रविवार, 30 नवंबर 2014

सँवारो जितना -




ये जुल्फ बिखर जाती है 
सँवारो जितना -

किश्ती जाती भंवर की ओर 
उबारो जितना -

न जागा है फरेबी सोया 
दुलारो  जितना -

न जुड़ता है टूटा सीसा 
उसारो जितना -

बुत न बोलते हैं कभी 
पुकारो  जितना -

रही साथ तो प्यार की चादर 
उधारों जितना -

उदय वीर सिंह 

शनिवार, 29 नवंबर 2014

अभिशप्त-वैभव


किसी दुर्घटना 
से नहीं ,
प्रेम, अभिलाषा ,
नैशर्गिक लालित्य,
अभिमंत्रित मंत्रों के
आव्हान से 
आमंत्रित, 
अतिथि का वध !
कोई शत्रु नहीं 
स्वजनों के 
तथाकथित मर्यादित
कर-कमलों से
गौरवमयी गाथा के 
पुण्य निहितार्थ
होता है ,
कदाचित
एक देवी-प्रतिमा के रूप में
स्वीकार्य तो है ,
यथार्थ के धरातल पर 
कन्या अभिशप्त !
कदापि 
नहीं ......। 

उदय वीर सिंह 

   







गुरुवार, 27 नवंबर 2014

हम तो प्रीत दरबारी थे -


पकड़ हाथ फिर छोड़ चले
दिल के तुम व्यापारी थे -
नफ़ा-नुकसान तुम्हारी भाषा
हम तो प्रीत दरबारी थे -
प्रीत हृदय की भाष्य-माधुरी 
तुम वंचक सरकारी थे -
पीया प्रेम निश्छल मन से
तुम तो स्वप्न आहारी थे -
प्रीत वसन सी बदली तूने
कीच- भाव व्यभिचारी थे-
टूटा मुकुर श्रिंगारसे पहले
हम पत्थर के आभारी थे -
उदय वीर सिंह
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मंगलवार, 25 नवंबर 2014

गुरु तेगबहादुर सिंह [नवें पातशाह] हिन्द दी चादर


धन्य है सतगुरु ! तेरी मीरी और पीरी !
***
खून था किनकी रगो में
नीर  था किनकी नजर -
प्यास किसकी खून की थी 
कौन रोया दर - बदर -
किसकी दर ने लाज राखी
कौन थे कौमे- जिगर
आह थी और जुल्म था
यौमे जालिम ओ सितमगर -
इंसाफ की शमशीर किसकी
कौन थे कौमे मुकद्दर -
इंसानियत के कौन दुश्मन
कौन प्यारे हमसफर -
जीया जिन्होने हिन्द खातिर
गुरु सिक्ख थे नुरे नजर-
धरती गगन दोनों ही रोये
जब चले अंतिम सफर -
उदय वीर सिंह

बुधवार, 19 नवंबर 2014

तू कितना अनाड़ी है

देख ! तेरी वाल पर 
गंदगी का अंबार ही अंबार 
दिखाई देता है । 
दर्द,खुले जख्म, मुफ़लिसी ,यतिमी, लचारगी
आँसू ,फरियाद का कूड़ा है । 
स्वच्छता अभियान जारी है 
क्यों नहीं लगा लेते ,
बर्मीघम शायर के परिधान 
अल्जीयर के ट्यूलिप 
रूसी गुलाब ........। 
प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है कुछ तो सोच 
जैसा है वैसा दिखना,
नहीं चाहिए.। 
दर्द में पैदा हुआ है तूँ,
दर्द के सिवा और क्या चाहिए ...?
पी ले शुद्ध गंगा जल 
भूख को छिपाने का हुनर चाहिए ....
तू कितना अनाड़ी है ,
हम चाँद पर जाने वाले हैं 
और तुझे जमीं 
चाहिए ..........।

उदय वीर सिंह  







मेरा ईमान होता



मेरा ईमान होता

किसी गरीब का ख्वाब हूँ
देखने दो जिसकी मुझे जरूरत है
बारिस  की बुँदे
भिगो जाती हैं रुखसार के अष्कों को
मैं देखता रह जाता हूँ
कभी प्रिया को ,कभी आसमान को
एक घर होता-
मुकम्मल दाल- रोटी भी नहीं
कभी दाल तो कभी रोटी नहीं -
फैले हाथों को हिकारत से भीख तो  मिल जाती है
काश काम मिलता -
स्वीटजरलैंड में जमा खातों के स्वप्न क्यों
नोफ्रिल खाते में दाम मिलता
सिमट जाता है किरोसिन का तेल
लैम्प से
बच्चे उदास हो जाते हैं बंद कर किताबें
तमस की बाढ़  में
उन्हें उजास मिलता ..
कह रही थी प्रिया करवां चौथ आ रहा है
इसी बहाने एक छाननी का
इंतजाम होता -
भूखे पेट योग का भी बहम क्या पालूँ
नीम और तुलसी का सेवन भी
उबाऊ हो गया है
मर्ज पर कोई मेहरबान होता -
मेरा चश्मा बापू को नहीं लगता
प्रिया की कमीज
बेटी को छोटी होती है
पैजामे में लगे पैबंदों को छिपाते बेटे को देखता हूँ
काश कोई बेचने का
समान होता .......
पूरे होते सपने तो शायद
मेरा ईमान होता
मैं भी तथा कथित
इंसान  होता .....

उदय वीर सिंह




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रविवार, 16 नवंबर 2014

प्रीत की बात कहना......


सफर के गीत ,सफर सा रचना
प्रीत के गाँव रचना, वहीं बसना -

सुरमई शाम की चंपई सुबह होगी
प्रीत की बात कहना, वही सुनना -

हृदय के साज नासाज नहीं रखना मुसाफिर के नगीने हैं प्रीत रखना-

चले घर से हो कोई अरमान लेकर
जींद सुंदर है हार न जीत रखना -

उदय वीर सिंह

मंगलवार, 11 नवंबर 2014

मंथर -मंथर .....


मंथर -मंथर .....

मंथर -मंथर नेह प्रिया, पग
वन सुंदरवन की ओट चला
पुण्य प्रसून  किसने  न दिए
शूल -प्रबोध  से कौन  छला-

तज्य प्रमाद आमोद भरे उर
कली किसलय सजी अचला
अभिनंदन है आमंत्रण है मधु
सृजने को  ,किसने  न  कहा -

संकुल , सौम्य , सुनेह , लली
कमनीय कन्त, की  प्रेम कला
तरु छूअन से, हतभाग्य, नसा
कटु वीथीन को सौभाग्य मिला -

उदय वीर सिंह

रविवार, 9 नवंबर 2014

रहना तो पिया बनकर


रहना तो पिया बनकर 

यूं मुनासिब नहीं बहना
आग का दरिया बनकर -

जिंदगी अच्छी है जीना 
प्यार का जरिया बनकर-

जाना दिल में उतर जाना ,
गजल का काफिया बनकर- 

कुछ तो रौशनी होगी
जलें बाती हम दीया बनकर -

उदय वीर सिंह 




शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

आदि गुरु नानक देव जी [ THE PATH ]


आदि गुरु नानक देव जी [ THE PATH ]
हम मैले तुम उज्जल करते .......                                                                                           
." सतगुरु नानक परगटिया मिटी धुंध जग चानड़ होया "
मिती कार्तिक पूर्णिमा,सुदी 1526 [A .D .1469 ] ननकाना साहिब [ तलवंडी -राय भोई ] लाहौर से दक्षिण -पश्चिम लगभग चालीस किलोमीटर दूर [अब पाकिस्तान में ]परमात्मा की समर्थ ज्योति का उत्सर्ग | पिता ,कालू राम मेहता और माँ, त्रिपता की पवित्र कोख से जग तारणहार बाबे नानक का देहधारी स्वरुप आकार पाता है | 
पूरी मानव जाति इस समय वैचारिक तमस के आगोश में ,भ्रम की अकल्पनीय स्थिति बिलबिलाती मानव प्रजाति ,कही कोई सहकार नहीं ,किसी का किसी से कोई सरोकार नहीं, धार्मिक आर्थिक सामाजिक सोच नितांत कुंठा में डूबी, अलोप होने के कगार पर, विस्वसनीयता का बिराट संकट ,दम तोड़ती मान्यताओं की सांसें ,जीवन से जीवन की उपेक्षा ,दैन्यता की पराकाष्ठा, दुर्दिन का चरम ,यही समय था जब परमात्मा ने देव - दूत को भारत- भूमि पर उद्धारकर्ता के रूप में आदि गुरु नानक देव जी को पठाया | इस पावन- पर्व पर परमात्मा के प्रति कृतज्ञता व आभार, साथ ही समस्त मानव जाति को सच्चे हृदय से बधाईयां व शुभकामनाये देता हूँ |
बाबे नानक का मूल- दर्शन --आडम्बरों से दूर होना
-मनुष्यता की एक जाति
-विनयशीलता व आग्रही होना
-पूर्वाग्रहहीनता |
-एकेश्वरबाद का स्वरुप ही स्वीकार्य
-जीवन के प्रर्ति उदारता, दया, क्षमा
-कर्म की प्रधानता एक अनिवार्य सूत्र
-ज्ञान और शक्ति का बराबर का संतुलन
- निष्ठां संकल्प और कार्यान्वयन
-जीवन की आशावादिता
आत्मा की मुक्ति का स्रोत परमात्मा की अनन्य भक्ति
-आचरण और आत्म शुचिता का सर्वोच्च प्राप्त करना
-ईश्वर में अगाध आस्था |
आदि गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को पाने ,पहचानने का माध्यम गुरु को बताया ,
" भुलण अंदरों सभको,अभुल गुरु करतार "
और
" हरि गुरु दाता राम गुपाला "

बाबा नानक का कथन , समर्पण और विस्वसनीयता के प्रति सुस्पष्ट है -
"गुरु पसादि परम पद पाया ,नानक कहै विचारा "
बाबा नानक परमात्मा को इस रूप -
"एक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभउ निरवैर अकाल मूरति अजुनी सैभंगुर परसादि " 
में ढाल कर समस्त वाद -विवाद को ही जड़ से समाप्त करते हैं ,और यही शलोक सिखी का मूल मंत्र बन जाता है |
बिना किसी की आलोचना , संदर्भ या विकारों को उद्धृत किये बाबा नानक समूची मानवता को प्रेम का सन्देश देते हैं कहते हैं -
माधो , हम ऐसे तुम ऐसो तुम वैसा |
हम पापी तुम पाप खंडन निको ठाकुर देसां
हम मूरख तुम चतुर सियाने ,सरब कला का दाता ....माधो . |
जीवन की मधुरता ,सात्विकता और रचनाशीलता में है । , बाबा कैद में भी और अपनी उदासियों [यात्राओं]में भी ,निर्विकार भाव से अहर्निश प्रेम व सत्य को जीता है ....उसे परमात्मा की ओट पर पूरा विस्वास है ,-
"साजनडा मेरा साजनड़ा निकट खलोया मेरा साजनड़ा " |
बसुधैव कुटुम्बकम कि वकालत करते हुए बाबा जी ने अन्वेषण ,अनुसन्धान को कभी रोका न नहीं ,मिथकों को तोड़ स्वयं भी देश से बाहर गए और उनके सिख विश्व के प्रत्येक भाग में उनकी प्रेरणा से यश व वैभव सम्पदा से सुसज्जित हैं . | ज्ञानार्जन को सिमित या कुंठित नहीं किया . |
समाजवाद का बीज बाबा नानक ही बोता है ,कर्म कि रोटी को दूध कि रोटी साबित करता है -
" किरत करो बंड के छको ". |
आदि गुरु मानव -मात्र कि सेवा मे स्वयं को निंमज्जित करते हैं , सर्व प्रथम मानव मात्र के लिए भला चाहते हैं ,बाद में अपना स्थान रखते है -
" नानक नाम चढ़दी कलां ,तेरे भाणे सर्बत दा भला "अंत में लख -लख बधाईयों के साथ -
मुंतजिर हैं तेरी निगाह के दाते ,
इस जन्म ही नहीं हजार जन्मों तक ।

उदय वीर सिंह

मंगलवार, 4 नवंबर 2014

दिल लगता -


पढ़ो किसी सृजन को तो 
दिल लगता-
किसी दृदय को सुनो तो 
दिल लगता -
आँखों में बसो दिलवर तो 
दिल लगता -
तुम मेरे हो ,कहे कोई तो 
दिल लगता -  
चुप हो धरती वो गगन 
तुम पास हो तो 
दिल लगता -
उदासियों में तेरा अहसास हो तो 
दिल लगता -



उदय वीर सिंह  

रविवार, 2 नवंबर 2014

धन्यवाद ! श्री आर्यन शर्मा जी ,प्रतिनिधि संपादक (समाचार पत्र -  ' पत्रिका ')  व समाचार पत्र - ' पत्रिका ' का  । आप द्वारा मेरे हिन्दी ब्लॉग ' उन्नयन ' को पत्रिका में स्थान देकर सम्मानित करने का । 1 नव 2014 के  साप्ताहिक परिशिष्ट मेरे हिन्दी ब्लॉग की चर्चा की गयी है,पढ़ कर खुशी हुई । ये खबर भी मेरे आदरणीय वीर, सरदार बी यस पाबला जी द्वारा दी गयी ,उनका हृदय से धन्यवाद । मुझे आशा है आप सभी सुधी मित्रों , पाठकों को भी अच्छा लगा होगा । सादर स्नेहानुरागी  । 

उदय वीर सिंह