बुधवार, 29 जुलाई 2015

परजीविता,प्रयत्न को अपमान कहती है

क्षीणता प्रवीणता को दागदार कहती है
अक्षमता प्रशंसा को बीमार कहती है -
टूटा आत्मबल, पसरा आँखों में सूनापन
अपदृष्टि मृगमरीचिका को जलधार कहती है -

विपन्नता, संपन्नता को अधिकारहर्ता
अनुशासनहीनता सुकर्म को कदाचार कहती है
स्वेक्षाचारिता आचार को हीन ,अशक्त
पतिता  वासना को अधिकार कहती है -

स्थूलता गतिमान को निराश्रय पथविहीन
हठवादिता परिमार्जन को धिक्कार कहती है
पराजय विजय को षडयंत्रकारी, निर्मम
विपथगा कृतघ्नता को संस्कार कहती है -

दिवास्वप्न का मानस गंतव्य को दीन
परजीविता,प्रयत्न को अपमान कहती है
दासत्व के अनुबंध में पाई पद- प्रतिष्ठा
पादुका की चोट को सम्मान कहती है -

उदय वीर सिंह 


रविवार, 26 जुलाई 2015

प्रेम की आत्म- हत्या

                                       ** प्रेम की आत्म- हत्या  ***[ लघु कथा ]

घर परिवार ,नाते -रिश्तेदार मित्र , निहालगढ़ पिंड के वसनिक एक सप्ताह हुये तेजा सिंह की अकाल मृत्यु [ आत्म- हत्या ]के भोग [श्रद्धांजलि - सभा में गहन पीड़ा के साथ शामिल हुए। सबको तेजा सिंह जी के असमय जाने का दुख था । वे बड़े नेक व विनम्र कुशल कृषक थे । सबको उनसे प्यार था ।उम्र रही होगी तकरीब पचपन- साठ के बिच । हँसता मुस्कराता,मिलनसार,सदाबहार व्यक्तित्व ।
    अब तेजा सिंह जी हमारे बीच नहीं हैं , उनकी आतमा को परमात्मा शांति प्रदान करे ,अपने चरना कमलां बिच आत्मा को स्थान दे । पीछे परिवार को, असमय आई अपार पीड़ा को सहन करने की शक्ति दे । परिवार के बुजुर्ग ,बच्चे ,पड़ने वाले विद्यार्थियों ,बेटियों की शादी कुड़माई का बोझ परिवार कैसे उठाए यह सब अब परिवार को सोचना है । हम सब को आगे आकर सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाना होगा । यह हम भी संकल्प लें ।
आगे प्यारे किसान भाइयों ! यह बताते हुए प्रसन्नता नहीं अत्यंत दुख हो रहा है कि आज धरती का पूत ,समाज का अन्नदाता ,परिवार के भरण - पोषण का उत्तरदायित्व निभाने वाला व देश के विकास का मेरुदंड माना जाने वाला किसान, कितना पतित हो गया है । गिर गया है अपने चरित्र से । प्रधान गुरुदास सिंह जी अपनी संवेदना व्यक्त कर रहे थे ।
क्या हो गया गुरुदास सिंह जी ? ये आप क्या कह रहे हैं ? आश्चर्य से दिवंगत तेजा सिंह की शोक सभा मे शामिल किसानों एवं अन्य लोगों की भीड़ से आवाजें आईं ।
   साध संगति ! जो हमने कहा है उसे कहने का आधार है । कारण है ! किसान प्रेम-सबन्धों की वज़ह से आत्म - हत्या करने लगा है । हाँ प्रेम ! बेशुमार प्रेम ! इतना प्रेम की मौत को गले लगाने लगा है । यह मेरा नहीं एक सरकारी वजीर का बयान आया है । सरकारी वजीर का बयान ! आश्चर्य मिश्रित सभा से कई आवाजें उठीं ।
      हाँ जी ! संघीय कृषि मंत्री का बयान । हाथ में लिए अखबार ज़ोर देते हुये बोले ।
किसान विपदा की वजह से नहीं ,पीड़ा की वजह से नहीं ,मुफ़लिसी की वजह से नहीं, आपसी विवाद की वजह से नहीं ,फसल की बर्बादी की वजह से नहीं, प्रेम की वजह से ,प्रेम की वजह से ही आत्म- हत्या कर रहा है। गुरुदास सिंह जी पीड़ा से कराहने की मानिंद बोले ।
     यह सत्य नहीं है । जिन किसानों ने आत्म हत्या की है, उसकी वजह, उनके मरने के पूर्व उनके लिखे पत्रों में कुछ और है । जो पुलिस के पास दस्तावेज़ के रूप में सूरक्षित है । कुछ मेरे पास भी मेरे कम्पुटर में है । मैं पत्रकार हूँ ,मुझे इसकी पूरी जानकारी है । वजीर का बयान सत्य से परे है ।  एक युवक तमतमाया हुआ चेहरा लिए उठ कर बोला ।
    क्या जानकारी है सुनील कोचर जी आप के पास जरा बताएगे हम लोगों को ?, दरबारा सिंह जी थोड़ा असहज हो उठकर ऊंची आवाज में बोले ।
     मैं पीत पत्रकारीता की बात करूँ तो किसानों की मौतें फसलों की बर्बादी ,कर्ज का बोझ ,पारिवारिक दायित्वों की नाकामी ,सरकारी उपेक्षा ही रही है । प्रेम प्रसंग नहीं । अपनी दमदार आवाज में युवा पत्रकार सुनील कोचर ने कहा ।
आप वजीर को झूठा कह रहे हैं ? आप पर गलत बयानी का आरोप लग सकता है ।वजीर अपना बयान सोच समझ कर ही देता है वह कभी गैर -जिम्मेदार नहीं हो सकता । व्यवसायी प्रेम सिंह जी ने प्रतिवाद किया ।
आप ठीक कह रहे हैं प्रेम सिंह जी । यह प्रेम में ही आत्म -हत्या है । आप सोलह आने सच हैं । कल अपने व्यवसाय के बर्बाद या दिवालिया होने पर आप द्वारा की गयी आत्म- हत्या प्रेम में की गयी आत्म -हत्या मानी जाएगी शायद । भले ही आप के आत्म -हत्या पत्र में व्यवसाय की बर्बादी ही लिखा हो । गुरुदास सिंह जी ने बड़े सहज ढंग से कहा ।
संगत चुप थी । आकाश में बादल घिरने लगे थे ,सफ़ेद आवारा बादल तेजी से बहके बहके जा रहे थे । पीछे काले मोटे बादल अपने रौद्र रूप में स्थान लेने लगे थे । शायद फिर कुछ दिन पहले हुई बर्बादी की पुनर्वृत्ति के लिए । तेजा सिंह ने बेटे की पढ़ाई की फीस बेटी की हो चुकी कुड़माई की तय शुदा शादी की तारीख ,मकान की मरम्मत की आश पर, तूफानी वारिस और ओलों के बज्राघात ने पानी फेर दिया था । सबके चेहरे पर मायूसी थी ,तेजा सिंह के जाने गम ,उनके परिवार के प्रति लोगों की सहानुभूति स्पष्ट झलक रही थी ।
      तमाम हुई बातों के उपरांत शोक सभा विसर्जित करने के उदद्बोधन में बुजुर्ग मोहर सिंह जी ने अपने अध्यक्षीय उदद्गार में पीड़ा लिए बड़ी सहजता के साथ कहा -
     वजीर ने जो कहा यह उसकी सोच, उसका संस्कार ,उसकी रणनीति हो सकती । यह कथन उनको किन अर्थों में उन्हें महान बनाता है ,यह मुझे नहीं मालूम ।मुझे उनके ज्ञान -शौर्य, सामाजिक संचेतना संवेदना और सरोकार पर आश्चर्य है ।वजीर साहब के प्रेम संदर्भ रहस्यमयी हो सकते हैं , परंतु स्वर्गीय तेजा सिंह जी को प्रेम था ,उनकी सच्ची प्रीत थी, यह निर्विवाद सत्य है । जिस प्रीत में उनके तमाम सपने पल रहे थे । सहन नहीं कर पाये अपनी टूटी बिखरी प्रीत के सदमे को । निर्णय ले लिया बिछोड़े का । अगर इसे प्रेम में आत्म- हत्या कहते हैं ,तो इसमें हमारी सहमति है । क्यों की उन्हें प्रेम था अपनी कृषि से अपने परिवार से विकास से ......।
उदय वीर सिंह




 
     

शनिवार, 25 जुलाई 2015

प्रीत को पाँव दे दो

क्षितिज समतल है प्रीत को 
पाँव दे दो -
विशाल तरुवर हो प्रीत को 
छांव दे दो -
अनाम होकर न रहे प्रीत को 
नाम दे दो -
विशद साम्राज्य तेरा है उसे एक 
गाँव दे दो -
सतत जीवन न रहेगा उड़ान पर 
एक ठाँव दे दो -
नीर पर प्रीत उकेरी नहीं गयी 
हृदय में मान दे दो -

उदय वीर सिंह 

गुरुवार, 23 जुलाई 2015

भुला देना मेरे ऐब

साल गिरह पर कृतज्ञ  हूँ ,वाहेगुर की दया व आपके स्नेह का मित्रों ! ..
हृदय से आभार !
****
भुला देना मेरे ऐब ,हौसला देकर
मुंतजिर हूँ नवाजों मुझे,वफा देकर -

माना की जर्रा हूँ पर तुम्हारा हूँ 
बिखर जाऊ के सम्हालो फलसफा देकर -

आसरा है तेरी, मोहब्बत का दोस्तों मेरे
चल न देना कहीं ,मुझे रास्ता देकर -

रौशन चिराग हैं ,पयाम गर्दिशी के
न भूल पाएंगे ये जींद कई दफा देकर -

उदय वीर सिंह

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

साहिल अब करीब है -


गा रहे हैं गीत इक ,मेरे हमनवा नसीब है
कस्रे मोहब्बत पास है हर रोज मेरी ईद है -
गुल खिलेंगे हर डाल पर गर गुलशन रहा
भूल जाएंगे ख़िज़ाँ के वस्ल को उम्मीद है -
हम सिकंदर न हुये हमसफर हैं हम कदम
फतह हमारी है लिखी गर दौर भी रकीब है -
गुरबती गर साथ है तो हौसला भी कम नहीं
डूबा सफ़ीना गम नहीं साहिल अब करीब है -
उदय वीर सिंह
Udaya Veer Singh's photo.
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शनिवार, 18 जुलाई 2015

मंदा समाजशास्त्र प्रखर गणित .

Udaya Veer Singh's photo.रस्म कुछ कहना है कह लेते हैं
मजबूर हैं के सितम सह लेते हैं -

दिल की ख्वाहिसें कुछ और हैं
जिधर हवा का रुख बह लेते हैं -

चोट जाहिर नहीं है दर्द बेइंतिहा.
कम हो कि करवट बदल लेते हैं -

देख मासूम मायूस बीबी माँ बाप
बेगुनाह भी गुनाह कबूल लेते हैं -

मंदा समाजशास्त्र प्रखर गणित
कर्ज से पहले व्याज वसूल लेते हैं -

कुछ इस तरह वफा मर रही है कि
रोटियों के लिए जिगर बदल लेते है -

उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

पैरहन खूबसूरत होगी ..

मत भूल सहर के बाद भी शब रूबरू होगी
संभाल के रख फिर चिरागों की जरूरत होगी -

चौदहवीं की रात पहलू में होगी एक दिन ही न
यकीनन फिर जुगनुओं की तिजारत होगी -

रिश्तों की सड़ांध जीने न देगी गुलशन में भी
हर दयार को एतबारो मोहब्बत की जरूरत होगी -

सफर ए जिस्त ,मिलेंगे न जाने कैसे कैसे लोग
दिल काला होगा उनकी 
पैरहन खूबसूरत होगी -

उदय वीर सिंह

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

मंदा कह गया -



पोंछ कर हाथ फेका तौलिया
देख हिकारत से गंदा कह गया-

लेकर तालिम सुर्खुरु हो गया
आलिम को मंदा कह गया - 

मांगी दुआएं बंदों ने दर बदर 
मिजाजपुर्षी को धंधा कह गया -

तराशी जिंदगी चलना सिखाया
उस बाप को अंधा कह गया -

आँचल फाड़ पट्टी जख्म पर बांधी
उस सिर को नंगा कह गया -

तोलता है तालिम को व्यापार से
बाजार को नालंदा कह गया -

खून से जिसके रंगे हैं हाथ अब भी
बेकस को दरिंदा कह गया -

उदय वीर सिंह

रविवार, 12 जुलाई 2015

वेदना को पांव देकर -

हूँ मैं विकल विपन्न अब 
निज वेदना को पांव देकर -
आनंद था ,विस्वास में था 
संवेदना को छाँव देकर -
विकल्प था नैराश्य में भी 
अभिव्यक्तियों को स्वर प्रखर ,
निहितार्थ स्व की याचिका में 
भष्मित हुआ मैं अग्नि देकर -
दंश था न उर दंभ किंचित 
आँगन सीमित संसार मेरा ,
श्वेत या श्याम,थी हमारी वेदना 
स्तब्ध हूँ प्रतिदान देकर -
चैतन्य था, सन्नद्ध हरपल  
अविरल रहा अविभाज्य था ,
बिखर गया हूँ मौन तजकर ,
वेदना को गाँव देकर - 

उदय वीर सिंह 

शनिवार, 11 जुलाई 2015

काफिला लेकर ....

करूंगा क्या मैं बहारों का काफिला लेकर 
जी न पाऊँगा कहीं गमों को फासला देकर -

मशविरा मसर्रत में हमने पाये हैं बहुत 
हाथ छोड़ा है मेरी गुरबती का वास्ता देकर -

तुमसे शिकायत है शिगाफों से झाँकने वाले 
अनजान बन गए हो , हमें रास्ता देकर -

टूट जाते हैं पत्थर , चोट दिल पे जो लगी 
मुकर जाता है जमाना, फलसफा देकर -

उदय वीर सिंह 

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

उत्सव प्रीत का चलने दो -

एक दीप बहुत काफी है 
संदेश प्रेम का पढ़ने को 
हर जाए दृष्टि  नयनो की 
आलोक विषम को रहने दो -
 मृत्यु कब देगी धैर्य  मुझे 
राग मधुर जीवन के पथ 
उपलव्ध कलश पीयूष पल के 
अब आस युगों की रहने दो -
स्पर्श वेदन का जब गीत करे 
साज बने पथ  का, पग का 
क्रंदन विमुक्त आनंद वरे उर 
उत्सव प्रीत का चलने दो -

उदय वीर सिंह 


शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

हो अपयशों की शून्यता -



हो अपयशों की शून्यता
धिक्कार चाहती कलम -
कदाचार को शमशान दो
सदाचार मांगती कलम-
अस्मिता तर्क से कसो नहीं
सम्मान चाहती कलम -
हठ-प्रलाप को विराम दो
ईमान चाहती कलम -
मैं-तुम की प्रवंचना फली नहीं
तत्वाधार चाहती कलम -
समर्पित हो देश आन पर
आधार चाहती कलम-
सिवा कागज भरोषा कहाँ करे
पतवार चाहती कलम -
उदय वीर सिंह