बुधवार, 30 जुलाई 2014

ग़ुम हुए तुम .....


ग़ुम हुए तुम .....

वक्त 
कितना देता है 
क्या देता  है 
कब और क्यों देता है, 
इसका गिला नहीं मुझे ,
बेवक्त छीन लेता है बेदर्द 
गिला भी न करूँ 
तो गुश्ताखी  होगी ....... 

                      उदय वीर सिंह  

रविवार, 27 जुलाई 2014

मन की पीड़ा खोने दो -


हंसने दो अब  जीवन को
विषमताओं  को  रोने दो -

पानी खुशियां प्रेम सुमंगल
मन   की  पीड़ा  खोने  दो -

द्वारे  दस्तक  हो  रही  है
प्राण  वायु   को  आने  दो -

जीया बहुत शूल संग कैसे
अब फूलों के संग हँसने दो -

                      - उदय वीर सिंह

शनिवार, 26 जुलाई 2014

मुख्तारम

मुख्तारम
***********
ताशकंद (उज़बेकिस्तान) की तकरीबन सात वर्षीया बालिका का भारत ( इंडिया ) प्रेम मुझे उद्वेलित करता है | मेरे चार्वाक झील के भ्रमण के दौरान मैं बेफिक्र कैमरा लिए बेमिशाल वातावरण व स्वर्ग सरीखे दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करने में लीन व सौंदर्य का अवलोकन मंत्रमुग्ध हो कर रहा था , कि एक नन्हें हाथों की नन्हीं उँगलियों ने मुझे स्पर्श किया | पीछे देखा तो एक परी सी अल्हड़ बालिका को संकोची मुस्कराहट के साथ पाया |
हेलो माई डॉटर !
" दस्वेदानियां " मैंने बोला |
नमस्ते ! उत्तर में वह बोली |
मैं मंत्रमुग्ध रह गया ,कुछ दुरी पर बालिका की माँ व एक साल उससे बड़ा भाई हमदोनों की ओर देख मुसकरा रहे थे | मैंने उन्हें देख हाथ जोड़ नमस्ते किया | वे पास आये
मैंने बालिका से पूछा
व्हाट इज़ योर नेम ?
वह मुंह पर हाथ रख खिलखिला कर हंस पड़ी और अपनी माँ की और देखा
माँ ने कुछ कहा जो मुझे समझ नहीं आया,
पर वह बालिका बोली -
यू इंडिया ?
यस ! आई ऍम फ्रॉम इंडिया | मैं बोला |
"आई लव इंडिया " वह चहकते हुए बोली
मैं कुछ पूछता, वह बोली -
यू नेम ? मूलतः वह उज्बेक भाषा जानती थी | अंग्रेजी भी स्कूल में सिख रही थी | वह जान गयी थी की मुझे उज्बेक भाषा नहीं आती है ,इसलिए अंग्रेजी में कुछ स्वयं व अपनी माँ की सहायता से मुझसे संवाद करने का मोह नहीं छोड़ पा रही थी |
उदय वीर सिंह , अपनी तरफ इशारा करते हुए मैंने उसे अपना नाम बताया
उदे वीर सिं ! गुड और बेबाक हंस पड़ी |
मैंने फिर उसका नाम पूछा |
अपनी मां की तरफ देखा फिर बोली
मुगझारम ..|
मैं समझ नहीं पाया ,मेरे चहरे पर प्रश्न चिन्ह के भाव थे | मुगझारम ! बोल वह फिर मेरी तरफ देखा |
मेरी असहज स्थिति को देख उसने कलम की ओर इशारा किया मैंने उसे कलम दे दिया |
फिर उसने मेरे दाहिनी हथेली पर अंग्रेजी अल्फाबेट में
अपना नाम लिखा -
" muxaram "
एक सुखद अहसास .
मैंने बोला "मुख्तारम " !.
मुस्कराते हुए उसने अपना सिर हिलाया | .
.और मुझे मेरी कलम देते हुए उसने अपनी हथेली मेरी ओर कर दिया |
मैंने उसकी हथेली पर मैंने औटोग्राफ दे दिया,उसने
अपना दूसरा हाथ भी आगे किया |
मैंने दूसरे हाथ पर "INDIA " लिखा |
उसका भाई उत्सुकता से अपना हाथ मेरी ओर किया और मैंने अपने हस्ताक्षर उसके भी हथेली पर कर दिए |
दोनों भाई बहन अब अपनी माँ के पास थे |
मुझे आगे जाना था , चल पड़ा
दस्वेदानियां ...|
दस्वेदानियां ! नमस्ते ! नमस्ते ! का स्वर मैं सुन रहा था
मुख्तारम का निश्छल वात्सल्य प्रेम बरबस याद आता है-
नमस्ते ! यू इंडिया ?

- उदय वीर सिंह
Photo: मुख्तारम 
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ताशकंद (उज़बेकिस्तान) की तकरीबन सात वर्षीया बालिका का भारत  ( इंडिया ) प्रेम मुझे उद्वेलित करता है | मेरे चार्वाक झील  के भ्रमण के दौरान मैं बेफिक्र कैमरा लिए बेमिशाल वातावरण व स्वर्ग सरीखे दृश्यों को अपने  कैमरे में कैद करने में लीन व सौंदर्य का अवलोकन मंत्रमुग्ध हो कर रहा था , कि एक नन्हें हाथों की नन्हीं उँगलियों ने मुझे स्पर्श किया | पीछे देखा तो एक परी सी अल्हड़ बालिका को संकोची  मुस्कराहट के साथ पाया |
 हेलो माई  डॉटर !
 " दस्वेदानियां  " मैंने बोला |
नमस्ते  ! उत्तर में  वह बोली |
मैं मंत्रमुग्ध रह गया ,कुछ दुरी पर बालिका की माँ व एक साल उससे बड़ा भाई हमदोनों की ओर देख मुसकरा रहे  थे | मैंने उन्हें देख हाथ जोड़ नमस्ते किया | वे पास आये 
 मैंने बालिका से पूछा 
व्हाट इज़ योर नेम  ?
वह मुंह पर हाथ रख खिलखिला कर हंस पड़ी और अपनी माँ की और देखा 
माँ ने कुछ कहा जो मुझे समझ नहीं आया,
पर वह बालिका बोली -
यू इंडिया ? 
यस !  आई ऍम फ्रॉम इंडिया | मैं बोला |
 "आई लव इंडिया  " वह चहकते हुए बोली 
मैं कुछ पूछता, वह बोली -
यू नेम ? मूलतः वह उज्बेक भाषा जानती थी | अंग्रेजी भी स्कूल में सिख रही थी | वह जान गयी थी की मुझे उज्बेक भाषा नहीं आती है ,इसलिए अंग्रेजी में  कुछ स्वयं व अपनी माँ की सहायता से मुझसे संवाद करने का मोह नहीं छोड़ पा रही थी |
 उदय वीर सिंह , अपनी तरफ इशारा करते हुए मैंने उसे अपना नाम बताया 
उदे वीर सिं ! गुड और बेबाक हंस पड़ी |
मैंने फिर उसका नाम पूछा |
अपनी मां की तरफ देखा फिर बोली 
मुगझारम ..|
मैं समझ नहीं पाया ,मेरे चहरे पर प्रश्न चिन्ह के भाव थे | मुगझारम  ! बोल वह फिर मेरी तरफ देखा |
मेरी असहज स्थिति को देख उसने कलम की ओर इशारा किया मैंने उसे कलम दे दिया |
फिर उसने मेरे दाहिनी हथेली पर अंग्रेजी अल्फाबेट में 
अपना नाम लिखा -
" muxaram "  
एक सुखद अहसास .
मैंने बोला  "मुख्तारम " !.
 मुस्कराते  हुए उसने अपना सिर हिलाया | .
.और मुझे मेरी कलम देते हुए उसने अपनी हथेली मेरी ओर कर दिया |
मैंने उसकी हथेली पर मैंने औटोग्राफ दे दिया,उसने  
अपना दूसरा हाथ भी आगे किया |
मैंने दूसरे हाथ पर  "INDIA " लिखा |
उसका भाई उत्सुकता से अपना हाथ मेरी ओर किया और मैंने अपने हस्ताक्षर उसके  भी हथेली पर कर दिए |
दोनों भाई बहन अब अपनी माँ के पास  थे |
मुझे आगे जाना था , चल पड़ा 
दस्वेदानियां  ...|
 दस्वेदानियां ! नमस्ते ! नमस्ते ! का स्वर मैं सुन रहा था
मुख्तारम का निश्छल वात्सल्य प्रेम  बरबस याद आता है-
 नमस्ते ! यू इंडिया ? 

                                               - उदय वीर सिंह

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

आशाओं को पंख लगे ....


*****
आशाओं  को  पंख  लगे 
नित अरमानों के मेले हों -
नेह  सरित  की  धार बहे 
शुचिता संकल्प सुहेले हों -
अभिव्व्यक्ति को राह मिले 
जीवन को खुशियां सारी
वैधव्यहीन आँचल हो जाये 
पथ पावन प्रेम के डेरे हों -

                       - उदय वीर सिंह  

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

माई के गांव में ....

माई   के  गांव  में
पीपल  की छाँव में
गोरी  के   पांव  में
झांझर के गीत अब सुनाई न देते हैं -
मक्के दियां  रोटियां
मक्खन चे मलाईयां
लस्सी भरी कोलियां
सरसों के साग अब दिखाई न देते हैं
गीतों   में   बोलियाँ
मिश्री  की  गोलियां
हथ गन्ने की पोरियाँ
बापू के गांव अब दिखाई न देते हैं -
जलायी गयी है प्रीत
मिटाई गयी  है प्रीत
सताई  गयी  है  प्रीत
प्रीतम के गांव अब सुहाई न देते हैं -

                          - उदय वीर सिंह






रविवार, 6 जुलाई 2014

बाग बाग़ हो गया है ...


ये ज़माना  भी ओढ़े  हिजाब  हो गया है
सवाल ही सवालों का जवाब  हो गया है -
झूठ  भी  लगे है कितना खूबसूरत  यारा
हथेली  पर  जुगनूं  आफताब   हो  गया -

कसूरवार  हूँ  कि,  देश  मेरा  भी  है उदय
सोया हूँ बड़ी उम्मीद से सुनहरे  ख्वाबों में
उम्मीद से फिर बड़ी उम्मीद की ओर दिल
मदारियों के खेल से  बाग बाग़ हो गया है -

                                       -  उदय  वीर सिंह 

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

गिलास में उतर जाता है-



बात आई मानवता की तो धर्म - जाति पर
उतर जाता है -

देश की अस्मिता की बात से जज्जबात पर 
उतर जाता है-

पेशे की आड़ गद्दार की पैरवी में इजलास पर 
उतर जाता है-

सींचता है विषमताओं की ग्रन्थियां,समभाव से 
साफ मुकर जाता है -

किसान व जवान की जवानी का मोल उसकी 
गिलास में उतर जाता है-

अभिशप्त है मजदूर आज भी उसका देखा स्वप्न 
बिखर जाता है -
                                         - उदय वीर सिंह 



मंगलवार, 1 जुलाई 2014

हनीमून बाकी रह गया -


पी गए नदी झीलों के नीर कुछ लोग
पिने को खून बाकी रह गया -

एक हाथ में सूरज एक  में चाँद देने का
जूनून बाकी रह गया -

कहा तो  बहुत  कुछ, कुछ  अनकहा
मजमून बाकी रह गया -

अफ़सोस कसम खा ली सरहदी शहादत की
हनीमून  बाकी  रह गया -

                                  -   उदय वीर सिंह