गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

- मां से मां तक ...



- मां से मां तक ...     
किधर गया ? कहाँ गया ?,
कहता है - बड़ा हो गया हूँ   
नहीं सुनता है कहा मेरा ,....
अरे! कितना बड़ा हो गया , मेरा काका ही तो है 
कहा था शीघ्र आने  को  
नहीं आया अब तक  ....
-
उसे संगीत  की आदत है  
धमाकों  की नहीं .... 
डांट खाने से भी डरता है  
गोलियों का बेदर्दीपन नहीं जनता वो 
आम आदमी का बेटा है  
बुलेट -प्रूफ नहीं, मिर्जई  पहनता है .....  

फूलों  की  सुगंध  भाती है    
बारूद से वास्ता नहीं  उसे  ...
लाल रंग से  मुहब्बत इतनी 
रंग लेता है हाथ ,सफ़ेद फूलों को भी 
नहीं देख  पायेगा शरीर से 
लाळ रंग ....बहता हुआ... 

उसका बाप भी गया था बाजार  
सयाना था, फिर भी 
बारूद की ज्वाला में गुम हो गया 
मुझे वैधव्य देकर .....
ये तो बच्चा है
वाकिफ नहीं आतंक की गलियों से 
मिल जाएँ किस 
मोड़ पर ........
मुझसे पहले .न अतीत बनना,
मेरे वर्तमान!
भविष्य मेरा
छीन कर .........  

                         -उदय  वीर सिंह 







बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

आँखें उनकी सपने मेरे -




Photo: आँखें उनकी सपने मेरे -
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दरमियाँ दोस्ती के दुश्मनी भी साथ आई 
हम  तो  हाथों   में  गुलाब  लिए  बैठे  थे 
मुरादें प्यार की थीं ,सुपारी  साथ  आयी-

मुक्तसर न हुयी ज़माने की संगदिली यारा 
बेदर्द  देता  गया, हम  लेते  गए  खामोश 
अफ़सोस हम नहीं रहे तब मेरी याद आयी- 

फेहरिस्त  लम्बी   बनी   मेरे  गुनाहों  की
मुझे उज्र  नहीं था सिर्फ  एक को छोड़ कर ,
जो जिंदगी मेरी नहीं, मेरे साथ क्यों आयी - 

                                  - उदय वीर सिंह





***
दरमियाँ दोस्ती के दुश्मनी भी साथ आई

हम तो हाथों में गुलाब लिए बैठे थे


मुरादें प्यार की थीं ,सुपारी साथ आयी-



मुक्तसर न हुयी ज़माने की संगदिली यारा 


बेदर्द देता गया, हम लेते गए खामोश

अफ़सोस हम नहीं रहे तब मेरी याद आयी-


***फेहरिस्त लम्बी बनी मेरे गुनाहों की


मुझे उज्र नहीं था सिर्फ एक को छोड़ कर

 ,
जो जिंदगी मेरी नहीं, मेरे साथ क्यों आयी -



                                         - उदय वीर सिंह

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

दो मन के ..



कल सूरज ऊगा था
पूरब की ओर
आज प्रतीक्षा थी उसकी
कल का पता नहीं ,
उगेगा  या नहीं ......|
शायद कोई कृष्ण !
पुनः  गांडीव उठा ले
ढक दे व्योम,
छद्म साँझ  हो जाये
किसी के वध 
निहितार्थ ......|

*****
प्रतिवद्धताओं में
अटकी, टूटती साँस
आत्मग्लानी में निमज्जित
संचेतना ,
मौन रहने का द्रोह
दे रहा है यातना,
क्यों न ले सका
कठोर निर्णय ....?
कुलघातियों का साथ दे
शर- शैया पर शयन होगा
यह नियति तो न थी
किसी भीष्म की  .....!

*****

मौन का द्रोह
बंद करता कपाट ,
अभिशप्त  होने को !
वेदना का पर्याय,वत्सला का हृदय
क्या कभी संवेदित होता है ?
जिया  है ?
कभी किसी कर्ण की
वेदना को  .....
किसी कुंती ने ....?

                                             - उदय वीर सिंह



गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

बसंत की रस-धार सुन्दर


प्रिय मित्रों! व्यस्तताओं में आपसे रूबरू न होने का अफसोस ,अपनी पीड़ा अपना सुख आपसे न कह सका ,कारन छठवां अन्तराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन [दुबई ] में प्रतिभागिता | संस्मरण बाद में आप तक पहुंचाएंगे , पुनः आपसे संवाद पूर्ववत कायम रहे आपके स्नेह के साथ  ....|






बसंत की रस-धार सुन्दर 

संसार    का    निर्माण  सुन्दर,
मनुष्यता    का    गान  सुन्दर 
प्रेम    का    आरंम्भ     सुन्दर
प्रेम    का    अवसान    सुन्दर..|

गीत   का   लय   ताल  सुन्दर
बह  चले  हृदय  के स्वर्ण- वन
आतिशी   हो    पुष्प   की  नभ
जाये  शोक आये  बसंत सुन्दर ... |

प्रकृत    सुधा  -  रस    सींचती 
जड़-चेतन की मुस्कान सुन्दर      
बरस    रही    अगाध   नविका
कली कोपल का वितान सुन्दर....|

तज  मालिन्य ,नव  पात  सम
नव सृजन की कर बात सुन्दर 
प्रमाद विस्मृत,सद्दभाव जाग्रत 
बंसरी  बसंत  की  गान सुन्दर.... | 
                      
स्नेह     सरिता    मृदुभाव   की 
खोलती  आँचल,  प्रवाह  सुन्दर
आ रे मन  बावरे, होले मज्जित 
बसंत   की    रस -  धार  सुन्दर ....|

                    उदय वीर सिंह   
                      
                    

       

रविवार, 10 फ़रवरी 2013


आदरणीय ,गुरु-शिक्षकों ,स्नेही स्वजनों ,मित्रों ! आपके स्नेहाशीष के संबल ,उद्दात आत्मबल व अनुकम्पा की पूंजी ले 6 वें अन्तराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन, संयुक्त अरब अमीरात ,में आपके विचारों के प्रतिनधि स्वरुप मेरी प्रतिभागिता यात्रा आज शाम 10/02/2013 से आरम्भ होती है | गोरखपुर से नयी दिल्ली, तदोपरांत  संयुक्त अरब अमीरात  के अन्य शहरों में |
             -  मेरी दो पुस्तकों ' उदय -शिखर' व ' प्रीतम '  का शहर दुबई में विमोचन |
             - शारजाह  में मेरा काव्य पाठ |
             - आबुधावी में ' हिदी- सामर्थ्य'  विषय पर व्याख्यान | 
अभीभूत हूँ आपके स्नेह व सम्मान से ,आभारी हूँ, अपने प्रिय भारत, भारतवासियों का .....|
                                        हिंदी हृदय की भाषा है 
                                           अभिलाषा है अंतर्मन की 
                                              सद्दभाव प्रेम के बंधन की    
                                                वंदन  की  अभिनंदन   की -












                                                                                                        -                                                                                                                         उदय वीर सिंह 

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

जवाब रखे थे -


शायद अब  सांप बनने लगे  हैं फूल,
वरना  हमने  जेब  में गुलाब रखे थे -

कमाल है पढ़े जाने लगे हैं धर्म-ग्रन्थ 
वरना  जेलों  में   तो  कसाब  रखे थे -

मशगुल  थे  सिर्फ  सवाल पूछने  में,
सवालों में ही कितने  जवाब रखे थे - 

अंदेसा  है फरेब  का कहते  सरेआम
पढ़  न  सके  पास में किताब रखे थे- 

नादाँ  थे , न पहचान  सके पत्थरों में 
कितने     हीरे    लाजवाब    रखे   थे-

                              -  उदय वीर सिंह  

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

रेशमी हाथों से -


रेशमी  हाथों  से -

वो    काँटों    में   महफूज   था 
रेशमी  हाथों  से   मसला  गया 
अंधेरों मेंथा जीस्त का हर फ़न
कमाल  रोशनी   में छला  गया

डाल जो  छूटी अंगूर  की,साकी
से   पैमानों    में   ढलता  गया
हर  घूंट  कुंवारा था, प्यास बन
जलाता   गया ,  जलता    गया

जो  देखा नकाब से  ज़माने को
वो   पीछे , जमाना   आगे   था,
उतरा    नकाब,  जमाना  पीछे ,
था  ,  काफिला    बनता   गया-

देखते   थे   आँखों   में   ज़न्नत
जब   रोशन   रहीं, परवाने   रहे,
बेनूर क्या  हुयीं   जमाना  दूर से
बेकार   हैं  ये ,कह  चलता  गया-

लिखता   रहा  हुश्न  की  तारीफ ,
जांनिसारी      भी     कबूल  थी
उम्र भर  का  साथ ही  माँगा था,
एक  पल  न  रुका चलता गया -

                         उदय वीर सिंह