यारों से -
उदय वीर सिंह 

रविवार, 6 मार्च 2016

वतन है तो हम हैं ,वरना बे-कफन हैं-
आदर्श हमारे आयातित नहीं हो सकते
हम मुकम्मल हैं इतने हमारे फन हैं -
स्टेलिन हिटलर की सभ्यता माँगूँ
हमारे आदर्श हमारे गुरुओं के वचन हैं -
इस देश की मिट्टी पानी हवा अमृत है
प्रेम मानवीयता ही आँखों के अंजन हैं -
सुर-असुर अंध बीमार मानसिकता है 
सदाचार समानता हृदय के स्पंदन हैं -


उदय वीर सिंह

शनिवार, 5 मार्च 2016

हंसो बसंत ! हंसो बसंत

हँसो बसंत हँसो बसंत
चिर प्रतीक्षा में किसलय कुसुम
अब क्षितिज पर बसो बसंत
वन कानन उपवन उदासै
भर उर अंक कसो बसन्त
प्रत्याशा मुस्कान अधर धर
डगर अनंग संग वरो बसंत
कंचन कामिनी रस डोर प्रत्यंचा
यतन कुशल की करो बसंत
बिंध जाओगे प्रीत सरों से
चिर वेदन से डरो बसंत
उदय वीर सिंह