रविवार, 30 दिसंबर 2012

हम रहे इन्सान कितना......

हम   रहे   इन्सान    कितना,
कह   नहीं  सकते-
गिर सकता है इन्सान कितना,
कह  नहीं सकते-
मिट  गयी  है  लक्षमण   रेखा
कायम  कबूल थी
बिक सकता है ईमान कितना,
कह नहीं सकते -
एक  नारी  ने माँगा  समाज से
प्यार  की दौलत
मिला है  उसको मान कितना
कह  नहीं  सकते-
खो    गयी   जमीं    जिसे   वो
दहलीज    कह  रही   थी ,
पाया    है   आसमान  कितना,
कह  नहीं    सकते-
भरोषा    था   उदय   आँखों में,
समंदर जितना ,
करता  है  जां  निसार  कितना
कह    नहीं    सकते -

                            - उदय वीर सिंह






शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

लेजा अपना चाँद-


लेजा अपना चाँद, 
दे जा मेरा अँधेरा .....
कम से कम नजर
नहीं आएगा  वो चेहरा ...
जो हमसाया 
मेरीदुनियां का 
सरमाया था...|  
जिसमें लगे दाग
मैं ही नहीं ,
देख रही है पूरी कायनात ,
बयान करते हैं 
उसकी बेशर्मी बेवफाई ,दरिंदगी 
आखिर तो वो,
कहीं से पाया था ......|  
दे जा मेरे ख्वाब , 
तोड़ने के लिए, 
जिसे मैंने सजाया था ,
जो कभी  मेरा सरमाया था ....|

                            -उदय वीर सिंह 

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

भाषण तेरा सस्ता है ....


भाषण      तेरा    सस्ता  है
व्यवहार  में  है आवारापन -
हाथों     में     गुलदस्ता  है
कानों में कितना बहरापन-

जिह्वा   पर  मीठी  मिश्री है ,
छल  -  वासना  आँखों  में -
पांचाली    या    अनसुईया,
कुंती, जोधा  की स्वांशों में-

निति-वैधव्य  ही जाई क्यों
कुंठा      व        बंजारापन-

पूत   तू   है  एक   बेटी  का,
फिर भी  बेटी  का  घाती है,
तेरे    घर    में   तेरी    बेटी,
असुरक्षित   है , मुरझाती है -

रोती  कहती  सृजना हूँ   मैं,
क्यों    नहीं    है   अपनापन-

नेता अभिनेता रक्षक  साधू
कर्णधारों   का  नाम   देख-
बंधू ,कुटुंब, मित्र , सम्बन्धी
रक्त - रंजित  हैं  ,पढ़  प्रलेख-

संस्कार से  है मानस खाली,
कर्म    से   है   नक्कारापन- 


                       -उदय वीर सिंह 







शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

कर लेते हजार बहाने ...


सिमटती

गयीं दूरियां ,..
फासले बढ़ते गए,
दिलों के ....
शीशा चिपका है संगदिल 
दीवारों से, दिल भरोसे से..|
टूटे कांच ,बदलने  का रिवाज
कायम ,दिल भी बदल जाते...
काश !
शीशे  की तरह .....|
पिघल जाते मोम की तरह, 
कर लेते हजार बहाने 
न टूटने के ,...|
क्यों जम जाते हैं,किसी भी
मौसम में 
रख कर यादों को |
अंतहीन खामोशियों को ओढ़ 
बिना दस्तक ,आवाज 
दे  जाते अतल गहराईयाँ 
दर्द की ,हमदर्द थे ,
बे -दर्द होकर ........|

                            उदय वीर सिंह .


बुधवार, 19 दिसंबर 2012

दर्द दे गया......


हमदर्द   है   जमाना   कि    दर्द   दे  गया,
कुछ  ख्वाब  थे अधूरे, कुछ और  दे गया-

किस्तों  में   है  चुकानी  हर  बार  जिंदगी,
निभा रहे थे फर्ज कि, कुछ  और  दे  गया-

कुछ  शाम सी,सुबह हुयी हम देख न सके,
दबे  हुए  थे  कर्ज  में  कुछ  और  दे  गया-


कुछ  बोझ  फैसलों  का  पहाड़ बन  गया, 
कम  होने  के  बदले  कुछ  और  दे  गया-


हमराह  था  मुकद्दर  मंजिल  भी पास थी,
दौर   जलजलों   का   कुछ  और  दे  गया- 


कश्ती की तमाम कीलें उखड़ने लगीं उदय,
उबरे  कि  ठोकरों  से  कुछ   और  दे  गया-  

                                     - उदय वीर सिंह 


   







  

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

-लिव- इन -रिलेसनशिप-




-लिव- इन -रिलेसनशिप- 

माँ ने पूछा था ,

शरद कैसी है बहु ,
साथ नहीं आई  ?
नहीं माँ ,
फिर कभी ...
सुना है ,सुन्दर है नौकरीपेशा है....
बताओगे नहीं उसके बारे में ...
हाँ जी ! फिर कभी ....
माँ ! अपर्णा की सगाई, शादी ...
बताया नहीं,किसी ने
कुछ भी मुझे .. 
क्या करती, बच्चा गोंद में  था,
वह लिव- इन -रिलेसनशिप में थी | 
तुम्हारा जबाब था, 
फिर कभी .... |
हाँ करनी पड़ी ,
मुए कलूटे बद्दजात के साथ  ..|
थोड़ी देर पहले तेरी बीबी समीर 
का फोन ,
सूचित कर दिया मुझे   
तुम भी लिव- इन -रिलेसनशिप में हो 
बेटी की तो, गोंद भी भरी 
अपनी पुरुष- बहू की 
गोंद भराई भी नहीं कर सकती ,
ये कैसी विधा है ,
विधान है .....
संसकारों का परिमार्जन
या अवसान है ...  |

                       - उदय वीर सिंह 


  

  
    
  

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

हम पर फ़िदा है



हम पर फ़िदा है सदा -ए- मोहब्बत 
की  है   इबादत   हम   करते  रहेंगे- 

हवाओं के आंचल लिखी दास्तान है
हमने  लिखा  है ,फिर  भी   लिखेंगे -

बरक -ए-मोहब्बत किताबें  बनेंगीं ,
पढ़ा   हर   किसी   ने हम  भी पढेंगें -

इस पार  तुम हो, मोहब्बत है  मेरी,
उस पर क्या है नहीं हमको मालूम -

मौजों   के  ऊपर  लिखे  फलसफे हैं
लिखा    है  रब  ने  हम  पढ़ते रहेंगें-

निगाहों में क्या है जो देखो तो जानों ,
तुम्ही तुम बसे हो बयां अक्स करते -

फूलों   के  हाथों   में  मेहदी  रची  है
उन फूलों को आंचल में  भरते रहेंगे -




                    - उदय वीर सिंह

गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

मलाल है जिंदगी से ,.....


क्यों     मिलता   है    ऐसा    हाल,
मलाल        है ,     जिंदगी       से -
क्या    पहनने ,  ओढ़ने   को  सिर्फ
दर्द   ही   हैं,  सवाल  है  जिंदगी से-
भूख ,   कचरों   में  ढूंढ़  थक  गयी
मासूमियत  भी  लाचार जिंदगी से -
कभी   दे  सको  तो  इस्तहार देना
कितना  है इनको प्यार जिंदगी से -
धर्म, संसद, कानून का कितना रह
गया    है ,  सरोकार   जिंदगी   से  -
मिला किसी को नूर,दौलत माँ-बाप
किसका है इनको इंतजार ..... ?
जिंदगी  से-...... |

                         - उदय वीर  सिंह  

मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

इस देश की मिट्टी पोली है ,,,


इस  देश की मिट्टी  पोली है
हर  पौध   उगाया  करती  है -
जन्म -मरण,उत्थान -पतन,
हर  रश्म  निभाया  करती है -

गेंदा  गुलाब , केशर  चन्दन ,
बेला  केतकी  चंपा  की  डार ,
हल्दी नीम, तुलसी श्रीमौली,
अफीम,धतुरा भंग की क्यार-

आम सेब  अंगूर, मधुर फल,
आँचल  में सजाया  करती है-

नागफनी , बबूल, कंठ - बेल,
कंटक - झाड़ी ,   अमलतास
स्वर्ण, रजत, ताम्र  से सुन्दर
उगते रुचिकर पुष्प  व  पात-

जीवन- जन  अभिशप्त न  हो ,
शुभ  अन्न  उगाया  करती है-


हूँण ,   सकों ,  यवनों  यतीम 
तुर्क , मंगोल , गुलाम  मुग़ल,
धूल धूसरित लांछित  पग थे,
इस  मिट्टी  का  भाव  सबल -

सद्भाव सानिध्य स्नेह की लोरी 
वत्सल भाव दिखाया करती है -

कुटिल,कामी गद्दार अविवेकी
मांगी    शरण     पाई   है  यहाँ  
उनके  संस्कारों  से क्या लेना,
निज संस्कारों को जाई है यहाँ -

वस्त्रहीन  को  वस्त्र ,मृतक को
कफ़न     ओढाया     करती  है-  


झंझावत  ,  तूफान     बहुत  से 
आये   और     विश्राम      लिए ,
एक कण भीकिंचित डिगा नहीं
स्थापित    है   सम्मान    लिए -

संचित ज्वाला  हृदय में इतनी 
अंशुमान     उगाया     करती है -

कर्ण ,   दधिची ,  बलि    सपूत 
देते     दान ,     प्रतिदान   नहीं ,
गुरुओं   के   पग   पावन  आते ,
पाया     स्नेह   अवसान    नहीं-

अभिसरित   हुआ  है प्रेम सदा 
वह     राह   बनाया   करती  है -

                              - उदय वीर सिंह  





  
   




 

     


रविवार, 9 दिसंबर 2012

जलाओ मशाल कि...


जलाओ मशाल कि रौशनी हो,
अभिशप्त प्रलेखों को फूंकने  का
हौसला रखो ....।

जलती मशाल में तेल कितना है ,
कम पड़े तो देह की चर्बी जलाने का,
फैसला रखो .....। 

हर तूफान से गुजरने का आता है हुनर,
तूफान रचने वालों से, तूफान का 
रास्ता  पूछो .....।

करवटें बदल लेने से ,रात ख़तम नहीं होती
चैन की नींद आये काँटों पर,
जूनून से वास्ता रखो  ...।

मौकापरस्तों ने इलहाम को भी बख्सा नहीं
वे क्या देंगे मुकाम  उन्हें 
बाहर का रास्ता रखो  ....।

परजीवियों को हलालो-हराम नहीं मालूम 
खून के आशिक, ख़ूनियों से 
फासला रखो .....।

सफेदपोशों का दौर ख़त्म करना होगा
वक्त का तकाजा है ,सरफरोशों का 
काफिला रखो ........। 

अपने घर में अजनवी होने का दर्द कैसा है ,
 याद आये तो ,कुछ कर गुजरने की
लालसा रखो ...... ।

                                     -उदय वीर सिंह 





      


शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

मोड़ भी हैं बहुत



जीवन की चादर लगे दाग कितने
लगाये किसी ने ,धुलाये किसी ने ,

***
दर्द से आशिकी के फ़साने बहुत हैं ,
छुपाये किसी ने ,दिखाए किसी ने -

***
अँधेरी  रातें , अंधेरों   में   दीपक ,
जलाये किसी ने ,बुझाये  किसी ने-

***
मोड़ भी हैं  बहुत ,रास्ते भी बहुत ,
मंजिल  कहाँ   है बताये  किसी ने-

***
राहों  में  अनजान कितने  पड़े  थे ,
गिराए  किसी  ने, उठाये किसी ने-

***

बागों  में  सुन्दर खिले फूल कितने,
सजाये  किसी  ने  उगाये  किसी ने-

 ***


                                उदय वीर सिंह
                                  07/12/2012

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

प्रणेता के गान से..


नीड़ , मंदिर    बन    चले ,

समिधा को स्वरूप देते हैं 
प्रणेता      के     गान    से
तूफान   उठा     करते   हैं-


छैनी  हथौड़ों  की  चोट से 
गुजर  कर रूप मिलता है,
वज्र -पत्थर ही  शमशीरों 
को     पैनी   धार  देते   हैं -


सिहर    उठते    हैं   हृदय,   
धरा  व   गगन  दोनों   के,
लौटती है  सुनामी तट से 
पानी   से   दीप  जलते  हैं-

लहरों    पर      हस्ताक्षर

किये       गए        अमिट,
देख   तूफान  भी  अपनी,
राह      बदल      लेते    हैं-

टुकड़े - टुकड़े   में    पैबंद

को ,  गवारा  नहीं   सीना
जमीर   का    ख्याल    है
उन्हें ,चादर  बदल देते  हैं-

न  रहा, न रहेगा  कायम ,

जख्म में खंजर कातिल ,
सदा   पैगाम    आया   है 
अमन का जख्म भरते हैं -

उजड़ने , बसने   का   दर्द
करवट   बदलने  जैसा है
जहाँ   भी    गए   तकदीर
बदल            लेते        हैं  -


बंजर ,  वीभत्स    धरती ,
उपहास    करता   मरुधर
रेतीली  हवाओं के बाढ़ में  
नखलिस्तान    बनते   हैं -

दर्द  का आसमान  इतना

भी,  उन्नत    नहीं   होता ,
प्रेम   के  परवाज   उड़ान 
भरते    हैं   ,  छू   लेते   हैं -

मोहताज     नहीं     किसी 
कलम,कागज रोशनाई के
जमाना लिखता है दिल में  
जन   की आवाज बनते हैं -

                      - उदय वीर सिंह 







रविवार, 2 दिसंबर 2012

परिहार


बयाँ      कर     रहा     है ,  जिस्म    का
हर   सुराख़ , गोली  सीने  में   खायी  है,
ये  अलग है,लगाया सीने से एतबार था  
नजदीक  से  गोली, अपनों   ने  मारी है-

पाबंद   है  लहू  ,रगों में  बहने के लिए
सडकों  पर  बहाना   इल्म  से धोखा है ,
नफ़रत  कुफ्र  से  हो ,होनी  भी चाहिए
इन्सान     से    हो ,   कहाँ     लिखा  है-

जब  भी   सिंकी  रोटी, आग   में  सिंकी
जली भी आग में जब सलीका न आया
लड़े   गए   जंग , वजूद   भी    उसी   से
दौरे उलफत या नफ़रत, रोटी  ही खाया -

हमारे  वजूद  से ये  दुनियां नहीं कायम,
बा -  वजूद   हैं   दुनियां    में    हम   भी,
किसके वजूद से किसका वजूद कायम है  
जबाब   आये ,  तो    सवाल   अच्छा  है -

                                       -उदय वीर सिंह




शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

कातिल न रहे -


 कातिल  न  रहे -

यकीं   नहीं है  उन्हें   मेरे  गुनाहों   पर ,
मुझे    गम  है ,  हम   कातिल  न  रहे -

मुआफ   मुझे , कर    सको  तो   करो ,
मुझे गम है ,गुनाही से गाफिल न रहे-

जिगर बड़ा इतना छुप गया मेरा किया ,
मुझे गम है ,ख़ुशी  मेरी शामिल न रहे-

क्या   कहेगा  मुझे ,दीदार - ए - दर्पण ,
कभी   अजीज   थे , वाजिब    न   रहे-

ख्वाब  थी   किश्ती ,लहरों   का  शहर ,
अब   दरिया  न   रही , शाहिल  न रहे -

जिसने भी  लिखा  होगा,फैसला मेरा
शायद   मुहब्बत  से  वाकिफ़  न रहे -

                                    -  उदय वीर सिंह






बुधवार, 28 नवंबर 2012

जन -नानक

आदि गुरु ! गुरु नानक देव जी के पावन  प्रकाशोत्सवकी 
पूर्व संध्या पर समस्त मानव जाति को लख -लख
बधाईयाँ , प्यार ।   




जगमग    व्योम   धरा  का 
आँचल,अँधेरा मिट जाता है 
खोल कपाट तोड़ कर वन्धन 
बाबा     नानक      आता  है -


अमृत  वाणी , अमृत धारा
अमृत  कलश  संजो  करके 
वसुधा  भींगे  प्रेम   की वर्षा ,
प्रिय  प्रीतम  की  हो करके -

ध्रुर  की  वाणी, कंठ पधारी ,
मरदाना   रबाब   बजता है -

रीठा     मीठा     हो   जाता 
चक्की  भी ,आपे  चलती है ,
नित  लंगर चलता रहता है ,
गोदाम    सलामत रहती है -

सच्चा   सौदा दरवेशों संग 
सौदाई      कर       जाता है -

किसकी रोटी, खून भरी है ,
किसकी   रोटी   दूध   भरी -
किसका   जीवन  पावन है,
किसका है, विष की गठरी -

ले करके   अपने    हाथों में 
बाबा  नानक दिखलाता है-

पथ   ,पाखंड , अहंकार  का
तोडा    अपने     हाथों    से,
मिथ्या,ढोंग ,भ्रम व वन्धन 
बिलट   गए      संघातों   से-

चानड़  होता मानस है जब 
प्रकाश  ज्ञान   का पाता है -

कर्म-कांड ,जंजाल ,जनेऊ ,
उंच -नीच ,शुभ अपयश का ,
मानुष की सब  जाति एक
एक मालिक सब बन्दों का -

इश्वर एक वारिश हम उसके ,
सूत्र    वाक्य   दे    जाता है -

हिल    उठती   हैं   सरकारें ,
निर्बल    को   छलने    वाले  ,
तौहीद   की  आवाज  उठाई,
छंट    गए     बादल    काले   -

पीर   परायी ,सुख    साँझा    
जन  -   सन्देश   सुनाता  है - 

इश्वर    एक   अनेक    नाम  
मत बांध  दिशा व  कालों में  
न जन्मा  न  मृत्यु  वरन  है  
न   रूप - रंग   के  थालों  में  -

प्यार की सरिता अमृत वाणी 
 जन -  जन  को  दे   जाता  है -

                               उदय  वीर  सिंह 


सोमवार, 26 नवंबर 2012

होना ही चाहिए -


शक्ति कोई  भी हो, समाज

बदलना  ही  चाहिए-
पथरायी  आँखों  को, रास्ता
मिलना  ही चाहिए -
रात कुछ लम्बी हो गयी है,
बेबसी व विपन्नता की
उगाओ  सूरज   कि  ,प्रभात
होना  ही  चाहिए-
मांगने  से तो  मौत  भी ,
कहीं   नहीं मिलती ,
मांगते  हो  जिंदगी  तो हौसला
होना  ही चाहिए-
वजूद रखना है  इनसान का 
दो रोटी का  भरोषा 
होना ही चाहिए -
खैरात नहीं है जिंदगी का मिलना,
उसके हिस्से का शबाब ,
मिलना ही चाहिए -
गिरफ्तार  है शाजिशन ,
चढ़ा  देंगे  सलीब  पर
हिदुस्तान की रिहाई पर फैसला
होना ही चाहिए -



                                     -  उदय वीर सिंह 





शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

कांटे भी लगाने पड़ते हैं -



ऊँचे  स्वर, पत्थर से लगते ,
फिर  भी  देने       पड़ते   है
फूलों   की   रखवाली   हित
कांटे  भी    लगाने  पड़ते  हैं -

रस्ते     के     देवालय     को
निहितार्थ    हटाने   पड़ते  हैं
तन आरोग्य,   की  बाधा में
कुछ   अंग   कटाने  पड़ते हैं -

आये     शरण  की आश लिये
सब    घाव   भुलाने   पड़ते हैं ,
आदर्श,शील ,ध्वजवाहक को
शीश     झुकाने     पड़ते     हैं -


संबंधों       को     श्रेय     मिले  
सम्बन्ध  मिटाने     पड़ते  हैं  
अपने   जब     मैले   हो  जाएँ  
दाग       मिटाने       पड़ते  हैं  -

बिंध  जाये  जब  धरा  धरातल  
अंतस   मानस    सुन्दर   मन  ,
विष-बाण विनाश के  स्रोत बने  
वो   शब्द     हटाने    पड़ते   हैं  -

मर्यादा   का    भाव   तिरोहित 
रुधिर   हृदय  का  कलुषित  हो , 
जीवन   को   अवसान    परोसे,
वो     तत्त्व    हटाने      पड़ते हैं    



                     - उदय वीर सिंह

बुधवार, 21 नवंबर 2012

कर्मवीर की भाषा है-


जो   मिला   स्वीकार्य  सौम्य
जीने       की      प्रत्यासा    है  -
रीत   सृजन     ही   जीवन  है
एक   कर्मवीर   की   भाषा  है-

रो - रो   जीया  क्या   जिया,
हंस  कर  जीया  जिन्दादिल
देना    खुशियाँ   खुले    हाथ
एक  दानवीर   को  आता  है-

न  छीन हंसी मम अधरों की
हंसने     दो     मुस्काने    दो ,
अन्तरिक्ष  के  नील वलय में
यत्र   -  तत्र     विखराने    दो-

धरा   ही   क्यों ,ब्रहमांड हँसे ,
गृह -  नक्षत्र    में   मोद  भरे,
शांति - भाव    की  शर्तों  पर  
अस्थि    साज   बन  जाताहै -

जब पवन चली नैराश्य लिए ,
दैन्य    भाव    का    संपेषण
स्थापित साम्राज्य ख़ुशी का
बहु  लोक संभव है अन्वेषण -

शंशय  की  सीमा मिट  जाये
मंगल  प्रभात   जब आता है,
मंगल ध्वनि उचरित होती है
स्नेहिल    उर  जब  गाता  है-

सागर  के  आँगन  कोलाहल
वैधव्य  सृष्टि   का    संभव है
सम्भव नहीं सपथ से मुकना
जो  भरत   वंश  दे  जाता  है-


न्योछावर अभिलाषाएं समस्त ,
जीवन   कब  मिलता बार बार ।
संवत्सर   बदले   युग    बदला 
सौगंध   न   बदली   एक  बार  -

पायल की मोहक राग- माधुरी ,
अनंग  त्याज्य  हो   जाता  है,
खडकी शमशीर तो क्या खडकी,
कंगन     कटार   बन  जाता है ।

सतत      सपथ   अक्षुण     रहे ,
जो ली शरणागत  की रक्षा में ,
किश्तों   में  जीना  क्या जीना 
एक  बार   ही  मरना  आता है ,

है   भारत    तो     हम   भारत,
ग्लानी    नहीं   हम  गर्व   करें,
हम   बलिदानी   जत्थों   से  हैं,
परहित       मिटना     आता है -

                              -उदय वीर सिंह 


 


 
 

सोमवार, 19 नवंबर 2012

यथार्थ के धरातल ...


झिलमिल! झिलमिल !

ले स्वर्ण रश्मियों  के तार 
अभिसरित हो रहा
प्रभात !
बुन रहा है ,व्योम सुन्दर ,
दे चक्षुओं की तूलिका  .....
सृजित कर नव  दृश्य ,
कोई गीतिका आकार ले
विथियाँ  प्रलेख हों ,दे सकें गंतव्य को 
सुरम्यता की गोंद में,
यश, समृद्धियाँ मिले ,
स्वप्न देखे जाएँ ,
यथार्थ के धरातल 
संकल्पित हो मानस 
स्वप्न ,मनुष्यता के 
साकार  हों  .....
सहकारिता  विस्तार ले ....

                             - उदय वीर सिंह





शनिवार, 17 नवंबर 2012

रस्म बन कर रह गयी .....


रस्म   बन    कर   रह  गयी  है
रस्म    अदायिगी   कर  रहे  हैं -

जल  रहा  हर  शख्स    अन्दर ,
 दीये   ही   बाहर  जल   रहे  हैं-

चूल्हे    पर   बटलोई   खाली  है ,
वादे   और  ख्वाब   पक   रहे हैं-

बिक गयी शाख भी फूलों के साथ
सुना  है ,जड़ों  के सौदे हो रहे हैं -

मुमकिन है दर्द में फिसल जाना,
बे- दर्द , नशे  में  फिसल  रहे  हैं-

बंजर जमीन ,विरानगी की फसल 
बेखयाली  में  मशहूर हो रहे हैं  -

जलना था  जिन्हें वो  बुझ रहे हैं,
सरोकार जिंदगी  के  जल रहे हैं-  


                                 - उदय वीर सिंह

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

हो मुकद्दर अपने देश के -



हो मुकद्दर अपने देश के -
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मेरे  देश  के  नौनिहालों ,तेरी सलामती  के  लिए   अरदास ,
दुआएं,शौर्य अदम्य साहस को सलाम,एक कविता तेरे नाम - 















सफल  होती  मेरी  पूजा  तुम्हें   देख  के 
लिखने  वाले  हो  मुकद्दर अपने  देश  के-
           स्मृतियों  में   नित्य छवियाँ 
           कहीं   गोवर्धन उठाने वाला ,
            कोई नाहर  के  दांत गिनता 
            कोई   सूरज  निगलने वाला 
माँ के लिए कटी है ,गर्दन  कभी गणेश के-
            इतिहास     लिखा  हुआ है 
            शूरवीरों    तेरे    खून     से,
            मुगलों   की  फ़ौज   कांपी,
           थी  लाचार   दो   मासूम से-
दीवारों में चुन गए दो,धर्मवीर  धर्मादेश के-
            बंदूक       बोने       वाला   
            अपने खेतों में,मिसाल है ,
            वतन   का    जर्रा -  जर्रा 
            अपने लालों से निहाल है-
कायल रहेगी धरती,नौनिहालों तेरे जोश के -
            बचपन    कहीं   न  खोये ,
            भूखा       कोई   न   सोये,
            हाथों   में  कलम किताबें ,
           आँखें    कभी     न      रोये-
कल  के   चाँद व  सितारे  हैं   अभिषेक  के -

                                   - उदय वीर सिंह  

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

तमस को मिटाने-



तमस को मिटाने-

कहीं  पर  जले   हैं,  कही  हैं  जलाने,
आओ  चलें   हम, तमस को मिटाने-

दीया   कहीं    है , तो   बाती   नहीं  है,
मानस   में  हलचल  हृदय  है उदासा ,
कैसे   जले   बिन   अग्नि   के  बाती
बिना  तेल  के कितना दीया पियासा -

तत्व   बिखरे   पड़े   हैं   इधर के उधर
आओ     चलें    एक   दीपक   बनाने-

बुझता  दीया  जब  हृदय जल  रहा हो ,
हँसे  जब  हृदय तो दिवाली हो कायम,
गर्दिशों का  साया, अमावस  का साथी,
अँधेरा  मिटे   तो  उजाला   हो  आँगन-

पनघट, बस्तियां  व  बसेरे   प्रतीक्षित,
आओ    चलें     एक    सूरज    उगाने-

दीप  को   रौशनी  की  इजाजत  मिले ,
तूफानी   हौसलों   से   तूफान  सर  हो
क्षितिज  का  हर  कोना उजारा उजारा
महलों   में   न   कहीं  रौशनी   कैद हो -

दैन्यता ,हीनता  ,वेदना के  तिमिर  को,
आओ  चलें   दीप - शिखा   में   जलाने-

                                -- उदय वीर सिंह


 
 




रविवार, 11 नवंबर 2012

दिवाली मनाना चाहता हूँ -



दिवाली !
मनाना चाहता हूँ -
खेलना चाहता हूँ जुआ,
दांव पर लगाना चाहता हूँ 
जो मेरे पास है -
छल ,कपट , हिंसा ,व्यभिचार 
कदाचार , भ्रष्टाचार ,अन्याय 
असंतोष ,अविश्वास .....
समस्या है !
मैं हारना चाहता हूँ 
कोई मुझसे जीतना नहीं चाहता ....l
इन रक्ताये रत्नों की बर्बादी ही,
मेरी खुशहाली है ,
मेरा दिवालिया होना ही ,
मेरी दिवाली है ....
मुद्दतों से मनाई नहीं ,
दिवाली मनाना 
चाहता हूँ ....l 
मेरा प्रयास है ,
शकुनी की नहीं 
किसी धन्वन्तरी
की तलाश है ....l

                   -  उदय वीर सिंह 


शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

मेरा गुनाह क्या है....


बेबे !
आपने कहा था -
तू बापू की बैसाखी,
आँख की रोशनी ,घर का चिराग ,
बहन की राखी की कलाई,
भाई का भरोषा ,बुआ का अधिकार,
मेरे आँचल का सरदार,
गुरुओं का संसार
बनना...l
आपकी दवा ,पर्चियां मेरे  हाथ ,
जिन्दा जला दिया गया,
नहीं मालूम किस गुनाह की
सजा मिली मुझे ...... l
आप दर बदर भटक,
उनसे  मेरा गुनाह पूछती हैं ,
मांगती हैं न्याय,मेरे क़त्ल का......l
सरोकार किसको है,
कौन जनता है,
आपके आंसुओं का मोल .....?
काश ! एक बार जन्म लेता और,
पोंछ लेता आंसुओं को ,
कर लेता गुनाह ,
जो मैंने,
किया नहीं .......l .

                            - उदय वीर सिंह

 






बुधवार, 7 नवंबर 2012

स्नेह लिखना.....




हृदय  के  आँगन, नुपुर  खनकते
उनके    स्वर   का  स्नेह लिखना-
भरे    नेत्र ,  आतुर    झरने    को
स्मृतियों     के      नेह     लिखना-

हर   कली   का,   ख्वाब  खिलना ,
मधुपों   का , मद   गीत,   सुन्दर ,
अप्रतिम  प्रतिक , उपमा वांछित
मधुर     भाव  ,  रमणीक    प्रवर-

भर   आये    ऑंखें    सृजने   जब,
भरे     ह्रदय     की   पीर  लिखना-

उर  -  कोष्ठ , निषेचित   करते हैं ,
निश्छल      भाव      स्पंदन   को ,
विपुल  राशि  ,  लावण्य   माधुरी
अभिसरित  रही अभिनन्दन को-

कर  जाये व्यतिरेक  विकल जब
विस्वास    भरा   आदेश  लिखना-      

छू     रही     हो ,  पवन    कंटीली ,
चंदन  -    तन ,    अंतर्मन      को
उच्च -प्राचीर   निर्मित  कर लेना
अशुभ ,त्याज्य , अतिरंजन   को-

पीर     पहाड़   सी , ढ़ो   न सकेंगे,
झर-निर्झर        की  टोह   रखना-

                                  उदय वीर सिंह  
   

सोमवार, 5 नवंबर 2012

तू नदी है प्यार की ....





भूल  जाते , देख  कर  दुःख 
तू    नदी    है    प्यार     की 
बह   रहा    है , मान पियूष 
ले   अर्घ,    तेरे    धार    की

तू  उज्वला  है, सृजन वलय 
निः शब्द     तेरे   पाश    में ,
बह   गया ,  घर   वेदना  का 
नेह - सर    के    न्यास     में -

तृप्त    मन  की  आश तुमसे,
कृतज्ञ       हूँ    उपकार  की -

निर्मित  हुआ  है आत्म बल 
पाई       तुम्हारी     छाँव   है 
बस   गया   मन  मधुर मेरा ,
जिस    ठाँव ,  तेरा   गाँव  है-

मांगी  न  थी  पर मिल गया ,
आश      भी ,  आधार     भी -

खिलता   कमल   सा  रूप है,
एक   बूंद   भी,   मोती लगे,
सदगुणों   की   स्वेद  आभा,
लिपटे   वसन,  सोनी   लगे-

प्रतिमा बनी आराध्य की तू ,
साध्य    की , संस्कार   की-

एक      प्रबल    प्रवंचना   है,
तज ,स्वर्ग  न  जाना  कभी-
अवशेष   हैं  बहु  कार्य  अग्रे,
अप्रतिम बने   यह लोक भी-

मान    लेना ,   मान     मेरा,
हठ   समझ   कर   यार  की-

है   हृदय   में  संचयित  स्वर 
निर्मले       आभार         की-

                            - उदय वीर सिंह 


   
  
   

शनिवार, 3 नवंबर 2012

अल्फाज हो खुदा के ...















कदम   हलचल मचाते  हैं
जब     अपने    बुलाते  हैं
नसीहत   भूल    जाती  है ,
घर    काँटों    के  जाते  हैं -


न   इलहाम   की   दौलत ,
नहीं  आलिम के घर से हैं ,
तेरी खुशबू    के कायल हैं ,
हम   तेरे,  पास   आते  हैं-

क्या रिश्ता है नहीं मालूम ,
नूरानी     खुबसूरत     हो,
हवा     देती    तेरी  आहट
दीवाने      झूम    जाते  हैं-


तेरी  बाँहों  में खुशियाँ  है
तेरे  आँगन  में जन्नत है ,
इलाही   पाक   दामन  में
हम  आकर  भूल जाते हैं-



अल्फाज    हो   खुदा   के ,
सूरत      मुहब्बत       के ,
पैगाम    हो      अमन  के
मसीहा   तुमको  बुलाते हैं -

हो   दुनियां  में राज  तेरा 
हम  सिजदे   में   कहते हैं ,
तुम्हारी  चाहतों में शायद 
खुदा    दुनियां    बनाते हैं -

               -- उदय वीर सिंह 






गुरुवार, 1 नवंबर 2012

संवेदना के सिवा ....












मानवीय 
संवेदनाओं,
का संसार ,क्रूरता को
परिभाषित तो करता है ,
अपनी संवेदनाओं को समेटने को,
क्रूर नहीं कहता ..
घृणा की प्राचीर का प्रांकन तो,
करता  है ,
स्पंदन की गोलियां लेकर
आत्ममुग्धता में सो जाने को ,
दायित्व विहीन  नहीं कहता   l
अपनी आँख धोते हुए घडियाल के
आंसुओं को, बेदना में बांध लेना ,
नीरहीन,सूखे चक्षुओं को
काव्य-भेदन के सिवा
अनुशीलन नहीं मिलता..
सबल नयना को,
 निहारते हजारों हैं,
हत-नयना को,
संवेदना के सिवा
संबल नहीं मिलता ....

                    - उदय वीर सिंह

 

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

निःशब्द हूँ , मां हूँ .....


माम !
मुझे इतनी सी, प्यार  से
एक बात बताना
कान में ....
क्यों करती हो
इतना प्यार ?
कोई इतना भी प्यारा
क्यों लगता है ....?
कोई इतना भी प्यार करता है क्या ?
शर्दियों में चादर ,
तूफान में दीवार ,
संकट में निहारिका ,
शून्यता  में इतना साहस कोई देता है क्या ? 
मेरी भूख ,प्यास ,मेरी राह,
सब क्यों पता है तुमको ,
मेरे अवसान का ख्याल ,
भी सहन नहीं तुम्हें,
द्रोही की छाया  तो दूर ,
आहट भी पसंद नहीं
कर देती हो न्योछावर सर्वस्व
अपना प्यार भी .....l
शब्दों में न बांध मुझे,
मेरे अंश !
निःशब्द हूँ
बस मां हूँ .....

                      -   उदय वीर सिंह

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

कानून.. जो गिर पड़ी है....



माननीय !
आपके निष्ठावान,
कड़क बचन ,
कानून, अपने हाथ में
न लें...!
कानून महफूज हाथों में है  l
निर्दोष ,मजलूम ,लाचार
भूखे, नंगे ,अधनंगे,आप की जद में हैं
अपराधी ,षड्यन्त्रकारी ,बलात्कारी ,
फरेबी, लुटेरे  देश, समाज- द्रोही ,
आपकी पकड़ से बाहर....
शामे महफ़िल के हमसफ़र हैं  l
लिख रहे हैं, आपकी  करेक्टर रिपोर्ट
जो ढीली है ....
नशे में या दहशत में आप इतने कि ,
पतलून गीली है l
कांपते हाथों से कानून,
गिर पड़ी  है......l
अजीब पसोपेश में हैं
आप उठाएंगे नहीं ,
हमें उठाने नहीं देंगे ......

             -  उदय वीर सिंह .